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रंगमंच विभाग,दून विश्वविद्यालय और कलामंच द्वारा आयोजित नाट्य समारोह । समारोह के प्रथम दिन का उदघाटन कुलपति प्रो० सुरेखा डंगवाल, कुलसचिव डॉ मंगल सिंह मन्द्रवाल,प्रो० एच० सी पुरोहित, डॉ चेतना पोखरियाल, डॉ जागृति डोभाल, श्री अभिनंदा जी और श्री टीके अग्रवाल जी ने दीप प्रज्वलित कर नाट्य समारोह का शुभारंभ किया।
पहला नाटक एलमुनाई ओफ दून यूनिवर्सिटी
“जानेमन” एक हिंदी नाटक है जो भारत में हिजड़ा समुदाय के जीवन पर प्रकाश डालता है।
एक नाटक जो किन्नर जीवन और उन्हें हमारे समाज में उन्नति के साथ जुड़ी मुद्दों पर आधारित है।
इस नाटक का लेखक मराठी लेखक मच्छिंद्र मोरे हैं, जिन्होंने ट्रांसजेंडर समाज के संरचना के बारे में लिखा है। नाटक का मुख्य ध्यान बचपन में अपराध और अपहरण के माध्यम से ट्रांसजेंडर के रूपांतरण पर है। नाटक में एक ट्रांसजेंडर के जीवन में भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक असहिष्णुता का प्रदर्शन किया गया है।
दूसरा नाटक खेल तमाशा नाट्य दल द्वारा नज़ीर कथा कीर्तन” मंचित नाटक किया गया जिसका निर्देशन रजनीश बिष्ट ने किया।
भारतीय कवि नज़ीर अकबराबादी, जिन्हें भारत के पहले ‘पीपल्स पोएट’ के रूप में भी जाना जाता है, ने 18वीं शताब्दी में अपने काव्य जादू की शुरुआत की, उन्हें अपनी कविताओं में रोज़मर्रा के जीवन के सार को व्यक्त करने की क्षमता के लिए जाना जाता है। उनके लेखन में उन कठिनाइयों और बाधाओं का वर्णन है जिनका सामना लोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं। उनकी नज़्मों ने दैनिक जीवन के कई पहलुओं, विभिन्न धार्मिक और सामाजिक आयोजनों पर कब्जा कर लिया, और हँसी, गायन, आनंद और उपहास जैसे छोटे विवरणों को भी उनके लेखन में महसूस और देखा जा सकता है।
“नज़ीर कथा कीर्तन”, अधिनियमित दृश्यों और कथनों के साथ एक संगीत निर्माण है। यह नज़ीर अकबराबादी की साहित्यिक कृतियों पर आधारित है। यह प्रोडक्शन एडमामा, बंजारनामा, होली, रोटियां जैसे गानों और काकड़ीवाल, मूट जैसी कविताओं का मिश्रण है। यह मजेदार गीतों के माध्यम से जीवन के तीन महत्वपूर्ण चरणों यानी बचपन, जवानी और बुढ़ापा को भी दर्शाता है। कुल मिलाकर यह रचना सदभावना और भाईचारे की भावना के साथ नज़ीर अकबराबादी और उनके विशाल साहित्य को एक छोटी सी श्रद्धांजलि है।
नाट्य प्रस्तुति के दौरान डॉ सुनीत नैथानी, डॉ नितिन कुमार, प्रसिद्ध रंगकर्मी श्रीशडोभाल,
डॉ अजीत पंवार, डॉ राकेश भट्ट, टी. के. अग्रवाल, डॉ एम०एस० बर्तवाल, आदि अध्यापक उपस्थित थे।
नाट्य समारोह के तीसरे दिन एकलव्य नाट्य दल द्वारा खिड़की नाटक का मंचन किया गया। जिसका लेखन विकास बहरी और निर्देशन अखिलेश नारायण ने किया।
नाटक की कहानी –
खिड़कियों से रोशनी और हवा ही नहीं, कहानियां भी झांकती हैं। यकीनन, खिड़कियों का अपना जलवा होता है! जब दो घरों की खिड़कियां आमने सामने हों, उधर खिड़की से कोई चांद का टुकड़ा दिखलाई देता हो और इधर कोई ख़स्ताहाल लेखक हो, तब, कहानियां तो बनेगी ही! ऐसी ही एक कहानी लिखी है श्री विकास बहरी ने, ‘खिड़की’। गये इतवार, इस कहानी को मंच पर उतारा श्री अखिलेश नारायण और उनकी मण्डली ने, उस पर चटकारों की संगत सजाई आलोक उलफत जी ने और दर्शक रहे हम!
अविकल स्टूडियो, देहरादून के हॉल में शाम लगभग साढ़े छः बजे से नाटक की शुरूआत हुई, नाटक की बनावट कुछ ऐसी थी मानो हम भी इस नाटक के कोई पात्र हों। नाटक का मुख्य पात्र दर्शकों से लगातार संवाद में हो तो ये भ्रम हो ही जाता है । नाटक का वह पात्र भी तो भ्रम को ही जी रहा था। नाटक का मुख्य पात्र एक ऐसा लेखक है, जो खुद को प्रोफेशनल कहते हिचकता भी है और दंभ भी रखता है, जो इतनी तंगहाली में है कि, घर में खाने के ही फाके़ हैं, जो बोतल का इंतज़ाम तो कर पाता है लेकिन ग़ुरबत मकान का किराया नहीं देने देती, जिसे कहानी लिखने का काम तो मिला है, लेकिन एक तरफ समय सीमा का बंधन है, दूसरी तरफ कहानी का सिरा उसकी पकड़ से बाहर है!
बस यहीं पर ‘खिड़की’ एक किरदार के रूप में सामने आती है। इस खिड़की के उस पार, सामने वाले खिड़की से अमूमन फोन पर बातें करती दिखने वाली वो लड़की जिसे लेकर लेखक कोरी कल्पनाएं करता है, वो कल्पनाएं एकाएक सच होने लगती हैं और मज़े की बात ये है कि, वो सच होती दिख रही कल्पनाएं भी वास्तव में सच हो रही हैं, या वो भी भ्रम हैं, जान नहीं पड़ता! हां, इतना ज़रूर होता है कि, लेखक को अपनी कहानी का सिरा मिल जाता है और वो निर्धारित समय सीमा में अपनी कहानी पूरी कर लेता है, ऐसा उसकी मुस्कान बताती है। कहना न होगा कि, लेखक के घर की दीवार पर टंगे चित्र, लेखक के वैचारिक स्वाद को भी बयां करते हैं।
पूरे नाटक में कलाकारों की भूमिका लाजवाब रही। नाटक शुरू से लेकर आखि़री तक समान गति से चलते हुए दर्शकों को नाटकों ने बांधे रखता है। कलाकारों की डॉयलॉग डिलीवरी अद्भुत है, उनके संवादों की लोच, निरन्तरता और चुहलपन, उनकी भाव-भंगिमाएं और एक चरित्र से दूसरे चरित्र में स्मूदली उतर जाने की कला, दर्शकों को मुग्ध कर दिया।