उत्तराखंड

डॉ. आर. एस. टोलिया राज्य स्तरीय वाद-विवाद प्रतियोगिता 2025 सम्पन्न

दून विश्वविद्यालय के नित्यानंद हॉल में शुक्रवार को डॉ. आर. एस. टोलिया राज्य स्तरीय सूचना का अधिकार अधिनियम वाद-विवाद प्रतियोगिता २०२५ का सफल आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन उत्तराखंड सूचना आयोग, उत्तराखंड शासन ने विश्वविद्यालय के वाद-विवाद क्लब ‘वात्सल्य’ के सहयोग से किया।
इस वर्ष की प्रतियोगिता का विषय “आरटीआई ने सरकारी विभागों में प्रशासनिक दक्षता और जवाबदेही बढ़ाने में मदद की है” रखा गया, जिस पर प्रतिभागियों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन वंशिका रासनिया, प्रीति रावत, तरणप्रीत कौर एवं आयुष पंत (दूनविश्वविद्यालय) द्वारा किया गया।

डॉ. चेतना पोखरियाल (एसोसिएट प्रोफेसर, डीन इंचार्ज एवं विभागाध्यक्ष, दून विश्वविद्यालय) एवं अन्य सदस्यों ने दीप प्रज्वलित कर प्रतियोगिता का शुभारंभ किया। प्रतियोगिता के उद्घाटन उपरांत अतिथियों का सम्मान किया गया, जिनमें प्रख्यात वकील व लेखक अजय जुगलान, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रीना उनियाल तिवारी, यूएचएमएएस की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. कंचन नेगी, सहयोग आयोग के सचिव दलिप सिंह कुंवर, रज़ा अब्बास तथा उप कुलसचिव युक्ता मैम शामिल रहे। अतिथियों का सम्मान दून विश्वविद्यालय की विभागाध्यक्ष डॉ. चेतना पोखरियाल द्वारा किया गया।

प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों जैसे दून विश्वविद्यालय, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्री देव सुमन विश्वविद्यालय, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, ग्राफिक एरा हिल विश्वविद्यालय, डी.आई.टी. विश्वविद्यालय, कुमाऊँ विश्वविद्यालय तथा जवाहर लाल नेहरू पंत विश्वविद्यालय सहित राज्यभर के अन्य कई महाविद्यालयों से प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रतियोगिता दो चरणों में सम्पन्न हुई। पहले चरण में प्रत्येक प्रतिभागी ने दो मिनट में अपने विचार प्रस्तुत किए। इनमें से श्रेष्ठ १२ प्रतिभागियों को अंतिम चरण के लिए चुना गया, जहाँ उन्होंने तीन मिनट की समय-सीमा में अपने तर्क रखे।

प्रतिभागियों ने आरटीआई की भूमिका पर सारगर्भित विचार रखे। कुछ प्रतिभागियों ने पक्ष में तर्क दिए कि “आरटीआई से सरकारी योजनाओं जैसे मनरेगा, राशनकार्ड घोटाले और अन्य नीतियों की जानकारी मिलती है, जिससे सरकार और जनता के बीच पारदर्शिता बढ़ती है, भ्रष्टाचार कम होता है, प्रशासनिक दक्षता और जवाबदेही बढ़ती है और नागरिक सशक्त होते है।” वहीं अन्य ने विरोध मे तर्क दिए कि
“आरटीआई से प्रशासनिक दक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित नहीं होती, क्योंकि नागरिकों द्वारा दर्ज कई आवेदन लंबित रहते हैं और शिकायतों के निपटारे में बहुत समय लगता है। इससे पारदर्शिता केवल सैद्धांतिक रूप में रह गई है। इसके अलावा, आरटीआई आवेदन करने वाले नागरिकों की सुरक्षा भी सुनिश्चित नहीं है, कई मामलों में उन्हें नुकसान या जान का खतरा भी हुआ है। ”
दर्शकों ने बहस के दौरान तालियों के माध्यम से उत्साह व्यक्त किया।

दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने विषय के पक्ष और विपक्ष में बोलने वाले सभी प्रतिभागियों की उत्कृष्ट प्रस्तुति की सराहना करते हुए कहा कि विजेताओं का चयन करना अत्यंत कठिन रहा। दून विश्वविद्यालय की कुलपति ने सूचना आयोग के सहयोग से इस आयोजन को सफल बनाने पर प्रसन्नता व्यक्त की और आयोग का आभार जताया।

मुख्य सूचना आयुक्त राधा रतूड़ी ने भी प्रतिभागियों की सराहना की और लोकतंत्र में आरटीआई की महत्वत्ता पर अपने विचार व्यक्त किए।

निर्णायक मंडल में श्री अजय जुगलान, डॉ. कंचन नेगी और डॉ. रीना उनियाल तिवारी शामिल थे। उन्होंने प्रतिभागियों की भाषा, तार्किकता और आत्मविश्वास की सराहना करते हुए कहा कि युवाओं ने विषय पर गहरी समझ और बेबाकी से अपने विचार प्रस्तुत किए, जो सराहनीय है।

उसके उपरांत डॉ. आदिति ने पुरस्कार परिणामों की घोषणा की। प्रतियोगिता के परिणाम इस प्रकार रहे:

प्रथम स्थान: अभिनव त्रिपाठी, डीएसपी केवी नैनिताल ( (धनराशि १०,०००)

द्वितीय स्थान: रेखा पंवार, गवर्नमेंट पीजी कॉलेज(धनराशि ७५००)

तृतीय स्थान: स्वाति, सिद्धार्थ लॉ कॉलेज (धनराशि ५०००)

विशेष पुरस्कार (कानून विषय न पढ़ने वाले प्रतिभागी हेतु): शिव्या, दून विश्वविद्यालय (धनराशि ५०००)

सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय/कॉलेज पुरस्कार दून विश्वविद्यालय और उत्तरांचल विश्वविद्यालय के बीच संयुक्त रूप से घोषित किया गया एवं डॉ. आर. एस. टोलिया राज्य स्तरीय आरटीआई वाद-विवाद प्रतियोगिता २०२५ ट्रॉफी प्रदान की गई।

कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन हर्ष(दून वविश्वविद्याल) द्वारा किया गया। इस प्रतियोगिता ने छात्रों में सूचना का अधिकार अधिनियम की उपयोगिता, सरकारी पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को गहराई से रेखांकित किया।

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