
उत्तरकाशी, टिहरी और देहरादून के पर्वतीय इलाकों में मंगसीर बग्वाल धूमधाम से मनाई जा रही है। सीमांत जनपद उत्तरकाशी में कार्तिक अमावस्या से ठीक एक माह बाद दिवाली यानी मंगसीर की बग्वाल का आयोजन शुरू हो गया है। जो कि 3 दिन तक चलेगा। उधर जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में पांच दिवसीय जौनसारी दिवाली या बूढ़ी दिवाली की बुधवार को शुरूआत हो गई। गांवों में छोटे बच्चे व बड़े भीमल की लकड़ी से बनाई गई मशालों को जलाकर खुुशी मनाते दिखाई दिए। सीमांत जिले उत्तरकाशी में दिवाली के एक माह बाद मनाई जाने वाली दिवाली को मंगसीर बग्वाल कहा जाता है। सीमांत जिले में मंगसीर बग्वाल की तैयारियां खास अंदाज में की जाती है। जो कि परंपरा और उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पहाड़ों में मनाई जाने वाली मंगसीर बग्वाल पर पटाखे नहीं हाथ से बनाए गए भैलो से खेला जाता है। साथ ही पहाड़ी व्यंजन परोसे और खिलाए जाते हैं। इस बार मंगसीर की बग्वाल उत्तरकाशी में 3 दिन तक विशेष आयोजन हो रहा है। जिसमें स्थानीय वेशभूषा में रामलीला मैदान में एकत्र होकर भैलो के साथ नृत्य कर उत्साह के साथ त्यौहार मनाया जा रहा है। इस दौरान स्थानीय खेलों और उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए विशेष तैयारी की गई है। बग्वाल के दिन स्थानीय लोग एक जगह इकट्ठा होकर रात भर भैलो नृत्य के साथ रासों तांदी नृत्य करते हैं। खुले मैदान में देवदार और चीड़ की लकड़ी से बनाए भैलो को जलाकर मंगशीर की बग्वाल खेली जाती है। रात में स्थानीय वाद्य यंत्र के साथ स्थानीय वेश भूषा में लोग बग्वाल उत्सव मनाते हैं। समय के साथ स्थानीय लोग इस परंपरा को जिंदा रखने के लिए प्रयास में जुटे हैं। जिसके लिए कई सामाजिक संगठन भी अब सामने आकर अपनी परंपरा को बचाने में जुटे हैं।