उत्तरप्रदेशशिक्षा

टीएमयू की झोली में एक और इंडियन पेटेंट

टीएमयू की सीनियर फैकल्टी पीके गुप्ता को मिला फर्स्ट इंडियन पेटेंट ग्रांट, कचरे से बनेंगी ईंटें, नयी प्रौद्योगिकी है इको-फ्रैंडली, यूजर फ्रेंडली भी, लागत भी किफायती, शहरों को कचरे से मिलेगी निजात

प्रो.श्याम सुंदर भाटिया/सतेंद्र सिंह
मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी ने इंनोवेशन में एक ऊंची छलांग लगायी है। यूनिवर्सिटी की झोली में एक और इंडियन पेटेंट आ गया है। यूनिवर्सिटी की सीनियर फैकल्टी श्री प्रदीप कुमार गुप्ता को यह पेटेंट कचरे से ईटें बनाने की नयी तकनीक विकसित करने के लिए मिला है। श्री गुप्ता का यह पहला पेटेंट हैं। इसमें तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी की अहम भूमिका है। यूनिवर्सिटी ने श्री गुप्ता को दो लाख रुपये की सीड मनी स्वीकृत की है। जोश और जुनून से लबरेज श्री गुप्ता ने इस पेटेंट के लिए 2020 में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट विभाग- आईपीआर में अप्लाई किया था। श्री गुप्ता के इस पेटेंट में कचरे से सीमेंटेड ईंटें-आरसीसी ब्रिक्स बनेंगी। अब न केवल शहरी कचरे का निस्तारण होगा, बल्कि सीमेंटेड ईंटें बनने से आरसीसी ब्रिक्स की लागत भी कम होगी। इस पेटेंट की विशेषता यह है, इसमें कचरे का इस्तेमाल इस प्रकार किया जाएगा कि उसका वातावरण के साथ संपर्क समाप्त हो जाएगा, जबकि पूर्ववर्ती विधियों में कचरे का सम्पर्क वातावरण और प्रयोग करने वाले व्यक्तियों के साथ बना रहता है। इस प्रौद्योगिकी से निर्मित्त ईंटों का इस्तेमाल भवन निर्माण, डिवाइडर और रोड साइड्स बनाने में किया जाएगा। ये एंवायरमेंटल फ्रेंडली ईंटें तो होंगी ही, साथ ही सामान्य ब्रिक्स से 30 प्रतिशत किफायती होगी। यह शहरी कचरे के निस्तारण में मील का पत्थर साबित होगा। कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन और वीसी प्रो. रघुवीर सिंह ने यूनिवर्सिटी की इस बड़ी उपलब्धि के लिए श्री प्रदीप गुप्ता को हार्दिक बधाई देते हुए उम्मीद जताई श्री गुप्ता के और इंनोवेटिव  प्रोजेक्ट्स भी पेटेंट के रूप में जल्द मिलेंगे। इस आविष्कार को भारतीय बौद्धिक सम्पदा विभाग ने मान्यता देते हुए इसे मौलिक मानते हुए 20 वर्ष के लिए पेटेंट प्रदान किया है। यह पेटेंट यूटिलिटी पेटेंट की श्रेणी में आता है, जिसका तात्पर्य इसकी विधि और डिज़ाइन दोनों नवाचारी और अनूठे पाए गए हैं।
2030 तक 10 पेटेंट्स प्राप्ति का लक्ष्य
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में श्री गुप्ता का रिसर्च और इनोवेशन के क्षेत्र में विशेष योगदान है। उन्होंने 4 पेटेंट्स के लिए आवेदन किया हुआ है। एक और पेटेंट जल्द ही उनकी झोली में आने को तैयार है। दो पेटेंट परीक्षण के इंतज़ार में है। 8 पेटेंट विकास की सूची में हैं। उनका लक्ष्य 2030 तक 10 पेटेंट्स प्राप्त करना और इन सभी पेटेंट्स का क्रियान्वन करने का है। उनके अधिकतर आविष्कार जन सामान्य की समस्याओं से जुड़े हैं, जो ग्रीन ऊर्जा और नवाचारी तकनीकों से सम्बद्ध है। इनके क्रियान्वन हेतु उन्होंने 2022 में स्वच्छ अर्थ सोलूशन्स के नाम से एक कंपनी का भी गठन किया है। यह कंपनी इन आविष्कारों के सफल क्रियान्वन के अतिरिक्त शिक्षार्थियों को रिसर्च और इनोवेशन के लिए प्रेरित करते हुए उन्हें सुविधाएँ मुहैया कराएगी। इस मिशन को पूरा करने के लिए कंपनी एजुकेशनल इंस्टीटयूट्स में छोटे बड़े इवेंट्स और सेमिनार्स का आयोजन करेगी।
कुलाधिपति बोले, श्री गुप्ता की मेधा पर गर्व
