उत्तराखंड

सांप्रदायिक एवं नफरती हिंसक अपराधियों पर निष्पक्ष कार्यवाही हो – विपक्षी दल एवं जन संगठन

देहरादून शहर में लगातार फेल रही सांप्रदायिक हिंसा को ले कर विपक्षी दलों एवं जन संगठनों का प्रतिनिधिमंडल SSP देहरादून से आज मिल कर चिंता व्यक्त की कि चंद संगठन एवं व्यक्ति लगातार हिंसा कराने की कोशिश कर रहे हैं। उनपर और सारे सांप्रदायिक एवं नफरती अपराधों के लिए ज़िम्मेदार व्यक्तियों एवं संगठनों पर सख्त क़ानूनी कार्यवाही करने की ज़रूरत है। 26 सितम्बर रात को हुई घटना को ले कर पुलिस की तीव्र कार्यवाही को स्वागत किया। साथ साथ में प्रतिनिधियों ने कहा कि सत्ताधारी पार्टी से करीब होने की वजह से चंद लोगों पर FIR दर्ज होने तक कार्यवाही होती है और फिर कोई और कार्यवाही नहीं दिखती है। जबकि राज्य भर में इन लोगों पर नफरती भाषण से ले कर झूठ प्रचार फ़ैलाने तक, निजी सम्पतियों पर तोड़फोड़ और नुकसान से ले कर पथराव तक, ऐसे गंभीर आरोप लगे हैं। नए भारतीय न्याय संहिता के धारा 197(1)(b) और दंगा के नाम पर बनाया गया अधिनियम की धाराएं इन लोगों पर बहुत कम लगाई जाती हैं जबकि वर्त्तमान सरकार इन कानूनों पर गर्व व्यक्त करती रहती है। यह भी हैरत की बात है कि शहर की प्रमुख सड़क को जैम किया गया क्योंकि पथराव करने के आरोपी को पुलिस ने हिरासत में लिया हुआ था, और बेहद आपत्तिजनक है कि सत्ता पक्ष के नेता भीड़ और सत्ता के जोर पर थाने से किसी को जबरन छुड़ा ले जाएं। लगातार कानून का राज कमज़ोर होना और इस शांतिपूर्ण शहर और राज्य में हिंसा, डर और नफरत बढ़ना, इसके पीछे ऐसी सीमित कार्यवाही भी बड़ा कारण रहा है। वार्ता के दौरान SSP देहरादून ने प्रतिनिधि मंडल को कहा कि सब पर क़ानूनी कार्यवाही निष्पक्षता से ही की जाएगी और किसी को बक्शा नहीं जायेगा।

में उत्तराखंड महिला मंच की कमला पंत, सीपीआई (मा-ले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी, सीपीआई के राष्ट्रीय कौंसिल सदस्य समर भंडारी, आम आदमी पार्टी की उमा सिसोदिया, पूर्व बार कौंसिल अध्यक्ष रज़िया बैग, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, उत्तराखंड क्रांति दल के लताफत हुसैन, स्वराज अभियान के NN पांडेय, उत्तराखंड इंसानियत मंच के त्रिलोचन भट्ट, AITUC के राज्य सचिव अशोक शर्मा, और अन्य प्रतिनिधि शामिल रहे।

ज्ञापन सलग्न।

निवेदक
जन हस्तक्षेप

सेवा में,

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक

देहरादून

विषय: लगातार बढ़ते हुए हिंसा और सामाजिक तनाव के सम्बन्ध में

महोदय,

बीते एक महीने से लगातार उत्तराखंड में और शहर में भी लगातार हिंसक माहौल खड़ा करने का प्रयास चल रहा है, जिसका 26 सितंबर को देहरादून रेलवे स्टेशन पर हुई हिंसा एक बड़ा उदहारण है। इससे पहले देहरादून के अंदर ही पल्टन बाजार और जाखन में भी ऐसी घटनाओं की खबर सामने आई है।

महोदय, 26 सितम्बर को हुई घटना को ले कर पुलिस की तीव्र कार्यवाही का स्वागत और सराहना करते हुए हम कुछ चिंताओं को भी व्यक्त करना चाहेंगे। बीते दो सालों से गढ़वाल में लगातार ऐसी घटनाओं हो रही है और अधिकांश ऐसी घटनाओं में चंद संगठन एवं व्यक्ति दिखते हैं। लेकिन सत्ताधारी पार्टी से करीब होने की वजह से इन लोगों पर FIR दर्ज होने तक कार्यवाही होती है और फिर कोई और कार्यवाही नहीं दिखती है। जबकि इन लोगों पर नफरती भाषण से ले कर झूठ प्रचार फ़ैलाने तक, निजी सम्पतियों पर तोड़फोड़ और नुकसान से ले कर पथराव तक, ऐसे गंभीर आरोप लगे हैं। नए भारतीय न्याय संहिता के धारा 197(1)(b) और दंगा के नाम पर बनाया गया अधिनियम की धाराएं इन लोगों पर बहुत कम लगाई जाती हैं जबकि वर्त्तमान सरकार इन कानूनों पर गर्व व्यक्त करती रहती है।

यह भी हैरत की बात है कि शहर की प्रमुख सड़क को सिर्फ इसलिए जाम किया गया क्योंकि बलवा और पथराव करने के आरोपी को पुलिस ने हिरासत में लिया हुआ था। यह भी बेहद आपत्तिजनक है कि सत्ता पक्ष के नेता किसी को भी भीड़ और सत्ता के जोर पर थाने से किसी को जबरन छुड़ा ले जाएं।

लगातार कानून का राज कमज़ोर हो होना और इस शांतिपूर्ण शहर और राज्य में हिंसा, डर और नफरत बढ़ना, इसके पीछे ऐसी सीमित कार्यवाही भी बड़ा कारण रहा है। जिसके बारे में राज्य के विपक्ष दलों और जन संगठनों के साथ सेवानिवृत सेना के मुखिया, वरिष्ठ वकील, पूर्व आईएएस अधिकारी एवं अन्य लोगों की और से आवाज़ उठते रही है, लेकिन फिर भी कार्यवाही नहीं दिख रही है।

अतः हम आपसे निवेदन करना चाहेंगे कि 26 सितम्बर और इस प्रकार की हर घटना के लिए किसी भी प्रकार की हिंसा, नफरती भाषण या अन्य अपराधों के लिए अपराधी पर कार्यवाही होनी चाहिए, चाहे आरोपी का धर्म, जात या राजनैतिक संबंध कुछ भी हो।

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