

वास्तब में हम लोग अपने पितृमोक्ष हेतु श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह यज्ञ करवाते हैं। यदि वास्तविक रूप से देखा जाय तो मॉ गंगा मोक्ष-दायिनी है। इसी कारण महाराज परीक्षित को श्राप मिलनें के कारण वै हरिद्वार की ओर चले न कि यमुनाजी की ओर। यह बात अलग है कि समय नहीं था इसलिए महाराज परीक्षित गंगा तट पर शुक्रताल में ही रूक गये । श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार इस पर गहनता से विचार किया जाय कि अपने पितरों के मोक्ष हेतु श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह कहां किया जाना चाहिए कि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो तो इस पर निम्न विन्दुओं पर प्रकाश डाला जाना परम आवश्यक होगा। श्रीमद्भागवत महापुराण के महात्म्य के तृतीय अध्याय के श्लोक संख्या 04, 05 व 06 देखें जिसमें सनकादि ऋषि देवर्षि नारद से कहते है कि (गंड्गाद्वारेसमीपे तु तटमानन्दनामकम्) याने कथा के लिए सबसे उपयुक्त स्थान हरिद्वार में आनन्दघाट है। इसके पश्चात सनकादि ऋषि वहीं पर देवर्षि नारद ज्ञान भक्ति वैराग्य ऋषि आदि को श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करवाते हैं। इसी प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण प्रथम स्कन्ध का उन्नीसवां अध्याय का श्लोक संख्या 07 08 व 09 देखियेगा । महाराज परीक्षित गंगा तट पर ही श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करते हे। इससे भी स्पष्ट होता है कि मरने वाले की मुक्ति का रास्ता केवल गंगा ही हैं। इसी प्रकार तृतीय स्कन्ध के पंचम अध्याय का श्लोक संख्या 01 के अनुसार पूज्य मैत्रेय मुनि हरिद्वार में निवास करते हैं। इसके पश्चात तृतीय स्कन्ध के श्लोक संख्या 02 से 16 में विदुर जी मैत्रेय मुनि से गंगा तट हरिद्वार में ही सम्पूर्ण भागवत के प्रश्न पूछते हैं व उनके द्वारा यही पर सम्पूर्ण प्रश्नों के उत्तर में यह सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत की कथा पूज्य मैत्रेय मुनि हरिद्वार में गंगा तट पर ही विदुरजी आदि संतजनों व ऋषिगणों को श्रवण करवाते हैं। अतः मेरे विचार से विस्तृत मूल पाठ, कर्मकाण्ड तर्पण गाय दान आदि के साथ हरिद्वार क्षेत्र में श्रीमद्भागवत कथा का कुछ और ही महत्व है। यहां पर बहुत कम राशि व्यय कर भी पितृ भागवत कथा का आयोजन किया जा सकता है। इसलिए उचित होगा कि अपने पितरों के मोक्ष या वैकुंठवास के लिए गंगाद्वारे हरिद्वार में ही विधि विधान से पितृ भागवत का आयोजन किया जाना चाहिए। ताकि हमारा निमित पूरा हो सके।