उत्तराखंड

प्रदेश भर में बीस से ज्यादा क्षेत्रों में “प्रजातंत्र दिवस” का कार्यक्रम

आज स्वतंत्रता सेनानी श्री देव सुमन के शहादत दिवस को “प्रजातंत्र दिवस” के रूप में प्रदेश भर में मनाया गया। बीस से ज्यादा शहरों में आयोजित कार्यक्रमों में श्री देव सुमन के विचारों एवं संघर्षों को याद करते हुए प्रदेश के आंदोलनकारियों, विपक्षी दलों, बुद्धिजीवियों एवं आम नागरिकों ने राज्य की वर्तमान स्थिति पर आक्रोश भी जताये। “नफरत नहीं, रोज़गार दो” के नारे लगते हुए इन कार्यक्रमों में प्रस्ताव को भी पारित किया गया जो सलग्न है।  टिहरी, देहरादून, गैरसैण, पौड़ी, रामनगर, हल्द्वानी, नैनीताल, चमोली, पिथौरागढ़, अस्कोट, कुनाव (हरिद्वार), खडियागांव (भवाली), लुधगला (मुक्तेश्वर), गरुड़, हरिनगरी, दिनेशपुर (उधम सिंह नगर), रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा के सल्ट क्षेत्र के चार गांव, और राज्य के अन्य क्षेत्रों में कार्यक्रम हुए।    

देहरादून के अग्रवाल धर्मशाला में पांच विपक्षी दलों (कांग्रेस, CPI, CPI(M), CPI(ML), SP) के साथ विभिन्न जन संगठनों के प्रतिनिधि कार्यक्रम में शामिल हुए। श्री देव सुमन की कुर्बानी को याद करते हुए वक्ताओं ने वर्तमान स्थिति पर अपनी बातों को रखे।   कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य की पहचान हमेशा श्री देव सुमन जैसे ही संघर्षील लोगों से रही है, जो जीवन भर तानाशाही, भय, भूख, भेदभाव व भ्रष्टाचार से लड़ने वाले विभूतियों के रुप में जाने जाते हैं। CPI के नेशनल कौंसिल सदस्य समर भंडारी ने आक्रोश व्यक्त की कि राज्य में महिलाओं की सुरक्षा, माफिया, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी  इत्यादि पर कार्रवाई करने के बजाय “लैंड जिहाद” और “लव जिहाद” जैसे शब्दों द्वारा अपराधों को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है। हर पल दमन और नफरत को बढ़ावा दिया जा रहा है। 

उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत ने कहा कि महिला सुरक्षा और देश और राज्य में महिलाओं के साथ अपमान और अत्याचार पर सरकार की और से कोई भी कदम नहीं दिख रहा है। अखिल भारतीय किसान सभा के महामंत्री गंगाधर नौटियाल ने कहा कि राज्य के असली मुद्दे जैसे 2018 में भू कानून का जन विरोधी संशोधन, वन अधिकार कानून 2006 पर अमल न होना, और मनरेगा से ले कर मज़दूर योजना तक हर योजना में देर सारे पात्र लोगों को अपने हक़ों से वंचित होने पर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। लोगों को राहत और रोज़गार देने के बजाय, उल्टा सरकार बिजली के बिलों पर छूट से ले कर ज़मीन पर कम रेट तक, निजी कम्पनयों को सब्सिडी दे रही है।

CPI(ML) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि लोगों को अपने क़ानूनी हक़ देने के बजाय सरकार उल्टा लाखों लोगों को “अतिक्रमणकारी” गैर क़ानूनी तरीकों से घोषित कर रही है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ SN सचान ने कहा कि नफरत वाली राजनीति से सरकार अपना एजेंडा को आगे बढ़ाना चाह रही है लेकिन इसको बर्दाश नहीं किया जा सकता है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव राजेंद्र नेगी ने कहा कि सत्ताधारी ताकतें संविधान को बदलना चाह रहे हैं और हमारे देश के मूल्यों को खत्तम करना चाह रहे हैं।  CPI के डॉ गिरिधर पंडित; जनवादी महिला समिति की इंदु नौटियाल; सर्वोदय मंडल के हरबीर सिंह कुशवाहा एवं यशवीर आर्य; और पीपल्स साइंस मूवमेंट के विजय भट्ट ने भी सम्मेलन को सम्बोधित किया। उत्तराखंड महिला मंच के निर्मला बिष्ट, पद्मा घोष और अन्य साथी और चेतना आंदोलन के राजेंद्र शाह, मुकेश उनियाल, इंद्रदेव कुमार, देवेंद्र, राकेश, जीतेन्द्र और अन्य साथी मौजूद रहे। कार्यक्रम का सञ्चालन चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल ने किया।  

वक्ताओं ने कहा कि इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए प्रदेश भर में  हस्ताक्षर अभियान चलाया जायेगा और आगामी 30 तारीख को मणिपुर में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ धरना होगा। 9 अगस्त को प्रदेश भर में अन्य संगठनों के साथ इन मुद्दों पर आवाज़ उठाया जायेगा।   

आज से ठीक 79 साल पहले, 25 जुलाई 1944 को, टिहरी रियासत के कारागार में 209 दिन रह कर, 84 दिन तक भूख हड़ताल पर रहने के बाद, स्वतंत्रता सेनानी श्री देव सुमन ने आज़ादी और लोकतंत्र के लिए अपनी जान दे दी। आज हम प्रदेश भर उनको इसलिए याद कर रहे हैं क्योंकि हमारे राज्य उत्तराखंड की पहचान हमेशा श्री देव सुमन जैसे ही संघर्षील लोगों से ही रही है। जो जीवन भर तानाशाही, भय, भूख, भेदभाव व भ्रष्टाचार से लड़ने वाले विभूतियों के रुप में जाने जाते हैं। 

