

यमुना घाटी के लोकरंग दून लाइब्रेरी द्वारा यमुना घाटी के लोकरंग पर संवाद कार्यक्रम में रवाईं जौनसार लोकभाषा और संस्कृति के मर्मज्ञ नंदलाल भारती और अनिल बेसारी से श्रोताओं का सीधा संवाद स्थापित हुआ । नंदलाल भारती ने उपेक्षित लोक वादक और लोक गायकों की पीड़ा को श्रोताओं के सामने रखा और नीति नियंताओं को उनके लिए ठोस नीति बनाने का आग्रह किया , उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति बहुत समृद्ध है और इसकी विशाल शब्द संपदा है हमारे पहनावे को कुछ वर्ष पूर्व हेय दृष्टि से देखा जाता था आज लोग फक्र के साथ पहन रहे हैं । प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी केदारनाथ की यात्रा में हमारी भेषभूषा पहनी थी। अनिल बेसरी ने कहा कि आज के नवोदित गायक रातों रात स्टार बनना चाहते हैं, उनमें अध्ययन का और सीखने की प्रवृति का अभाव है , शब्दों को बिना समझे उपयोग करना उनकी प्रवृति बन गई है। उन्होंने कहा कि हमारे लोकगीतों में कई बार कुछ अटपटे शब्दों का प्रयोग किया गया है , मैने उनकी जगह नए शब्द जोड़ कर उसके सौंदर्य को बरकरार रखा। उन्होंने कहा कि गीतों में बहुत शक्ति होती है जनकवि अतुल शर्मा के गीतों ने उत्तराखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अतुल शर्मा के गीत “नदी तू बहती रहना ” सुनाया साथ ही कई लोक गीत सुनाए ।
संवाद के अंत में दर्शकों की जिज्ञाशाओं को भी शांत किया गया वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र रावत ने कहा कि ये गोष्टी इस मायने भी सफल रही कि हमारे लोकगीत केवल गाड़ गदेरों में गए जाने के लिए ही नहीं हैं बल्कि वातानुकूलित हॉल और राष्ट्रीय , अंतरराष्ट्रीय में गए जाने के लिए हैं और सीमाओं को तोड़ते हुए सात समुंदर पार भी सुने जा रहे हैं। प्रेस क्लब देहरादून के अध्यक्ष अजय राणा ने कहा कि उन्हें सुखद अनुभूति हुई जब उन्होंने “बिड़रू ना मानी ये “गीत को लोहाघाट की एक शादी में सुना और लोगों को थिरकता देखा , उन्होंने कहा आज हमारे मेले समृद्ध हो गए हैं, लोग अपनी संस्कृति पर गर्व कर रहे है । वहीं एक श्रोता ने घरों में अपनी भाषा में बच्चों से बात न करने पर चिंता जाहिर की । कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रेम पंचोली ने कहा कि उनके प्रयास से यमुना घाटी में सौ से ज्यादा रवाई संस्कृति के बैंड संचालित हैं , उन्होंने श्रोताओं और विशेषज्ञों के बीच बढ़िया संयोजन किया अंत में दून लाइब्रेरी के शोध अधिकारी चंद्र शेखर तिवाड़ी ने सभी का आभार व्यक्त कर जलपान के लिए आमंत्रित किया ।