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बुरांसखंडा के बच्चों ने जाना वनों को आग से बचाने के उपाय

उत्तराखंड देहरादून, राजकीय इंटर कॉलेज बुरांसखंडा रायपुर के छात्र-छात्राओं द्वारा प्रधानाचार्य दीपक नेगी के संरक्षण, शिक्षकों एवं वन कर्मियों के निर्देशन में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु जागरूकता रैली के साथ आग से बचने के स्थलीय टिप्स सीखे।

 

*प्रधानाचार्य दीपक नेगी ने कहा, “अक्सर देखने में आता है कि मौसम परिवर्तन के साथ ही जहाँ-तहाँ सुलगते पहाड़ व दहकते जंगल, आमजन ही नहीं बल्कि जंगली जानवरों के लिए भी मुश्किलें पैदा कर देते हैं। शहरों में बढ़ रहे ताप से स्थानीय लोगों के लिए पर्यटकों का सैलाब उमड़ना भले ही रोजगार की दृष्टि से सुखद हो, किन्तु इस दौरान पहाड़ी इलाकों का सुकून, आबोहवा व सौंदर्य की देखभाल करना भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।* वन विभाग की सजगता कहें या फिर उनके स्टॉफ की तत्परता, इंटर कॉलेज बुरांसखंडा के स्वयंसेवी शिक्षक, स्कूली बच्चों तथा स्थानीय अभिभावकों के सहयोग से पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि इंटर कॉलेज से लगभग बारह किलोमीटर दूर स्थित पर्यटक स्थल धनौल्टी, इस बीच मात्र पाँच किलोमीटर दूरी पर बुरांसखंडा, जहाँ वन विभाग व विद्यालय के संयुक्त प्रयास से साढ़े पांच हजार बुराँस के पौधे रोपे गए हैं, औऱ नाम दिया गया *”बुराँसी-वन”*, इस वन की देखभाल की जिम्मेदारी भी विद्यालय के स्वयंसेवियों की ही है।
पर्यटकों के लिहाज से धनोल्टी की अलग पहचान है, यहाँ की नैसर्गिकता शांत मन को भरपूर आनंद प्रदान करने वाली है। सौर ऊर्जा से प्रकाशित आकर्षक ईको हट्स, बरामदे में बाँस की कुर्सियां, मनोहारी फूलों की क्यारियां, हरे-भरे लॉन्स में ऊँचे-ऊँचे देवदार के पेड़, लगभग पन्द्रह एकड़ में फैला हुआ ईको पार्क, जहाँ युवा क्या बच्चे-बूढ़े भी अपने विजिट को यादगार बनाते हुए दिखते हैं। यहाँ पर लम्बे घुमावदार रास्ते और साहसिक ट्रैकिंग के लिए बर्मा ब्रिज एवं फ्लाइंग फॉक्स जैसे आकर्षक खेल-कूद साथ में मेडिटेशन स्पॉट्स भी मौजूद हैं।
देव भूमि तीर्थाटन के साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा देने के लिए जानी जाती है। यहाँ के रीति-रिवाज, बोली-भाषा, रहन-सहन एवं चाल-चलन में आत्मीयता झलकती है। सीधे-साधे लोग, अतिथि देवो भवः से सेवा-सत्कार और शीघ्र ही भावनात्मक लगाव भी।
बाह्य पर्यटक प्रकृति के आनन्द से जोश में आसपास जंगलों में प्लास्टिक की बोतलें व पैकेट्स फेंक देते हैं, जिसके कारण गन्दगी होने लगती है, पर्यटन स्थल की साफ-सफाई व स्वच्छता का जिम्मा संयुक्त रूप से हो, इसके लिए बच्चों ने रैली निकालकर श्रमदान के जरिए जनजागरण अभियान चलाया। छात्र-छात्राओं के साथ ही स्थानीय स्वयंसेवियों द्वारा स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया गया।
*इतना ही नहीं जंगलों में अकस्मात आग लगने से जहाँ जड़ी-बूटी व इमारती लकड़ी जलने से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है, वहीं जंगली जानवरों की जान को भी खतरा बना रहता है। इस समस्या से निजात पाने के लिए वन विभाग के साथ ही स्थानीय स्तर पर आमजन की सजगता भी महसूस की गई है, जिसके लिए स्कूली बच्चों की भागीदारी प्रभावकारी समझी जाती है।*
