

शहर भर में मज़दूर बस्तियों एवं चौकों पर शनिवार को दिहाड़ी मज़दूर धरना दे कर मांग उठाया – उत्तराखंड भवन एवं सहनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड अपने विलंबपूर्ण, बेज़रूरत प्रक्रियाओं एवं मज़दूर विरोधी व्यवस्थाओं को सुधारे ताकि मज़दूरों को अपने क़ानूनी हक़ मिल पाए। “अब न रुकेगा, अब न झुकेगा, मजदूर बोलेगा — हक़ लेकर ही रहेगा, निर्माण मजदूर बोर्ड, मजदूरों को अपना हक दो!” के पोस्टर पकड़ते हुए मज़दूरों ने कहा कि बीच में दस महीने से पंजीकरण ही बंद रहा; खोलने के बाद भी ऐसे शर्तों को लगाए गए जिससे कई असली दिहाड़ी मज़दूर पंजीकरण और लाभ से वंचित होंगे। मिसाल के तौर पर, हर मज़दूर का हक़ है कि उनको बच्चों को पढ़ाने के लिए छात्रवृति मिलनी चाहिए, लेकिन जो सुविधा केंद्र है, वह दिन में ही खुलते हैं; तो इस लाभ को लेने के लिए मज़दूर अपना दिहाड़ी छोड़ कर केंद्र में चक्कर काटना पड़ेगा, जिससे उनको जितना लाभ मिलना चाहिए था, उससे उनको ज्यादा आर्थिक नुक्सान होगा।
हाल में और भी ऐसे नियम लाये गए हैं जिससे सबसे गरीब लोग योजना से बाहर हो रहे हैं। बताया जाए कि इस साल CAG का ऑडिट रिपोर्ट में भी और हाल में हुआ एक स्वतंत्र अध्ययन में भी ऐसी ही बातें सामने आई है – पुरे उत्तराखंड में एक भी निर्माण मज़दूर को पेंशन नहीं मिला है आज तक, मात्र दस प्रतिशत पात्र लोगों का पंजीकरण हुआ है, और जिनका पंजीकरण हुआ है, उनमें से आधे से ज्यादा निर्माण मज़दूर नहीं है। धरना करते हुए मज़दूरों ने मांग कि बोर्ड के केंद्रों की संख्या बढ़ाया जाये, उनको शाम को भी खोला जाये, भारतीय स्टेट बैंक में ही खाता होने जैसे बेज़रूरत शर्तों को हटाया जाये, और बोर्ड मज़दूरों की हकीकत को ध्यान में रखते हुए कार्यवाही करे ताकि निर्माण मज़दूरों को अपना हक़ मिल पाए।