संस्मरण
_डाअतुल शर्मा
देहरादून। आज प्रसिद्ध लेखक मोहन राकेश की पुण्य तिथि है । सादर नमन ।
पहले तो यह कि उनसे मिलने के दो अवसर याद आ रहे हैं । एक तो मोहनसिंह प्लेस दिल्ली के काफी हाउस मे । और दूसरे देहरादून मे ।
” आषाढ का एक दिन ” आधे अधूरे ” नाटक मैं देख और पढ चुका था । जो हिन्दी साहित्य की कालजयी कृतियां हैं । कहानियों में तो उनकी भाषा को लेकर उन्हे बहुत सम्मान मिले । मलबे का मालिक को बचपन मे ही पढ लिया था । अद्भुत कहानी । परमात्मा का कुत्ता भी उन्होंने लिखी और बहुत सी कहानियां सामने आयी । नयी कहानी आन्दोलन के जनक रहे और सारिका के संपादक भी रहे । कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव के साथ उनके ठहाके काफी हाउस मे गूंजते ।
देहरादून मे दूनस्कूल मे उनका नाटक मंचित हुआ था ” आधे अधूरे ” । उसमे ओम पुरी और दिनेश ठाकुर भी आये थे । मै उनसे देहरादून मे मिला । सिगार पीते हुए वह नाटे कद के व्यक्तित्व थे । घुंगराले बाल । मोटे फ्रेम का चश्मा लगाये रहते ।वे हमारे दिनेश चाचा जी के परम् मित्र थे । देवराज दिनेश के । उन्ही के साथ मै उनसे मिला था ।
आधे अधूरे नाटक को बहुत से निर्देशको ने खेला । वह आज की मध्यवर्गीय स्थितियो का दर्पण था । उनकी कहानियां हिन्दी साहित्य की धरोहर रही है ।
आज हिन्दी कथा साहित्य उनके बिना अधूरा है ।
कथाकार मोहन राकेश पढी जाती हैं और पढी जाती रहेगी ।