उत्तरप्रदेश

भगवान महावीर के सिद्धांतों को बढ़ाने में टीएमयू अग्रणी

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद और उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान, लखनऊ की ओर से तीर्थंकर महावीर के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार में विद्यार्थियों की भूमिका पर ऑडी में आयोजित संगोष्ठी, टीएमयू में 61 शोधार्थी जैन धर्म पर कर रहे हैं रिसर्च, जैन धर्म में 18 पीएचडी अवार्ड करा चुकी है तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी

ख़ास बातें
स्टुडेंट्स स्वामी महावीर के सिद्धांतों को करें आत्मसात: डॉ. विशेष गुप्ता
प्रो. अभय कुमार जैन बोले, वैदिक और जैन पराम्पराएं दोनों सहोदर
अनेकान्तवाद, स्यादवाद का सिद्धांत जैन धर्म से ही: प्रो. हरबंश दीक्षित
संगोष्ठी के विजेता रहे जैन स्टडीज के पीएचडी स्कॉलर गौरव जैन

उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान, लखनऊ के उपाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) अभय कुमार जैन ने कहा, यदि स्टुडेंट्स अहिंसात्मक होंगे, तो देश अहिंसात्मक होगा। छात्रों को ज्ञान के लिए उत्सुक रहना चाहिए। हमें अपनी परम्पराओं को समझना होगा। वैदिक और जैन पराम्पराएं दोनों सहोदर हैं। इन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने स्टुडेंट्स से कहा, आप जो भी पढ़ते हो, उसे नोट जरूर करो। उस शब्दों पर सोचो और उनके अर्थ को समझो। देव दर्शन सर्वोदय तीर्थ है। नित्य नमोकार मंत्र का जाप करो। अनेकान्तवाद ही सभी धर्मों को जोड़ने में समर्थ है।

इससे ही धर्मं की लड़ाइयां रोकी जा सकती हैं। डॉ. जैन तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद और उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान, लखनऊ की ओर से तीर्थंकर महावीर के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार में विद्यार्थियों की भूमिका पर ऑडी में आयोजित संगोष्ठी में बतौर विशिष्ट अतिथि बोल रहे थे। इससे पहले उप्र बाल संरक्षण आयोग के निवर्तमान अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता ने बतौर मुख्य अतिथि, उप्र. जैन विद्या शोध संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. अभय कुमार जैन, टीएमयू ला कॉलेज के डीन प्रो. हरबंश दीक्षित, टिमिट के प्राचार्य प्रो. विपिन जैन, मुख्य छात्रावास अधीक्षक श्री विपिन जैन, टिमिट बीटीसी प्राचार्या डॉ. कल्पना जैन आदि ने बतौर विशिष्ट मोक्षकल्यानम ओमकारय नमो नमः के साथ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके संगोष्ठी का शुभारम्भ किया।

छात्रा वैष्णवी चैधरी ने जैनम जयतु शासनं पर नृत्य के साथ मंगलाचरण प्रस्तुत किया। इस मौके पर सभी अतिथियों का बुके देकर गर्मजोशी से स्वागत हुआ। अंत में स्मृति चिन्ह और शाल भी भेंट किए गए। संगोष्ठी में जैन स्टडीज के पीएचडी स्कॉलर श्री गौरव जैन विजेता रहे। छात्र संयम जैन सेकेंड, जबकि उज्ज्वल जैन थर्ड स्थान पर रहे। इन विजेता स्टुडेंट्स को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। स्टुडेंट्स कृति जैन, आस्था जैन और अंशिका जैन को सांत्वना पुरस्कार देकर सम्मनित किया गया। उल्लेखनीय है, टीएमयू में 61 शोधार्थी जैन धर्म पर शोध कार्य कर रहे हैं। टीएमयू जैन धर्म में 18 पीएचडी अवार्ड करा चुकी है। संचालन मुख्य छात्रावास अधीक्षक श्री विपिन जैन ने किया, जबकि टिमिट के प्राचार्य प्रो. विपिन जैन ने सभी का आभार व्यक्त किया।

उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान, लखनऊ के उपाध्यक्ष प्रो. जैन ने कहा, स्टुडेंट्स से निबंध, चित्रकला, संगोष्ठी आदि से हम उनके विचारों को जानते हैं। हमारी संस्थान का उद्देश्य इन प्रतियोगिताओं से स्टुडेंट्स के बीच तीर्थंकर महावीर की शिक्षाओं को जानना है। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा, अगले साल से जैन विद्या शोध संस्थान बीए का कोर्स प्रारम्भ करने जा रहा है। इसमें जैन अध्ययन के साथ-साथ पाली, प्राकृत, संस्कृत और किसी अन्य एक विषय के साथ बीए कर सकते हैं। हम शोध भी कराते हैं। हमने अपने कंटेंट को डिजिटल लाइब्रेरी के रूप में दिया हुआ है। सभी ग्रंथ और अध्ययन वहां पर देखे जा सकते हैं। प्रो. जैन बोले, सत्य और अहिंसा महावीर को पाने का एक पथ है। दर्शन बेचने की नहीं, अपितु अपनाने की वस्तु है। जैन धर्म हमारा नहीं है, बल्कि उनका है, जो इसे अपना रहे है। गीता के एक श्लोक को कोट करते हुए बताया, धर्म किसी एक का नहीं, धर्म सबका है। धर्म धारण करने की वस्तु है। कल्याण की वस्तु है।

उप्र बाल संरक्षण आयोग के निवर्तमान अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता बतौर मुख्य अतिथि बोले, टीएमयू भगवान महावीर के सिद्धांतों को आगे बढ़ा रही है। दीप का प्रयोग गौतम बुद्ध ने भी किया है और भगवान महावीर ने भी। दीप का अर्थ है, अपने आत्मज्ञान को जानना। आत्मज्ञान के बिना उन्नति नहीं हो सकती है। भगवान महावीर अवतार हैं। जो समाज के अहंकारों से परे अवतरण हो, वही अवतार है। मानवीय गुण कैसे होने चाहिए, यह हमें अवतार ही बताता है। वह सामान्य से अलग हैं। वह व्यक्तित्व का बहुआयामी रूप हैं। एक छात्र की भूमिका में हमें महावीर के सिद्धांतों को आत्मसात करना होगा। हमें सत्य, त्याग और अहिंसा को अपनाना होगा। इनके बिना मानव की प्रवृति पाश्विक होगी।

छात्र का कार्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं, बल्कि सुसुप्त अवस्था को जागरूक करके देश के लिए उपयोगी बनना है। सभी धर्मों के सिद्धांत सनातन परम्परा से निकले हैं। यह बहुत ही प्राचीन है। आधुनिक साइंस से समृद्ध साइंस रामायण और महाभारत काल में थी। गुरू नानक की कहानी के जरिए समझाया कि ज्ञानी व्यक्तियों को बिखरने की आवश्यकता है, जिससे ज्ञान का प्रचार-प्रसार हो सके। स्टुडेंट्स को भगवान महावीर के सिद्धांतों को फैलाना होगा। ये सिद्धांत पुरूषार्थ प्रदान करते हैं और मानवीय गुणों से परिपूर्ण हैं। स्टुडेंट्स को आसक्ति से बचना होगा। कम से कम संग्रह करना होगा। इस संस्थान की नींव में भगवान के सिद्धांत समाहित हैं। आप महावीर के सिद्धांतों के दूत बनें। इन्हें जीवन में समाहित करने से ही विकसित समाज का निर्माण होगा।

बतौर विशिष्ट अतिथि प्रो. हरबंश दीक्षित बोले, जीवन में प्रबंधन का सबसे बड़ा सूत्र असहमति को स्वीकार करना है। अनेकान्तवाद और स्यादवाद का सिद्धांत विश्व में सबसे पहले जैन धर्म ने ही दिया था। जैन पूजा-पद्धति विश्व की एकमात्र पूजा-पद्धति है, जो संस्थागत रूप से क्षमा मांगती है। यह हमें हिंसा से बचाता है। हिंसा से बचकर आगे बढ़ने में स्यादवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि हम सच्चे हैं तो दूसरा भी सच्चा हो सकता है। यह केवल लोकतंत्र में ही नहीं, बल्कि विज्ञान में भी है। विज्ञान भी मानता है कि कोई भी सच अंतिम सत्य नहीं हो सकता है।

सभी अनुसंधान इसी तथ्य के कारण हुई हैं। हमें सबके सच को स्वीकार करना है। कार्यक्रम में डॉ. रत्नेश जैन, डॉ. विनोद जैन, श्री अमरेंद्र त्रिपाठी, डॉ. आशीष सिंघई, डॉ. नम्रता जैन, डॉ. आदित्य विक्रम, श्री आदित्य जैन, श्री विनय कुमार, श्री धर्मेन्द्र कुमार, श्रीमती पायल शर्मा, श्रीमती निकिता जैन, श्रीमती प्रीति जैन आदि की उल्लेखनीय मौजूदगी रही।

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