शिशपाल गुसाईं
देहरादून। कल अनिल रतूड़ी के उपन्यास भंवर एक प्रेम कहानी के विमोचन अवसर पर मुख्य सचिव डॉक्टर एसएस संधू का भाषण काबिले तारीफ रहा। संधू ने अपने संबोधन में कहा कि किसी भी व्यक्ति को वही काम करना चाहिए जिसके लिए वह दिल से इच्छुक हो। माँ पिता और सोसायटी के दबाव में काम न हो।
उन्होंने अपना उदाहरण दिया कि वह परिवार और समाज की सोच पर एमबीबीएस डॉक्टर बन गए थे। पांच साल बाद महसूस हुआ कि यह जॉब मेरे लिए नहीं। अनमने से काम करना ठीक नहीं रहेगा।
वह आगे कहते हैं एमबीबीएस डॉक्टर रहता तो पूरे जीवन भर नीरसता में रहता। मेरी इच्छा कुछ और थी जिस पर मैं कार्य कर रहा हूं। आज के अधिकारियों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि काफी अधिकारियों का बैठकों में मूड ऑफ रहता है, उन्हें सामान्य करके जानकारी हासिल होती है कि, वह सोसाइटी पर माता-पिता के दबाव में अधिकारी बने हैं। बेमन से काम करते हैं। जबकि वह बनना कुछ और ही चाहते थे। उन्होंने एक अंग्रेजी साइंटिस्ट का उदाहरण दिया कि अंग्रेज साइंटिस्ट को सबसे बड़ा नोबेल प्राइज मिल गया। जब उनसे किस पत्रकार ने पूछा कि , आपको कैसे लग रहा है ? साइंटिस्ट ने कहा वह खुश नहीं हैं। वह डांसर बनना चाहते थे। डॉक्टर संधू ने यहां पर इसलिए यह बात कही है कि कहानी के हीरो अपने पिता की इच्छा पर आईएएस बने। जबकि वह लेखक बनना चाहते थे। हीरो के पिता चाहते थे कि उनका बेटा डीयू में पढ़कर आईएएस बने। कहानी के हीरो जब इंटरमीडिएट का इम्तिहान देकर कर बोर्डिंग स्कूल से घर लौटते हैं तब तक पिता की डेथ हो चुकी होती है। मां को उस वस्त्र, बगैर गहनों में देखकर वह हैरान रहते हैं। 12 वीं का बच्चा बड़ा दुखी रहता है। पिता की अस्थियां लेकर जाता है। फिर कहानी के हीरो उसी दिल्ली यूनिवर्सिटी के उसी कॉलेज में एडमिशन लेते हैं और आईएएस बन कर पिता का सपना पूरा करते हैं। फिर कुछ साल ईमानदारी से नौकरी करते हैं, तजुर्बा लेते हैं। नौकरी के दरमियान वह इस सर्विस से अनिच्छा महसूस करते हैं और सोचते हैं कि, वह तो अपने पिता के सपने को पूरा कर रहे हैं, अपने नहीं। अपना सपना लेखक बनना था। जिसे हीरो ने बन कर दिखाया।
श्री अनिल रतूड़ी अपनी इच्छा पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने भँवर एक प्रेम कहानी लिखी वह फुलवारी से प्यार करते हैं। सुबह शाम- घूमना पसंद करते हैं। विश्व का इतिहास और साहित्य पढ़ना पसंद करते हैं और शानदार ढंग से जीवन जीते हैं। जिसका कदम कदम पर साथ राधा जी का उन्हें मिल रहा है।
मुख्य सचिव डॉक्टर संधू करियर के लिए उन्होंने युवाओं को थ्री इडीयट्स फिल्म देखते रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा जब तक युवाओं को सफलता नहीं मिलती, तब तक यह फिल्म देखती रहनी चाहिए। थ्री इडीयट्स ( तीन वेफकूफ ) हिंदी फिल्म 2009 की अंग्रेजी उपन्यासकार चेतन भगत के प्रसिद्ध उपन्यास फाइव पॉइंट समवन पर आधारित है।
डॉक्टर संधू कहते हैं अपने लिए भी समय निकालें। दूसरों के लिए जीते हैं अपने लिए भी जिये। काम वही करें जो जिसकी पुकार अंदर से हो।
डॉक्टर संधू का कार्यकाल उत्तराखंड में मुख्य सचिव से पहले भी उजला रहा है। वह उत्तराखंड, पंजाब, राज्य में प्रमुख विभागों में रहे हैं। तथा केंद्र सरकार में NHAI के निदेशक तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव तकनीकी शिक्षा रहे हैं। जिसमें देश के आईआईटी, एनआईटी शामिल हैं। संधू अमृतसर गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस है और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर से इतिहास से स्नातक हैं। तथा लॉ ग्रेजुएट भी है। आयुक्त, नगर निगम, लुधियाना, पंजाब के रूप में उनकी सेवाओं के सम्मान में डॉ संधू को राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया।इसके अलावा, वह एलबीएसएनएए, मसूरी में एक नियमित वक्ता रहे हैं और आमंत्रण पर हार्वर्ड बिजनेस स्कूल, बोस्टन, यूएसए में ‘डी-स्ट्रेसिंग इंडियन सिटीज’ पर एक व्याख्यान भी दिया था।
किताबों का अपना संसार है। बकौल रतूड़ी जी पुस्तक मानव सभ्यता की सबसे बड़ी चीज है। क्योंकि जो व्यक्ति नहीं है हज़ारों वर्षों के कालों के उस पार जाकर उनसे संवाद कर सकते हैं सीख सकते हैं। यदि कोई चाहे।
संधू जी ने विषय पर ही बोला जैसे कि श्री नृप सिंह नपलच्याल, श्री ललित मोहन रयाल, डॉ रामविनय सिंह, श्री अनिल रतूड़ी और राधा रतूड़ी ने कहा। कुछेक के संबोधन में भटकाव दिखा। संभव है कि देहरादून में दो ऐसे लोग हैं जिन्होंने दुनिया की सबसे ज्यादा किताबें पढ़ ली होंगी। वह हैं नृप सिंह नपलच्याल और अनिल रतूड़ी।