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देहरादून। उत्तराखंड के प्रमुख विपक्षी दलों ने राज्यपाल को ज्ञापन भेजते हुए सरकार के pkj अक्टूबर के आदेश के खिलाफ आवाज उठाई। इस आदेश द्वारा सरकार जिला अधिकारीयों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून द्वारा लोगों को हिरासत में लेने का अधिकार दिया गया है।
ज्ञापन द्वारा हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि इस आदेश से आम जनता के बीच भय का माहौल बन रहा है और जनता को सरकार की मंशा और इरादों पर शक हो रहा है। जब सरकार खुद इस बात का प्रचार कर रही है कि उत्तराखंड राज्य लॉ एंड आर्डर में देश का नंबर एक राज्य है, ऐसे असाधारण और आपातकाल कदम को उठाने की क्या ज़रूरत थी? क्या इस मुश्किल दौर में जनता की समस्यों को संवाद द्वारा समाधान निकालने के बजाय सरकार उनको ऐसे असाधारण कानून लगा कर कुचलना चाह रही है?
हस्ताक्षरकर्ताओं ने लिखा कि आदेश में सिर्फ लिखा है कि राज्य के कतिपय ज़िलों में हिंसक घटनाएं हुई है। लेकिन 2017, 2018 और अब भी हिंसक घटनाएं लगातार हुए हैं। सतपुली, मसूरी, आराघर, कीर्तिनगर, हरिद्वार, रायवाला, कोटद्वार, चम्बा, अगस्त्यमुनि, डोईवाला, घनसाली, रामनगर, रूड़की और अन्य जगहों में हिंसा कर दंगा फैलाने की कोशिश की गयी थी। लेकिन इन सारे घटनाओं के बाद भी हिंसक कार्यकर्तों और संगठनों के विरुद्ध कोई सख्त कार्यवाही नहीं की गयी थी।
हस्ताक्षरकर्ताओं ने लिखा कि इससे सरकार की मंशा पर बड़ा शक लगता है। अगर कोई भी किसी भी प्रकार का अपराध करता है, उसपर क़ानूनी कार्यवाही होनी चाहिए, चाहे उसका धर्म या जात कुछ भी हो। लेकिन एक तरफ हिंसा को अंजाम देना और दूसरी तरफ असाधारण कानून लगा कर चुनावी समय में लोकतंत्र को कुचलना, यह गैर संवैधानिक और जन विरोधी कार्य है।
ाापन देने वालों में सुरेंद्र अग्रवाल, प्रवक्ता, कांग्रेस , समर भंडारी, राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , एसएन सचान, राज्य अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी , शिव प्रसाद सेमवाल, केंद्रीय प्रवक्ता, उत्तराखंड क्रांति दल, राजेंद्र नेगी, राज्य सचिव, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ,राकेश पंत, राज्य संयोजक, तृणमूल कांग्रेस, हरजिंदर सिंह, राज्य अध्यक्ष, जनता दल (सेक्युलर, आदि शामिल थे।