वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार “शिरीष” नहीं रहे
प्रसिद्ध साहित्यकार-कवि श्री आर.पी. . डंगवाल “शिरीष” का यूं ही अकस्मात चला जाना, हिंदी साहित्य जगत की एक अपूरणीय क्षति हुई है। श्री डंगवाल “शिरीष” पिछले कुछ दिनों से ऋषिकेश, एम्स में बीमारी के कारण भर्ती थे और गहन चिकित्सा के बाद भी 30 जनवरी 2025 को 86 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया।
*शिरीष” टिहरी गढ़वाल के घनसाली ब्लॉक ग्राम डांग, गयारह गांव हिंदाव के रहने वाले थे। साहित्य में रुचि के कारण उन्होंने 14 वर्ष की बाल्यावस्था से ही कविता और लेख लिखना प्रारंभ कर दियाथा जिससे उस समय के बड़े-बड़े लोग उनके इस कौशल से प्रभावित हुआ करते थे। स्वामी शिवानंद आश्रम, मुनि की रेती ऋषिकेश में 17 वर्ष की बाल्यावस्था में अंग्रेजी में कविता सुना कर उन्होंने सबको आश्चर्यचरित कर दिया था और तब उनको राष्ट्रपति भवन आने का भी निमंत्रण मिला था।
श्री डंगवाल “शिरीष” उत्तर प्रदेश सरकार में जिला स्वास्थ्य सूचना अधिकारी के रूप में कार्यरत रहते हुए भी लेख और कविताओं का सृजन करते रहे। श्री डंगवाल शिरीष लगभग 70 वर्ष तक साहित्य जगत में मां हिंदी की सेवा करते रहे। उनकी हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत तीनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। वे बड़े विद्वान और अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में सैकड़ो कविताएं – लेख और कई पुस्तकें भी लिखी हैं जो समय-समय पर राज्य और राष्ट्रीय स्तर की अलग-अलग पत्रिकाओं में छपती रही। श्री डंगवाल शिरीष जी ने लगभग तीन विश्वविद्यालयों के कुल गीत लिख कर बहुत उच्च स्तरीय सम्मान प्राप्त किया। शिरीष जी ने जिला,राज्य और राष्ट्रीय स्तरीय कवि सम्मेलनों में कई बार प्रतिभाग के साथ-साथ संचालन करने का अवसर भी प्राप्त किया। शिरीष जी ने कई साहित्यिक मंच और साहित्यिक संस्थाओं का गठन भी किया था।
उनकी साहित्यिक कर्म भूमि अधिकतम ऋषिकेश और उत्तरकाशी में रही। कई सामाजिक और साहित्यिक संस्थानों और सरकारों द्वारा उन्हें समय-समय पर सम्मान भी प्राप्त होते रहे। कुछ उल्लेखनीय सम्मानों में डॉ सुमित्रानंदन पंत साहित्य सम्मान, उत्तराखंड “ब्रह्म कमल” साहित्य सम्मान, डॉ मालसी साहित्य सम्मान, “डॉ पार्थ सारथी डबराल साहित्य सम्मान, उत्तराखंड उत्कृष्ट रचनाकार साहित्य सम्मान, श्री देव सुमन साहित्य सम्मान, उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान इत्यादि।
श्री डंगवाल “शिरीष”जी ने अपनी लेख कविताओं द्वारा सदैव सामाजिक विषमताओं सामाजिक मानवीय मूल्य, पर्यावरण संरक्षण, दैनिक जीवन के उपयोग की सामान्य किंतु अपरिहार्य वस्तुओं पर पाठकों का ध्यान हमेशा आकर्षित करते रहे। वे जीवन के अंत तक मातृभाषा हिंदी के प्रसार हेतु प्रयत्नशील और जागरूक रहे तथा निरंतर साहित्य सृजन में अपनी लेखनी को क्रिया और गतिशील रखकर अमूल्य योगदान देते रहे।
“शिरीष” जी का सामाजिक दायित्व से भरा प्रेरक साहित्य आज की पीढ़ी और नौजवानों के लिए अवश्य ही प्रेरणास्पद रहेगा। हम सब ऐसे महान साहित्यकार को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।