उत्तराखंड

टिहरी झील में महोत्सव बांध प्रभावितों विस्थापितो के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा : शान्ति प्रसाद भट्ट

◾जनता ने जिन्हें बड़ी उम्मीदों से अपना प्रतिनिधि निर्वाचित किया वे उसी जनता के साथ खेला कर गए ।
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सोचिए जब जब टिहरी झील में कोई महोत्सव होता है, तब तब उन परिवारों पर क्या बीतती होगी जिनके मकान इसी झील के कारण खतरे की जद में है और खतरनाक दरारो से चौतरफा फट चुके है, या वे परिवार जिनकी भूमि 49.99%तक डूब चुकी है परंतु उन्हें पूर्ण विस्थापन का लाभ नहीं मिला है?
जो डूब क्षेत्र में उन्हे 74.40लाख रुपए दिए जा रहे है जबकि इन्ही के समकक्ष काश्तकारो को दस बीघा कृषि भूमि एवम दो सौ वर्गमिटर का आवासीय भूखंड आवंटित किया गया था यानि संविधान के अनुच्छेद 14 का खुल्म खुला उलंघन किया गया।

🔹टिहरी बांध जिन ग्रामीणों के खेत खलिहानो पर निर्मित है, बांध की झील के जलभराव से अब जिनके घर, आंगन, खेत खलिहान खतरे में है,उनके विस्थापन पर किंतु परंतु क्यों ?
🔹जिन कास्तकारो के पुस्तैनी मकानों में झील के जलस्तर के बढ़ने घटने के कारण भारी भारी खतरनाक दरारें पड़ी हुई है, और कभी भी बड़े जान माल का नुकसान हो सकता है, उनकी विगत वर्षों से अब तक कोई सुध क्यो नहीं ली गई है, संयुक्त विशेषज्ञ समिति (JEC) ने जिन ग्रामों/परिवारों को ओब्जार्वेशन में रखा था कोई टीम अभी तक अनुपालनार्थ क्यो नही आई?
🔹टिहरी बांध निर्माण से निर्मित रिजर्ववायर का जल स्तर बढ़ाने से भिलंगना घाटी के 19 गावों और भागीरथी घाटी के 25 गावों को अस्थिर होना पड़ रहा है, इनके विस्थापन्न का कार्य अभी लंबित है।
🔹पुनर्वास नीति (सम्पार्श्विक क्षति पूर्ति नीति 2013 में उल्लेख है कि इस नीति की प्रति वर्ष समीक्षा की जाएगी। पर करेगा कौन जिन्हें समीक्षा करना था वे तो नाैटकी में व्यस्त है?
🔹 : बांध प्रभावितों की मांग:🔹
👁️‍🗨️उन सभी आंशिक डूब क्षेत्र के परिवारों को पूर्ण विस्थापित का लाभ दिया जाय जिनकी भूमि 40%तक डूब चुकी है, यह कैसा न्याय है कि जिस कास्तकार की भूमि 49.99% तक डूब गई उसे भी पूर्ण विस्थापित नही माना जा रहा है? जबकि वर्तमान नीति के अनुसार 50%तक जिनकी भुमि डूब क्षेत्र में आयेगी उन्हे पूर्ण विस्थापित माना जायेगा।
👁️‍🗨️ सम्पार्श्विक क्षति पूर्ति नीति 2013 और पूर्व की पुनर्वास नीतियों का अनुपालन कर भूमि के बदले भुमि प्रदान की जाय।

👁️‍🗨️सभी आंशिक डूब के ग्रामों को पूर्ण डूब की श्रेणी में माना जाय, चुकीं आंशिक डूब की श्रेणी के ग्राम तब तय हुए थे, जब झील का जलस्तर RL825mtr तक ही रखा जाना था, राज्य सरकार ने THDC को जब झील का जल स्तर बढ़ाने यानि RL 830mtr की अनुमति दी, तब यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए था ,कि पूर्ण डूब के लिए भी भूमि की 50%की बाध्यता को खत्म कर 40%तक किया जाए, सरकार ने एक तरफा मनमाना निर्णय लिया है, जिसमें निर्वाचित जनप्रतिनिधियो को संशोधन लाना चाहिए, अपने लाभ के लिए तो thdc और सरकार ने जलस्तर का लेबल 05 मीटर बढ़ा दिया, किंतु विस्थापन्न के लिए भूमी 5%भी नहीं घटाई , इसलिए विस्थापन का मानक भी बदला जाना चाहिए ?
✓वे ग्राम जिनके75%परिवार या 75%भूमि पूर्ण डूब में है, उनके शेष 25%परिवारों को भी अन्य की भांति कृषि एवम आवासीय भूमी आवंटित की जाय, और संपतियो का भुगतान किया जाय।
✓सभी ऐसे ग्रामों की संपूर्ण भूघृर्ती ( Entire land holding) को अधिगृहित न किया जाय, बल्कि केवल डूब क्षेत्र में आ रही भूमी को ही आधार माना जाय।
✓पूर्व में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के आलोक में ग्राम रोलाकोट, नकोट, स्यांसू का विस्थापन होना था, किंतु रोलाकोट का विस्थापन अभी अभी नही हो पाया है, जिसे युद्ध स्तर पर पूर्ण किया जाना चाहिए।
✓ग्राम उठड़, नंदगांव, पिपोलाखास के ग्रामों में से ग्राम उठड 75%की श्रेणी में है ,अर्थात 25%की श्रेणी में है, इस ग्राम में मात्रा 20/22परिवार ही विस्थापन्न की बाट जो रहे है ।
✓ग्राम नंदगांव में आ रही तकनीकी दिक्कतो को दूर कर विस्थापन का काम पूर्ण करना चाहिए।
✓ग्राम पिपोलाखास, भटकंडा में विस्थापन्न का कार्य अत्यंत धीमी गति से चल रहा है, ऐसा प्रतीत होता है, कि इसमें सत्ता पक्ष के नेता और स्थानीय कार्यकर्ताओ के दबाव में अडंगा लगाया जा रहा है जिसे बर्दास्त नही किया जायेगा,शीघ्र ही उनके घरों का घेराव किया जायेगा और उनके दरवाजों पर ही उनका पुतला दहन किया जायेगा ।
✓सम्पार्श्विक क्षति पूर्ति नीति यथा संशोधित 2021 में कट ऑफ डेट झील का जल स्तर बढ़ाने की अनुमती वाली ही तिथि तय की जाय ।
✓माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित ग्रेवांस सेल क्यों बन्द पड़ा है, इसमें लंबित प्रकरणों पर सुनवाई कब होगी?

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