टीएमयू के चांसलर श्री सुरेश जैन ने श्री प्रदीप गुप्ता को बधाई देते हुए कहा, यदि आप दृढ़ संकल्पित हैं तो कोई भी बाधा आपकी उड़ान को नहीं रोक सकती है। श्री गुप्ता की मेधा पर यूनिवर्सिटी को गर्व है। रजिस्ट्रार डॉ. आदित्य शर्मा और एसोसिएट डीन प्रो. मंजुला जैन का कहना है, भारतीय बौद्धिक सम्पदा विभाग ने अपनी जिम्मेदारी का बाखूबी निर्वाह कर दिया है, अब हम सबकी जिम्मेदारी है- ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी को जल्द-से-जल्द अमली जामा पहनाया जाए ताकि यह पेटेंट सर्टिफिकेट से बाहर आकर भौतिक रूप ले सके। यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का भी लक्ष्य इंडिया को ग्लोबल लीडर बनाना है। यूनिवर्सिटी आशान्वित है- श्री प्रदीप गुप्ता का यह पेटेंट पीएम के ड्रीम्स में मील का पत्थर साबित होगा। एफओईसीएस के निदेशक प्रो. आरके द्विवेदी कहते हैं, यह एफओईसीएस के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी यूनिवर्सिटी के लिए गर्व की बात है।
गाजीपुर ट्रंचिंग ग्राउंड में मिला आइडिया
श्री गुप्ता के माइंड में यह नवीन आइडिया 03 वर्ष पहले दिल्ली के गाजीपुर ट्रंचिंग ग्राउंड को देखकर आया। उन्होंने इस कचरे के निस्तारण से संबंधित विभिन्न प्रचलित विधियों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि अधिकतर विधियां कचरे का वातावरण के साथ सम्पर्क समाप्त नहीं करती हैं। ये विधियां महंगी और जटिल होने के कारण व्यावहारिक भी नहीं हैं। उन्होंने अनेक प्रयोगों के जरिए दो वर्षों के अथक परिश्रम से कचरे को सॉलिड ब्लॉक्स और बजरी के रूप में परिवर्तित कर उनका इस्तेमाल आरसीसी ब्रिक्स और ब्लॉक्स निर्माण में किया। मौजूदा वक्त में खनन एक गंभीर वातावरणीय समस्या है। इस विधि के जरिए आरसीसी ब्रिक्स बनाने में 40 प्रतिशत बजरी की बचत भी होगी।
इन्नोवेशन में पांच और साथी शुुमार
इन ईटों के आविष्कार में श्री गुप्ता के संग पांच और टीएमयू की फैकल्टी- डॉ. रविंद्र कोमल जैन, श्रीमती रंजना शर्मा, श्रीमती नीरज राजपूत, श्री शम्भू भारद्वाज, श्री अजय रस्तोगी का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इन ईंटों के डिजाइन बनाने की विधि के पेटेंट के लिए टीम ने केन्द्र सरकार के बौद्धिक सम्पदा विभाग- आईपीआर में आवेदन किया तो सहर्ष स्वीकार करते हुए आईपीआर की वेबसाइट पर प्रकाशित भी कर दिया था। इसका मकसद महानगरों को कचरा मुक्त बनाकर स्वच्छ भारत अभियान में अमूल्य योगदान देना है। उल्लेखनीय है, पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती से जूझ रही है। इस ग्लोबल वार्मिंग का सबब कार्बन उत्सर्जन है। ऐसे में यह अभिनव पेटेंट मील का पत्थर साबित होगा।
भविष्य में भी होगी बड़ी उपलब्धियां हासिल
इसके अतिरिक्त श्री गुप्ता ने बिजली उत्पादन करने वाले गेट का आविष्कार किया है। उनके इस आविष्कार को केन्द्र सरकार के राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम- एनआरडीसी ने पेटेंट हेतु फंडिंग की है। इस पर पेटेंट की प्रक्रिया जारी है। इस प्रोजेक्ट में मानवीय ऊर्जा से विद्युत का निर्माण होगा। यह गेट पार्कों, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट आदि में प्रयोग किया जा सकता है। श्री प्रदीप कुमार गुप्ता और उनके सहयोगी दीगर प्रोजेक्ट पर भी जुटे हैं। इंडोर सोलर चूल्हे का डिजाइन तैयार है। इस चूल्हे की खासियत यह होगी, इस पर इंडोर में खाना भी बनाया जा सकता है। वैसे तो श्री गुप्ता टीएमयू में 11 वर्ष से एनीमेशन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्होंने वनस्पति विज्ञान में पीजी भी किया है, लेकिन उनकी इंजीनियरिंग में गहरी रूचि है। नतीजतन सीमेंटेड ईंट- सिविल, विद्युत गेट- मैकेनिकल और इलेक्ट्रिक सोलर स्टोव का ऑप्टिक्स इंजीनियरिंग से ताल्लुक है। सोलर स्टोव के प्रोजेक्ट के बाद उनका प्रोजेक्ट फॉर्मेसी से संबंधित है, जिसका वास्ता इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग से है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button