
देहरादून। उत्तराखंड समेत पूरे उत्तर भारत में इस साल भारी बारिश ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन और जलभराव से सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है, जबकि अरबों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। इस बीच एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। गढ़वाल क्षेत्र में जंगलों के आसपास सौ से अधिक गांवों में भालुओं की गतिविधियां अचानक बढ़ गई हैं, जिससे स्थानीय निवासियों में डर का माहौल है।
वन विभाग के अनुसार, पिछले वर्षों के आंकड़ों और मौजूदा हालात के आधार पर इन गांवों तथा आसपास के जंगलों (लैंडस्केप) को चिन्हित किया गया है। बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र मानव बस्तियों में इनके दखल को देखते हुए अब इन इलाकों में विशेष शोध अभियान चलाया जाएगा। शोध के दौरान भालुओं की संख्या, उनकी गतिविधियों के पैटर्न, भोजन की उपलब्धता, पर्यावरणीय बदलाव और मनुष्य से संपर्क बढ़ने के कारणों का अध्ययन कर बेसलाइन सर्वे तैयार किया जाएगा। साथ ही, मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करने के उपाय भी सुझाए जाएंगे।
क्यों बढ़ी सक्रियता?
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस बार अतिवृष्टि के चलते जंगलों में भोजन और आश्रय की कमी हुई है, जिससे भालुओं को मानव क्षेत्र में प्रवेश करना पड़ा। रुद्रप्रयाग डिविजन के नॉर्थ और साउथ जखोली के आसपास करीब 50 गांव, पौड़ी के पैठाणी व आसपास के लगभग 15 गांव, कल्जीखाल के डांग व आसपास के करीब 15 गांव और चमोली के थराली क्षेत्र के आसपास करीब 20 गांव चिन्हित किए गए हैं। पिछले कुछ समय से इन गांवों में भालुओं की आवाजाही लगातार बढ़ रही है।
हमलों में तीन की मौत
इस वर्ष अब तक भालुओं द्वारा किए गए हमलों की 25 घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें तीन लोगों की मौत हो चुकी है। गढ़वाल के वन संरक्षक आकाश वर्मा ने बताया कि विभाग इन इलाकों में जागरूकता अभियान भी चला रहा है ताकि लोग सतर्क रहें और भालुओं से बचाव के उपाय अपनाएं।
संवेदनशील जंगलों में शोध होगा
वन संरक्षक आकाश वर्मा के अनुसार, भालुओं की बढ़ती सक्रियता के लिहाज से चार जंगल सबसे अधिक संवेदनशील हैं—पौड़ी जिले के दूधातोली और अदवानी जंगल, रुद्रप्रयाग की जखोली रेंज और चमोली की थराली रेंज। इन क्षेत्रों में बुग्याल से लेकर बांज के घने जंगल मौजूद हैं, जहां भालुओं की संख्या सबसे अधिक पाई गई है। अधिकारियों का कहना है कि इन जंगलों में विस्तृत शोध कर यह समझा जाएगा कि किस कारण से भालू मानव बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं और इसके समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
आगे की योजना
वन विभाग ने प्रभावित गांवों में लोगों को सतर्क रहने, रात में बाहर न निकलने और खाद्य अपशिष्ट को खुले में न छोड़ने की सलाह दी है। साथ ही, विभाग मनुष्य और वन्यजीव के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए सामुदायिक भागीदारी से कार्य योजना तैयार कर रहा है। शोध पूरा होने के बाद उन क्षेत्रों में भालुओं के प्रभाव को कम करने, सुरक्षित वन्य क्षेत्र विकसित करने और आपदा-प्रबंधन की योजना लागू की जाएगी।