उत्तराखंड

उत्तराखंड के गांधी जी की जन्मशताब्दी के अवसर पर माल्यार्पण कर दी श्रद्धांजलि

राम चंद्र उनियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी में स्वर्गीय इंद्र मणि बडोनी उत्तराखंड के गांधी जी की जन्मशताब्दी के अवसर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। महाविद्यालय की प्रभारी प्राचार्य डॉ विनीता कोहली द्वारा बडोनी जी के चित्र का अनावरण किया गया। तत्पश्चात वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ एम पी एस परमार जी द्वारा बडोनी जी के जीवन पर वक्तव्य दिया गया। उन्होंने बताया कि कि उनका जन्म अखोड़ी गांव में हुआ। वहां से विषम परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने उत्तराखंड आंदोलन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया। स्वर्गीय इंद्रमणि बड़ोनी ने अपनी ग्रामसभा अखोड़ी से स्वतंत्र भारत के प्रथम पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान के रूप में निर्वाचित होकर राजनीति में प्रवेश किया और फिर जखोली ब्लाक के ब्लाक प्रमुख बनें। सन् 1967 में प्रथम देवप्रयाग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से प्रथम बार विधायक बने और तीन बार देवप्रयाग विधानसभा के विधायक चुने गये। इंद्रमणि बड़ोनी एक बेहद कुशल वक्ता थे,उनकी भाषा सारगर्भित एवं प्रभावोत्पादक रहती थी। बगैर किसी लाग–लपेट के सीधी–सादी बोली में वे बेहद ही सरलता से अपनी बात कह जाते थे। गंभीर और गूढ़ विषयों पर उनकी पकड़ थी। उन्होंने गढ़वाल में कई स्कूल खोले, जिनमें इंटरमीडिएट कॉलेज कठूड, मैगाधार, धूतू एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय बुगालीधार प्रमुख हैं।  उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के लिए स्व.इन्द्रमणी बड़ोनी निरन्तर जन–संघर्ष करते हुए 18 अगस्त सन 1999 को ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में हमेशा के लिए चिरनिंद्रा में लीन हो गए।स्व. इंद्रमणी बड़ोनी का जीवन त्याग,तपस्या व बलिदान की एक जिन्दा मिसाल है। तदोपरांत प्रख्यात समाजसेवी, रंगकर्मी दिनेश भट्ट ने स्वर्गीय बडोनी जी के जीवन से जुड़ी स्मृतियों को सभी के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि इंद्रमणि बडोनी बचपन से ही विद्रोही एवं अल्हड़ प्रकृति के स्वतंत्रता प्रेमी व्यक्ति थे। उन्हीं दिनों महात्मा गांधी की प्रमुख शिष्या मीराबेन टिहरी के गांवों में भ्रमण के लिए आयीं तो वहां उनकी भेंट इंद्रमणि बड़ोनी से हुई। मीराबेन से मुलाकात के बाद इंद्रमणि बड़ोनी के जीवन की धारा ही मानो बदल गई,अब वे सत्य और अहिंसा के पुजारी बन गये। इस घटना के बाद बड़ोनी सत्याग्रह का महत्व समझने लगे और उत्तराखण्ड में लोग उन्हें उत्तराखंड का गांधी के नाम से पुकारने लगे। पश्चात प्रभारी प्राचार्य डॉ विनीता कोहली ने स्वर्गीय बडोनी जी के उत्तराखंड आंदोलन में सहयोग के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय इंद्र मणि बडोनी जी के उत्तराखंड आंदोलन में सहयोग अविस्मरणीय है। स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर एवं लोक कलाओं का गहनता से अध्ययन किया था, वह कहते थे कि उत्तराखंड क्या है, यहाँ की परम्पराएं क्या है? यहाँ के महापुरुषों ने संसार और मानवता के लिए जो महान कार्य किये हैं, यही संदेश हमें जन-जन तक पहुंचाना चाहिए। तत्पश्चात सभी प्राध्यापकों एवं कर्मचारी वर्ग ने पुष्पांजलि अर्पित कर स्वर्गीय बडोनी को याद किया।