यूको क्लब प्रभारी नेहा बिष्ट ने बताया कि विद्यालय द्वारा *जैव विविधता संरक्षण व संवर्धन*, के लिये हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं। फील्ड एक्टिविटी के रूप में वन विभाग के सहयोग से प्राप्त बीस मौसमी फलों की पौध रोपित कर बच्चों को ही उनकी देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके अलावा परीक्षा के बाद अतिरिक्त समय में समुदाय की सहभागिता को महत्व देते हुए *प्रधानाचार्य दीपक नेगी के संरक्षण में एक कार्ययोजना तैयार की गई। इसके अंतर्गत “गर्मियों की छुट्टियों में बच्चे पहाड़ी फलों का लेंगे लुफ्त, बीजों का संग्रह करेंगे तो उन्हें मिलेगा जेब खर्च भी”*
प्रवक्ता कमलेश्वर प्रसाद भट्ट ने बताया कि जरूरत हो या देखा-देखी, उच्च शिक्षा अथवा रोजगार के चक्कर में भले ही गॉव वीरान हो रहे हों, किन्तु पहाड़ की आबोहवा एवं रीतिरिवाज का आकर्षण आज भी गाँव की ओर आकर्षित कर ही देता है। जी हाँ, जंगल हों या फिर बाग-बगीचे अधिकांश गाँवों में स्थानीय फल मौसम के अनुसार उपलब्ध हो ही जाते हैं, और जहाँ नहीं भी हैं, वहाँ प्रयास किए जा रहे हैं। भट्ट ने जानकारी दी कि *मशीनीकरण के दौर में बच्चे मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं, बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान के इतर वास्तविकता से परिचित करवाना जरूरी समझा जा रहा है, उन्हें प्रकृति से जोड़ने के उद्देश्य से केयर संस्था से मिलकर एक अभिनव तरीका ढूंढ निकाला है।* जैव विविधता संरक्षण व संवर्धन हेतु छात्र-छात्राओं की सहभागिता के लिए उन्हें अवकाश के दौरान *आस-पास के वन क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध होने वाले वृक्ष, झाड़ी, घास प्रजाति यथा काफल, बाँज, किमोड, हिंसर, भंकल, मेहल आदि के बीज एकत्रित करने होंगे, अवकाश के पश्चात सरकारी मूल्य पर ये बीज खरीद लिए जायेंगे।
बच्चों को जहाँ एक ओर अपने क्षेत्र की जैव विविधता की जानकारी हासिल होगी, वहीं दूसरी ओर प्रकृति से जुड़े रहने का सुनहरा मौका ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में योगदान के साथ-साथ एकत्रित बीजों के एवज में एक छोटी सी एकमुश्त धनराशि भी प्राप्त होगी।* बीज जमा करते समय बीजों से संबंधित जानकारी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी जमा करनी होगी, जिसमें नाम, कक्षा, माता-पिता का नाम, पता, मोबाइल नंबर, फोटो सहित स्थानीय पेयजल धारा-नाग देवता पूजन, बीजों का स्थानीय नाम, स्थानीय व औषधीय उपयोग आदि प्रमुख हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में विद्यालय के बीस छात्रों ने इस कार्य को अंजाम तक पहुँचाया था जिसके सकारात्मक परिणाम आए, और उन्हें नकद राशि भी दी गई थी। कोरोनाकाल में अवश्य व्यवधान उत्पन्न हुआ, अब पुनः इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। प्रमाणपत्र के साथ सम्मानित किए जाने वाले बच्चों में मानसी, रिया, गायत्री, काजल, सुहानी, आरती, साक्षी, दीक्षा, आँचल, पीयूष, नीरज, अमित, अखिल, नीरज और गौतम आदि सम्मिलित हैं।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य दीपक नेगी, प्रवक्ता कृष्ण कुमार राणा, कमलेश्वर प्रसाद भट्ट, नेहा बिष्ट, जे पी नौटियाल, जी वी सिंह, सुमन हटवाल, मनीषा, रोहित रावत, प्रवीण व राकेश के अलावा वन विभाग से वन दरोगा देवेन्द्र रावत, हरविन्द रावत, प्रमोद बंगवाल, वन वीट अधिकारी सुरेश नेगी, आनन्द रांगड, मनवीर पँवार, राहुल, विपिन वर्मा, सुरेश पँवार, वीट सहायक सुन्दर सिंह व सचिन पँवार आदि ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए बच्चों का उत्साहवर्धन किया।

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