वैश्विक शिक्षा परिवेश में भारत’ विषय पर गोष्ठी और मुशायरा
प्रयागराज: वर्तमान शिक्षा को जारी रखते हुए इसके ढाचे को समझने और इसमें परिवर्तन करने की आवश्यकता है ताकि हमारे बच्चे सही रूप में शिक्षा ग्रहण करें। आज के दौर में हमारे बच्चों को डिग्री लेना सिखाया जाता है, शिक्षा ग्रहण का मतलब ही यही हो गया है।
जबकि शिक्षा ग्रहण करने का आशय ज्ञान बढ़ाने से है। परीक्षा पास कर लेने को ही शिक्षा ग्रहण करना बता दिया गया है, जिसकी वजह से हम सही मायने में आगे नहीं बढ़ पाते। आज ज़रूरत इस बात की है कि हम वास्तविक ज्ञान अर्जित करने के उद्देश्य से बच्चों को पढ़ायें। बच्चों को बताया जाए कि वास्तविक शिक्षा ग्रहण करना किसे कहते हैं। यह बात सोमवार को गुफ़्तगू की ओर से आयोजित ‘वैश्विक शिक्षा परिवेश में भारत’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अमेरिका के धनंजय कुमार ने कही।
धनंजय कुमार ने कहा कि आज के बच्चे ही उत्तम भविष्य का निर्माण कर सकते हैं यदि उन्हें ‘प्रज्ञालय’ शिक्षा का अवसर प्राप्त हो। मानसिक विकास और दूरदर्शिता, प्रकृति से संयोग आौर सभी समस्याओं का समाधान खोज लेने की क्षमता ही प्रज्ञालय के माध्यम से चलाई जा रही है। कुछ बड़ा करने और बदलने की लालसा ही आज के बच्चों का उद्देश्य होना चाहिए।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मीडिया स्टडी सेंटर के को-आर्डिनेटर डॉ. धनंजय चोपड़ा ने कहा कि वर्ष 2010 के बाद जिन बच्चों का जन्म हो रहा है, उनके जीवन यापन और शिक्षा का तरीका बदल गया है। इस समय इसी को देखते हुए बच्चों के अंदर शिक्षा की पद्धति को बदलने की आवश्यकता है।
रट लेने से याददाश्त बढ़ती है, जबकि समझने से बुद्धि का विकास होता है। इसी को ध्यान रखते हुए बच्चों को शिक्षा प्रदान किए जाने की आवश्यकता है। आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री पकज जायसवाल ने कहा कि भारत में बढ़ती जनसंख्या के साथ बच्चों को शिक्षा देने का तरीका बदल रहा है। चित्रों और रेखाचित्रों के माध्यम से बच्चों को समझाना आसान हो गया है।
गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि आज समय में बच्चों का सही मार्गदर्शन करना आवश्यक है, ताकि खुद उस बच्चे के विकास के साथ देश और समाज का बेहतर निर्माण और विकास हो सके। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रधानाध्यापिका सुनीता श्रीवास्तव ने कहा कि मैं शुरू से ही बच्चों को मार्गदर्शन करने का काम करती रही हूं। ये बच्चे ही हमारे देश और समाज के भविष्य हैं। अभिभावकों को खुद भी उनके शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए, सिर्फ़ स्कूल और अध्यापकों के भरोसे नहीं रहना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन शैलेंद्र जय ने किया।
दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। अनिल मानव, नरेश महरानी, डॉ. वीरेंद्र तिवारी, धीरेंद्र सिंह नागा, कमल किशोर कमल, शाहिद सफ़र, शकील सिद्दीक़ी आदि ने कलाम पेश कियां।