उत्तराखंडराजनीति

राज्य बनने से पहले तक मूल निवास ही होते थे जारी

मूल निवास / स्थाई निवास की जानकारी साझा कर रहा हूँ। मूल निवास पर मेरे द्वारा मांगी गयी सूचना में मिली जानकारी के अनुसार उत्तरप्रदेश के समय से ही वर्ष 1996 के शासनादेश में भी मूल निवास दिए जाने के स्पष्ट आदेश थे राज्य बनने तक सभी को मूल निवास प्रमाण पत्र निगृत किये जाते रहे वंही सूचना के अधिकार के तहत मूल निवास प्रमाण पत्र हेतु जानकारी मांगे जाने पर जिलाधिकारी उत्तरकाशी द्वारा मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के शासनादेश सं० 460/xxxi(1)/2007-53(1) / 2007 दिनांक 27 जून 2007 के अनुसार सभी तहसीलों को मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश जारी किए थे तथा कुछ समय तक मूल निवास प्रमाण पत्र तहसीलों में बनाये जाते रहे ।

दूसरी तरफ दिनांक 20/11/2011 का स्थाई निवास के संदर्भ में जारी शासनादेश के बाद मूल निवास प्रमाण पत्र बनाये जाने बंद कर दिए गये यह कहकर कि मूल निवास प्रमाणपत्र हेतु कोई प्रक्रिया प्राप्त नही है, और आज भी ऑनलाइन प्रमाण पत्र बनाने की सरकारी साइट अपनी सरकार के पोर्टल पर सिर्फ स्थाई निवास प्रमाणपत्र बनाने की प्रक्रिया है। मित्रो उत्तरप्रदेश सरकार के समय के मूल निवास शासनादेश जो की वर्ष 1996 तक लागू था को वर्ष 2011 के स्थाई निवास शासनादेश की आड़ में खत्म कर उत्तराखंड शासन में बैठे पहाड़ विरोधी मानसिकता वाले अधिकारी/ कर्मचारियों नें अपने बहारी राज्यों के लोगो को लाभ दिलाने का कुचक्र रच कर यंहा के मूल निवासियों के हक पर डाका डालने का पूरा प्रबंध किया | स्थाई निवास शासनादेश 2011 की आड़ में चाहे कोई अधिकारी कर्मचारी उत्तराखंड में रह रहा है बिना किसी, नियम के उसके आश्रितों को भी स्थाई निवास प्रमाणपत्र दिए जाने की व्यवस्था बड़ी चालाकी से स्थाई निवास शासनादेश में लागू करवाकर जमकर अपने लोगो को फायदा पहुंचाने लगे है। जहां तक मूल निवास प्रमाण धारकों से स्थाई प्रमाणपत्र न मांगें जाने का आदेश हे उसका आदेश पूर्व में दिनाक 28 सितम्बर 2007 को जारी आदेश में भी हो रखा हे वही हाल लचीले भू-कानून का भी है जिस कारण आज पहाडो की भूमि पर दिन-प्रतिदिन बाहरी लोगो के बनते रिसोर्ट व फर्म हाउस के रूप में देखने को मिल रहे है।

मित्रो देहरादून में हुयी मूल-निवास एवं सशक्त भू-कानून हेतु रैली में सभी लोगो का धन्यवाद, लड़ाई अभी लम्बी है, हालांकि उत्तराखंड सरकार के मुख्यमंत्री माननीय पुष्कर सिंह धामी जी का उक्त मामले में सकारात्मक रूख होने से उम्मीद है की उत्तराखंड वासियों को अपना मूल निवास 1950 एवं सशक्त भू -कानून जल्द मिलेगा ।

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