लेकिन आज कल राज्य में महिलाओं की सुरक्षा, खनन माफिया, भू माफिया, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, गरीबी इत्यादि पर आवश्यक कार्रवाई करने के बजाय “लैंड जिहाद” और “लव जिहाद” जैसे शब्दों द्वारा  अपराधों को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है और हर पल दमन और नफरत को बढ़ावा दिया जा रहा है।  झूठे प्रचार कर कुछ संगठनो तथा व्यक्तियों द्वारा धर्म के आधार पर निर्दोष लोगों को अपने जगहों और व्यवसायों से हटाने का कार्य लगातार किया गया है। चाहे अंकिता की हत्या हो या पुरोला में सांप्रदायिक तनाव, चंद लोगों की गुंडागर्दी और प्रशासन की निष्क्रियता से हमारे राज्य की बदनामी हो रही है, जिससे पर्यटन और लोगों की आजीविका का भी नुकसान हो रहा है ।

इस राज्य के असली मुद्दे कुछ और हैं। 2018 में भू कानून को संशोधन कर राज्य की जमीन की लूट के लिए दरवाज़ह खोल दिए गए। वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत वनों और वन ज़मीन पर आम जनता का हक़ होता है, लेकिन इस कानून पर अमल ही न कर प्रशासन उल्टा लाखों लोगों को “अतिक्रमणकारी” घोषित कर रही है। नया अध्यादेश लाने की प्रयास चल रही है और अगर यह “दस साला काला कानून” आ जाता है तो राज्य भर के लाखों लोग अपराधी घोषित हो सकते हैं जबकि सरकार अपनी  संवैधानिक फ़र्ज़ नहीं निभा रहा है। 

लेकिन पूंजीपतियों एवं बड़े परियोजनाओं से हो रही पर्यावरणीय क्षति पर कोई रोक नहीं है। यहाँ तक कि जोशीमठ जैसे पवित्र शहर भी खतरे मे है । साथ साथ में लोगों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो रही है। मनरेगा से ले कर मज़दूर योजना तक हर योजना में ढेर सारे पात्र लोगों को अपने हक़ों से वंचित रखा जा रहा है। योजनाओं एवं भर्ती प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार चरम स्तर पर है।  लेकिन लोगों को राहत और रोज़गार देने के बजाय, उल्टा सरकार बिजली के बिलों पर छूट से ले कर ज़मीन पर कम रेट तक, निजी कम्पनयों को 37 प्रकार की सब्सिडी दे रही है। 

यही स्थिति देश भर में भी दिखाई दे रही है। मणिपुर राज्य में ढाई महीने से लगातार हिंसा हो रही है। हाल में बाहर आये बर्बर बलात्कारी एवं हत्या की खबरों से दुनिया भर के लोग दुःख और आक्रोश को जता रहे हैं लेकिन हमारी सरकार मूकदर्शक बन कर बैठी है। इसके अलावा गांधीवादी विरासत के प्रतीक बनारस का सर्व सेवा संघ पर सरकार ने कब्ज़ा कर दिया और सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर दिया है। 

इसलिए हम चाहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार इन बिंदुओं पर कदम उठाये:

1. अपराध होने पर ज़िम्मेदार व्यक्तियों पर निष्पक्ष कार्रवाई हो, चाहे उनका धर्म, जाती या राजनैतिक संबंध कुछ भी हो। उत्तराखंड पुलिस अधिनियम का भाग 8 को संशोधन कर एक पूरी तरह से स्वतंत्र पुलिस शिकायत आयोग बनना चाहिए जो पुलिस की लापरवाही या दुरूपयोग पर कार्रवाई कर पाए। राज्य में लोकायुक्त को सक्रिय करते हुए उच्च न्यायालय के भीड़ की हिंसा पर फैसलों के अनुसार हर जिले में व्यवस्था की जाये। 

2.  प्रत्येक परिवार को राशन मिले और बाकी योजनाएं हर पात्र व्यक्ति को समय पर मिले, इसके लिए खास व्यवस्था बनाई जाये। निजी कंपनियों को सब्सिडी देना बंद किया जाये। कल्याणकारी योजनाओं पर अमल स्थानीय महिलाओं के द्वारा और उनकी निगरानी में होना चाहिए।

3. वन अधिकार अधिनियम के अनुसार हर गांव और पात्र परिवार को अपने वनों और ज़मीनों पर अधिकार पत्र दिया जाए। पहाड़ों में बंदोबस्त किया जाए और 2018 के भू कानून संशोधन को रद्द किया जाए ।

4. सरकार किसी को बेघर न करे। अगर किसी को हटाने की ज़रूरत है उनका पुनर्वास के लिए भी व्यवस्था बनाया जाये। इसके लिए कानून लाया जाना चाहिए। 

5. “दस साला काला कानून” का अध्यादेश के प्रस्ताव को वापस लिया जाये। 

6. मणिपुर में तुरंत कदम उठा कर सरकार हिंसा एवं महिलाओं पर अत्याचार को रोक दे। ज़िम्मेदार व्यक्तियों को सख्त सजा दी जाये। 

7. सर्व सेवा संघ  परिसर बनारस पर पुलिस  — प्रसासन के अवैध कब्जे को हटाया   जाए, और सत्याग्रहियों को रिहाई कर उन पर दर्ज मुकदमों को वापस लिया जाये।

8. वन संरक्षण अधिनियम में लाया जा रहा संशोधन को रद्द किया जाये। प्रस्तावित संशोधन से उत्तराखंड राज्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button