
रमेश कुडि़याल
देहरादून। उत्तरकाशी जिले का यूपी और अब उत्तराखड में भी खास मिथक रहा है। इस जिले के गंगोत्री क्षेत्र से जिस पार्टी का प्रत्याशी जीतता है, प्रदेश मे उसकी ही सरकार बनती है। यह मिथक इस बार भी कायम रहा। लोगों को उम्मीद थी कि उनके विधायक को भाजपा सरकार मंत्री बनाएगी, लेकिन सरकार में मंत्री तो दूर भाजपा ने संगठन में भी किसी नेता को कोई दायित्व नहीं दिया। ऐसे में नेताओं में अंदर खाने नाराजगी की खबरें तैर रही है। दबे स्वर में कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि पार्टी के आयतित विधायक मूल रूप से संगठन के लोगों को जानते ही नहीं है। इसीलिए वह संगठन में किसी को दायित्व नहीं दिला पाए।
कांग्रेस के रास्ते भाजपा में आए सुरेश चौहान को कार्यकर्ताओं ने विधायक तो बना दिया लेकिन भाजपा ने सुरेश चौहान को मंत्री नहीं बनाकर साफ संदेश देने की कोशिश की कि अब सरकार में मूल कार्यकर्ताओ को ही जगह दी जाएगी सरकार में क्षेत्र को प्रतिनिधित्व नहीं मिला पार्टी नेताओं को उम्मीद थी कि उनका उपयोग पार्टी संगठन में दायित्व देकर करेगी लेकिन महेन्द्र भट्ट ने किसी को भी इस लायक नहीं समझा कि उन्हें दायित्व दिया जाता।
संगठन के एक बड़े नेता का कहना है भाजपा ने प्रदेश कार्यकारिणी में जिले के जिन छह नेताओं को जगह दी है वह सभी यमुनोत्री विधानसभा क्षेत्र के निवासी हैं। मजेदार बात तो यह है कि अगर इन सभी का भी जनाधार होता तो भाजपा को तीसरे स्थान पर नहीं लुढ़कना पड़ता। गौरतलब है कि यमुनोत्री सीट पर मोदी लहर के बावजूद भाजपा प्रत्याशी केदार सिंह रावत दस हजार मत भी प्राप्त नहीं कर पाए। अब उसी क्षेत्र के नेताओं को प्रदेश संगठन में स्थान देकर क्या पार्टी प्रत्याशी की हार का तोहफा दिया गया है।
पुरोला और गंगोत्री में भाजपा विधायक होन के बाद भी यहां से किसी को संगठन में नही लिया गया। माना जा रहा है कि गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान और पुरोला विधायक दुर्गेश लाल काग्रेस पृष्ठभूमि से आए हैं। शायद इसीलिए इन दोनों क्षेत्रों से एक भी आदमी को प्रदेश संगठन के लायक नहीं समझा गया दबे स्वर में तो यह भी चर्चा है कि दोनों विधायकों की कार्यकर्ताओं पर पकड़ नहीं है। वरना एक दर्जन से अधिक पूर्व जिलाध्यक्ष होने पर भी किसी को भी प्रदेश संगठन लायक नहीं समझा गया पार्टी के भीतर असंतोष की यह आग आने वाले समय में और अधिक सुलगने के आसार की ओर संकेत करती है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता का कहना है कि गगोत्री ने मिथक कायम रखा लेकिन सरकार और संगठन ने क्षेत्र की उपेक्षा ही की है। अब अगर भविष्य में गंगोत्री से किसी वरिष्ठ नेता को दायित्व धारी नहीं बनाया गया तो कई वरिष्ठ नेता आने वाले दिनों में पार्टी कार्यक्रमों से दूरी बनाए दिख सकते हैं। कई वरिष्ठ नेताओं ने बातचीत में ऐसे संकेत दिए हैं।