मजदूरों को चौकों से भगाना बंद करे, उनके लिए व्यवस्था बनाई जाय: जन संगठन एवं विपक्षी दल


मजदूर वर्ग के लिए इस शहर में कोई जगह ही नहीं होगी, सरकार ऐसे संदेश देना चाह रही है क्या? आज नगर निगम में जन संगठनों एवं विपक्षी दलों की और से सृष्टि मंडल पहुंच कर प्रशासन की कार्यवाहियों को ले कर सवाल उठाया। पिछले दो सप्ताह एक नगर निगम के आदेश के तहत लाल पुल क्षेत्र से सुबह पुलिस प्रशासन मज़दूरों को भगा रहे हैं। इस मुद्दे और बस्तियों में। मनमानी तरीकों से लोगों को बेदखल करने की कोशिश को उठाते हुए सृष्टि मंडल ने मांग उठाई कि मजदूरों के लिए शहर के चौकों के पास निर्धारित जगह दी जाए जहां पर वह खड़े हो पाए और काम कराने वाले ठेकेदारों एवं आम लोगों के लिए भी सुविधा हो। जब तक स्थाई समाधान नहीं होता है तब तक पुलिस प्रशासन व्यवस्था करे ताकि ट्रैफिक एवं अन्य समस्या न हो। बस्तियों में जो नोटिस दिया गया है, वह भी कानून और
कोर्ट के आदेश के अनुसार नहीं हुआ। सरकार किसी को बेघर न करे और मालिकाना हक, पुनर्वास एवं किफायती घर देने पर कार्यवाही करे।
ज्ञापन सलग्न। सृष्टि मंडल में एटिक के राज्य सचिव अशोक शर्मा, समाजवादी पार्टी के राज्य महासचिव अतुल शर्मा, उत्तराखंड लोक वाहिनी के राजीव लोचन साह, और चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, राजेंद्र शाह, जितेंद्र, अरुण तांती, रिजवान, शांति देवी और अन्य लोग शामिल थे। सीपीआई के समर भंडारी ने भी समर्थन किया। ज्ञापन एडिशनल कमिश्नर को सौंपवाया गया।
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सेवा में
माननीय महापौर देहरादून
देहरादून
द्वारा:
महोदय,
हम आपके संज्ञान में एक गंभीर बात लाना चाह रहे हैं। बीते कुछ दिन से लाल पुल पर सुबह जहाँ पर मज़दूर काम के लिए खड़े होते हैं, वहां पर पुलिस कर्मी पहुँच कर उनको भगा रहे हैं। इससे लोग चोटिल हो सकते हैं और उनकी आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसके साथ साथ बस्तियों में मनमानी तरीकों से लोगों के घरों की बेदखली करने का नोटिस दिया गया है जिससे बस्तियों में एक आतंक का माहौल बना हुआ है।
हमें पता चला है कि यह कार्यवाही 17 मई को नगर निगम की और से एक पत्र के आधार पर की जा रही है जिसमें लिखा है कि लाल पुल पर भीड़ होने की वजह से मज़दूरों को ट्रांसपोर्ट नगर भेजा जाये। ट्रांसपोर्ट नगर में उन लोगों को कहाँ पर जाना है, यह स्पष्ट नहीं है, और ट्रांसपोर्ट नगर लाल पुल से पांच किलोमीटर दूर भी है, तो पैदल चलने वाले मज़दूर इतने दूर कैसे जा पाएंगे, यह भी स्पष्ट नहीं है। तो इस पत्र में दिए गए निर्देश व्यावहारिक नहीं दिखता है।
महोदय, हम आपके संज्ञान में इस बात को लाना चाहेंगे कि इस मुद्दे पर पिछले तेरह साल से हम लोग इस मांग को उठा रहे हैं कि मज़दूर चौकों के लिए निर्धारित जगह तय किया जाना चाहिए जहाँ पर आम नागरिक जिनके लिए मज़दूरों की ज़रूरत है, उनके लिए भी सुविधा हो। ऐसी जगह पर सत्यापन, कल्याणकारी योजनाओं के लिए पंजीकरण, इत्यादि आसानी से भी हो पायेगा। शहर में कम से कम अभी जो लग रहे हैं मज़दूर चौकों के पास ऐसी जगह बनना चाहिए। ऐसी निर्धारित जगह न बनने के कारण यातायात की समस्या होती है, बाकि लोग परेशान होते हैं, और सबसे ज्यादा नुक्सान मज़दूरों को होता है, जो सिर्फ अपने काम करने के लिए खड़े होते हैं।
जहाँ तक बस्तियों में नोटिस को ले कर बात है, हम आपके संज्ञान में लाना चाहेंगे कि कोर्ट के आदेश नदियों को ले कर था, बस्तियों को ले कर नहीं। लेकिन नदी पर अतिक्रमण कर जो बड़े होटल, रेस्टोरेंट और सरकारी विभाग जो बने हैं, उनपर कोई कार्यवाही न कर बस्तियों में जो घर नदी से दूर भी हैं, उनपर कार्यवाही की जा रही है। इसके साथ साथ हम और अन्य संगठन इस बात को लगातार उठा रहे हैं कि नगर निगम की कार्यवाही कानून के अनुसार नहीं चल रहा है। इसमें सबसे बुनियादी बात यह है कि लोगों को बेघर करना हमारे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। इसलिए नगर निगम इन नोटिस को रद्द कर अपने ही वादों के अनुसार लोगों को मालिकाना हक़ देने पर, पुनर्वास कराने पर और किफायती घर उपलब्ध कराने पर कार्यवाही करे।
इसके साथ साथ में हम
आपसे निवेदन करते है कि:
– 17 मई को दिया गया निर्देश को रद्द किया जाये। उसकी जगह में लाल पुल के पास जो नगर निगम का खाली प्लाट है, वहां पर सुबह मज़दूरों को खड़े होने के लिए जगह दी जाये। मज़दूरों को मारने, भगाने की कार्यवाहियों पर तुरंत रोक लगाया जाये।
– नगर निगम निर्धारित जगह तय करे अभी लग रहे हैं मज़दूर चौकों के 500 मीटर के अंदर। जगह तय होने के बाद वहां पर टिन शेड एवं अन्य व्यवस्था बनाये जाये।
– जब तक इस प्रकार का स्थायी समाधान नहीं हो पाता है, तब तक जहाँ पर मज़दूर खड़े होते हैं, वहां पर सुबह एक घंटे के लिए एक पुलिस कर्मी निगरानी रखे कि ठेकेदार या अन्य लोग बीच सड़क पर अपनी गाडी को खड़े तो नहीं कर रहे हैं। ट्रैफिक की समस्या इन लोगों की वजह से होती है, मज़दूरों की वजह से नहीं।
– दिए गए नोटिस को रद्द कर नगर निगम ऐसी नीति ला दे कि किसी को बेघर नहीं किया जायेगा। निगम मालिकाना हक़ देने पर, पुनर्वास कराने पर और किफायती घर उपलब्ध कराने पर कार्यवाही करे।