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चमोली जिले में अयोजित की गयी उत्तराखण्ड की साहित्य परम्परा पर शोध संगोष्ठी

उत्तराखंड संस्कृत अकादमी द्वारा संस्कृत माह का प्रारम्भ किया गया है। जिसका शुभारम्भ दिनांक 15 सितम्बर 2023 को चमोली जिले से किया गया। डा. शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग के जनपद संयोजक, संस्कृत विभाग के सहायक प्राध्यापक डा. मृगांक मलासी को चमोली जिले का संयोजक बनाया गया है। संगोष्ठी का विषय था – उत्तराखण्डस्य साहित्यपरम्परा।
कार्यक्रम का शुभारम्भ कर्णप्रयाग महाविद्यालय की छात्राओं अमीषा रावत एवं सलोनी द्वारा वैदिक मंगलाचरण से हुआ। उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के शोध अधिकारी डा. हरीश गुरुरानी ने अपने प्रास्ताविक उद्बोधन में कहा कि अकादमी ने इस वर्ष संस्कृत मास मनाने का संकल्प लिया है जिसे उत्तराखण्ड के प्रत्येक जिले में मनाया जा रहा है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. जोरावर सिंह ने उत्तराखण्ड की साहित्य परम्परा पर विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि यद्यपि उत्तराखण्ड पूर्व में उत्तरप्रदेश के अन्तर्गत था तथापि ऐतिहासिक दृष्टि से ईसा की आठवीं शताव्दी के आस-पास संस्कृत आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है। यदि इस क्षेत्र में और अधिक अनुसंधान किया जाए तो यह परम्परा इससे भी प्राचीन सिद्ध होगी। श्रीहरि का प्रथम उल्लेख हमें प्राप्त होता है जो चन्द्रवंशीय राजाओं के मूल पुरुष सोमदेव के साथ इस देवभूमि में आए। इन्हीं की परम्परा के सत्रहवीं शताब्दी में प्रख्यात विद्वान् विश्वेश्वर पाण्डेय हुए। उर्वीदत्त पाण्डेय, पण्डित बालकृष्ण भट्ट, पण्डित गोपाल दत्त पाण्डेय, सदानन्द डबराल, डा. अशोक डबराल आदि विद्वानों ने इस परम्परा को अनवरत जारी रखा। आज 21 वीं शताब्दी में आचार्य शिवप्रसाद भारद्वाज, आचार्य जगदीश सेमवाल, आचार्य हरिनारायण दीक्षित, डा. निरंजन मिश्र आदि विद्वान संस्कृत साहित्य में नूतन ग्रन्थों का प्रणयन कर रहे हैं। यह भी हर्ष का विषय है कि वर्तमान में नये युवा भी संस्कृत गीत, ग्रन्थ आदि की रचना कर रहे हैं।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर सविता मोहन, पूर्व संयुक्त निदेशक उच्च शिक्षा उत्तराखंड जो कि उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी की प्रथम सचिव भी रही हैं, ने कहा कि ये बड़े गौरव का विषय है कि उत्तराखण्ड में संस्कृत साहित्य की परम्परा को अन्य लोग भी जानेंगे। देवभूमि में पुराणों की भी रचना हुई है। ये धरती वेद, उपनिषद्, दर्शन, योग, साहित्य आदि समस्त कलाओं की भूमि है। सैकड़ों विद्वानों ने अपनी सारस्वत साधना से यहाँ का नाम गौरवान्वित किया है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री मुनीश्वर वेदांग महाविद्यालय ऋषिकेश के प्रधानाचार्य, डा. जनार्दन कैरवान ने कहा कि हमारे प्रदेश में अनेक ऐसे आचार्य हुए हैं जिन्होंने आजीवन साहित्य साधना में अपना जीवन व्यतीत कर दिया लेकिन अधिकांश लोग उनका नाम भी नहीं जानते। आचार्य सिलोड़ी जी, आचार्य जगन्नाथ राव आदि विद्वानों ने अपना समूचा जीवन इस सारस्वत साधना में लगा दिया। ज्योतिष, कर्मकाण्ड, साहित्य ही नहीं वरन् विज्ञान के क्षेत्र में भी संस्कृत का सर्वाधिक योगदान है, ऐसे में आज के युवाओं को जो छात्र उत्तराखण्ड या अन्यत्र गुरुकुल माध्यम से अध्ययन कर रहे हैं उन्हें उचित निर्देशन मिले।
राज्य संयोजक के रूप में डा. शिव प्रसाद खाली ने सभी का धन्यवाद किया साथ ही आगामी योजनाओं के विषय में बताया जो निस्सन्देह संस्कृत के हित में होंगी।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कर्णप्रयाग महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. के. एल. तलवाड़ ने बकहा कि यह बड़े हर्ष का विषय है कि इस संगोष्ठी के माध्यम से हमें अपनी विरासत को जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। क्योंकि संस्कृत भाषा पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भाषा है ऐसे में भारतीय ज्ञान परम्परा के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। इस शताब्दी का तीसरा दशक उत्तराखण्ड का है, ऐसे में यह और भी आवश्यक हो जाता है उत्तराखण्ड की देवभूमि जिसने प्राचीन समय में भी पग-प्रदर्शन किया था वह आज पुनः इस दायित्व को अपने ऊपर ले।
संगोष्ठी का संचालन कर रहे महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. मृगांक मलासी ने बताया कि आगामी सत्र में इस विषय पर और भी गम्भीर चिन्तन किया जाएगा। महाविद्यालय में संस्कृत को लेकर प्राचार्य अत्यधिक उत्साही हैं, ऐसे में उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी का सहयोग मिलने से यह कार्य और भी अधिक गति से आगे बढ़ेगा।
कार्यक्रम के सह-संयोजक डॉ. हरीश बहुगुणा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में सौ से अधिक छात्र-छात्राएँ एवं अन्य जन सम्मिलित हुए। समस्त कार्यक्रम ऑनलाइन माध्यम से हुआ। संगोष्ठी में संस्कृत विभाग प्रभारी डॉ. चन्द्रावती टम्टा, डॉ. हरीश बहुगुणा व डा.पंकज कुमार सहित अन्य प्राध्यापक,शोध छात्र व विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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