महाविद्यालय की प्रभारी प्राचार्य डॉ विनीता कोहली द्वारा बडोनी जी के चित्र का अनावरण किया गया। तत्पश्चात वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ एम पी एस परमार जी द्वारा बडोनी जी के जीवन पर वक्तव्य दिया गया। उन्होंने बताया कि कि उनका जन्म अखोड़ी गांव में हुआ। वहां से विषम परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने उत्तराखंड आंदोलन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया। स्वर्गीय इंद्रमणि बड़ोनी ने अपनी ग्रामसभा अखोड़ी से स्वतंत्र भारत के प्रथम पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान के रूप में निर्वाचित होकर राजनीति में प्रवेश किया और फिर जखोली ब्लाक के ब्लाक प्रमुख बनें। सन् 1967 में प्रथम देवप्रयाग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से प्रथम बार विधायक बने और तीन बार देवप्रयाग विधानसभा के विधायक चुने गये। इंद्रमणि बड़ोनी एक बेहद कुशल वक्ता थे,उनकी भाषा सारगर्भित एवं प्रभावोत्पादक रहती थी। बगैर किसी लाग–लपेट के सीधी–सादी बोली में वे बेहद ही सरलता से अपनी बात कह जाते थे। गंभीर और गूढ़ विषयों पर उनकी पकड़ थी। उन्होंने गढ़वाल में कई स्कूल खोले, जिनमें इंटरमीडिएट कॉलेज कठूड, मैगाधार, धूतू एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय बुगालीधार प्रमुख हैं। 
उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के लिए स्व.इन्द्रमणी बड़ोनी निरन्तर जन–संघर्ष करते हुए 18 अगस्त सन 1999 को ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में हमेशा के लिए चिरनिंद्रा में लीन हो गए।स्व. इंद्रमणी बड़ोनी का जीवन त्याग,तपस्या व बलिदान की एक जिन्दा मिसाल है।
तदोपरांत प्रख्यात समाजसेवी, रंगकर्मी दिनेश भट्ट ने स्वर्गीय बडोनी जी के जीवन से जुड़ी स्मृतियों को सभी के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि इंद्रमणि बडोनी बचपन से ही विद्रोही एवं अल्हड़ प्रकृति के स्वतंत्रता प्रेमी व्यक्ति थे। उन्हीं दिनों महात्मा गांधी की प्रमुख शिष्या मीराबेन टिहरी के गांवों में भ्रमण के लिए आयीं तो वहां उनकी भेंट इंद्रमणि बड़ोनी से हुई। मीराबेन से मुलाकात के बाद इंद्रमणि बड़ोनी के जीवन की धारा ही मानो बदल गई,अब वे सत्य और अहिंसा के पुजारी बन गये। इस घटना के बाद बड़ोनी सत्याग्रह का महत्व समझने लगे और उत्तराखण्ड में लोग उन्हें उत्तराखंड का गांधी के नाम से पुकारने लगे।
पश्चात प्रभारी प्राचार्य डॉ विनीता कोहली ने स्वर्गीय बडोनी जी के उत्तराखंड आंदोलन में सहयोग के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय इंद्र मणि बडोनी जी के उत्तराखंड आंदोलन में सहयोग अविस्मरणीय है। स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर एवं लोक कलाओं का गहनता से अध्ययन किया था, वह कहते थे कि उत्तराखंड क्या है, यहाँ की परम्पराएं क्या है? यहाँ के महापुरुषों ने संसार और मानवता के लिए जो महान कार्य किये हैं, यही संदेश हमें जन-जन तक पहुंचाना चाहिए। तत्पश्चात सभी प्राध्यापकों एवं कर्मचारी वर्ग ने पुष्पांजलि अर्पित कर स्वर्गीय बडोनी को याद किया।

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