उत्तराखंडसामाजिक

कल फिर जब सुबह होगी

उत्तराखंड के कालजयी कवि गीतकार संगीतकार मानवीय संवेदना के चितेरे स्वनामधन्य नरेंद्र सिंह नेगी जी के जन्मदिवस के अवसर पर पूरे उत्तराखंड ने उनको अपना प्यार और शुभकामनाएं दी हालांकि कार्यक्रम संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में संपन्न हुआ पर हमारा गौं मां बोल्दन “जख सयाणु पौछिगै तो समझा पूरू गौं पौछिगै ” । तमाम व्यस्ताओं के बाबजूद मुख्यमंत्री जी का आना मायने रखता है।
प्रशासनिक सेवा में रहते हुए प्रशानिक कार्यों पर लिखना थोड़ा आसान काम है लेकिन किसी साहित्यकार पर लिखना बहुत ही कठिन ,बहुत एकाग्रता का होना आवश्यक हो जाता है। अपने दैनिक प्रशासनिक कार्यों को देखते हुए ये कार्य करना अनुकरणीय है। जैसा कि उनकी पत्नी ने कहा कि शायद हम उनको अपना एकांत दे पाए आपने दिया तभी ये संभव हुआ “कल फिर जब सुबह होगी” ग्रंथ के रचनाकार ललित मोहन रयाल जी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि हमारी आदत ” ह्वै जालू ” ने उन्हें एक सबक दिया कि कोई भी कार्य कल पर नहीं छोड़ना है । हुआ यूं कि उनका डाटा खत्म होने पर उन्होने सोचा कि फिर कर लेंगे और अपना ड्राफ्ट लिख कर सेव करते रहे अंत में देखते हैं कि डाटा सेव ही नहीं हुआ और वो “खौलै गये” फिर उन्हें अपने पिताजी की बात याद आई “हम तो घण से कुल्हाडी़बने हैं” ने फिर से लिखने को प्रेरित किया। मुख्य अतिथि प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी जी ने अपनी शुभकामनाएं गढ़वाली में देकर कहा कि मैने नेगी जी के गीत सुनकर गढ़वाली सीखी है उन्होंने “घुगुति घुराण लगीं “गीत सुना कर अपनी भावनाएं प्रेषित की। विशिष्ट अतिथि दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल ने अपने साथ घटी एक घटना से नेगी जी के फलक के विस्तार के बारे में बताया ” कि एक बार उनके ससुराल में एक बुजुर्ग अपने समधीण के घर से आए मैंने पूछा कैसा लगा आपको उन्होंने कहा कि मेरा भाग नेगी जी जैसे कहां मेरी समधण तो बिलकुल बेसगोरिया है कुछ ढंग का नहीं बनाती चाय तो बिलकुल “घलत्याणा” बनाती है पास में खड़े एक लड़के ने पूछा “घलत्याणा”का मतलब ? जब तक मै जवाब देती तब तक उन्होंने कहा कि घलत्याण मतलब मेरी समधण और चरचरी बरबरी मतलब नेगी जी की समधण” ये है नेगी जी का लोक पर प्रभाव । विशिष्ट अतिथि पूर्व DGP अनिल रतूड़ी जी ने कहा कि नेगी जी पर लिखना अपने आप में बड़ा काम है उन्हों ने कहा कि नेगी की रचनाओं में से कुछ गीत चुनना सागर में मोती चुनना जैसा है और वो कार्य ललित मोहन रयाल ने किया।।
पत्रकार मेहरबान सिंह मनु ने उनके चुनिंदा गीतों को सुनाकर उनकी लोकजीवन की पकड़ को उजागर किया ।
उनके गीतों ने लोगों को गढ़वाली सीखने को विवश किया , उन पर लिखी किताब के बारे में बता रहे शिव प्रसाद सेमवाल जी ने एक वाकिया सुनाया कि जब वो रुद्रप्रयाग में कार्यरत थे तो साक्षरता अभियान के दौरान कृष्ण कुमार जी आए हुए थे ओम प्रकाश सेमवाल जी ने नेगी जी का गीत “हे झोतू तेरी जमादारी ” सुनाया तो कृष्ण कुमार जी जो हिंदी भी ठीक से नहीं बोल पाते थे,उस गीत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने रात उस गीत का अभ्यास कर सुबह वो गीत सुनाया । हाथरस के शर्मा जी अपनी नौकरी के दौरान नेगी जी के गीतों को सुनते सुनते गढ़वाली सीख गए , उन्होंने दुबई में नेगी जी के गीत गए उन्होंने कहा कि वृजभाषा और गढ़वाली के बहुत से शब्द मिलते हैं और आपस में उनका रिश्ता मौसी का है इसलिए नेगी जी मेरे मौसेरे भाई हैं, उन्होंने नेगी जी का गीत सुना कर दुबई से लाए इत्र भेंट कर शुभकामनाएं दीं।
दिल्ली से आए रुद्रप्रयाग के डॉ ईशान पुरोहित ने अपनी माताजी के नाम “श्रीमती सुशीला देवी फैलोशिप” ग्राम पाली जैखड़ के मद्धम से 251000/= की फेलोशिप धनराशि नेगी जी को भेंट की ।
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश सेमवाल शास्त्री जी ने उत्तराखंड लोक समाज सम्मान पत्र पढ़ कर अपनी और सभी की ओर से शुभकामनाएं प्रेषित की।
उत्तराखंड लोक समाज की ओर से सामाजिक कार्यकर्ता सचिदानंद भारती “पाणी रखो के प्रणेता ने “नरेंद्र नेगी संस्कृति सम्मान” हिमालयी ( कश्मीर और अन्य हिमालयी राज्यों में कार्य करने वाले) संस्कृति पर कार्य कर रहे लोगों को हर साल देने की घोषणा की ।
लोकसंस्कृति के पुरोधा डॉ नंदकिशोर हटवाल ने नेगी जी के रचनाओं को लोक वाणी बताया वहीं ये भी कहा कि नेगी जी के बारे में कहने को कई जन्म लेने होंगे ।
“धाद” पत्रिका के 10 वर्ष पूरे होने पर नेगी जी पर केंद्रित अंक का विमोचन मुख्यमंत्री जी और अथिति के कर कमलों से किया गया। संचालन के माहिर गणेश कुकसाल “गणी” ने अपने सुपरिचित अंदाज में बड़े ही साहित्यिक ढंग से नेगी जी के रचना संसार को लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया और कड़ियों को पिरोया ।
कुल मिला कर कार्यक्रम नेगी जी को तो याद रहेगा ही हम सब की स्मृति में भी हमेशा के लिए फीड हो गया । नरेंद्र सिंह नेगी जी सत आयु हों और उनकी कीर्ति यूं ही फैलती रहे यहीं भगवान से प्रार्थना है।

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