उत्तराखंडशिक्षा

वन्य जीवों व वनों की सुरक्षाकेलगाई गई प्रदर्शनी

देsहरादून।राजकीय इंटर कॉलेज बुरांसखंडा में ‘वन्य जीव सुरक्षा’ सप्ताह पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। परम्परा के अनुसार वर्षभर हमारे लिए प्रत्येक दिन महत्व रखता है, और हम उसे किसी न किसी रूप में मनाते भी हैं। संस्कृति और सभ्यता के अनुसार प्रति वर्ष अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह को वन्य जीव सुरक्षा सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इसमें विशेष तौर पर जंगली जानवर, पशु-पक्षी व पौधों की सुरक्षा, संरक्षण तथा संवर्धन के लिए जनजागृति अभियान चलाया जाता है।

अभियान का मुख्य उद्देश्य :
– प्रत्येक समुदायों व परिवारों को प्रकृति से जोड़ना।
– मानव के अंदर संरक्षण की भावना पैदा करना।
– वन्यजीव व पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूक रहना है।
*वास्तव में मानव, पर्यावरण और वन्यजीव एक दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं*। मनुष्य के शरीर व मस्तिष्क को स्वस्थ रखने एवं शुद्ध ऊर्जा प्राप्त करने के लिये जरूरी है पर्यावरण को शुद्ध व साफ-सुथरा रखना, और इसके लिए वन व वन्य जीवों की सुरक्षा करना आवश्यक है। वन्य जीवों के बिना हमारा जीवन संकट में पड़ सकता है, बल्कि यूँ कह सकते हैं कि बगैर इसके मनुष्य का कोई अस्तित्व ही न रह पाएगा। *जिन बेजुबानों से हमनें बहुत कुछ पाया, उन्हें को क्यों सताने लगे हैं आज हम*। मानवीय हस्‍तक्षेप के कारण आज हजारों जीवों की प्रजातियां विलुप्‍त होने की कगार पर पहुंच गई हैं, उनका जीवन संकट में पड़ने लगा है।

इस दौरान विद्यालय में विभिन्न प्रकार के सांपों की फ़ोटो प्रदर्शनी लगाई गई, जिसके माध्यम से बच्चों को विषैले साँपों से बचाव के उपाय बताए गए, साथ ही वन्य प्राणियों की सुरक्षा हेतु संकल्प लिया गया*, जिसमें विद्यालय के स्टॉफ सहित सभी छात्र-छात्राओं विशेष रूप से मुलायम सिंह, संदीप, कार्तिक, आयुष, अंकित, प्रिया, काजल, शानिया, अर्पिता ने उत्साहित होकर प्रतिवद्धता दोहराई।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि विलुप्तता की कगार पर पहुँच चुकी पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियों को आमजन की सक्रिय सहभागिता से बचाया जा सकता है। *हमारा अगला प्रोजेक्ट यहाँ की स्थानीय प्रजातियों की उपलब्धता व उनके योगदान को लेकर भी होगा। जिनमें ऋतु परिवर्तन के होते मायके की यादें दिलाने वाली स्पॉटेड डोव (घुघूती), वर्षाती सीजन में कीड़े मकोड़े के सफाई-कर्मी मैगपाई (सेंटूला), श्राद्ध पक्ष में पितृ ऋण के तारणहार कौवे, दढ़ियल-गिद्ध(गरूड़), हरा तोता, कबूतर, कठफोडवे व कोयल आदि की विभिन्न प्रजातियां प्रचलित हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button