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देहरादून के एक होटल में आयोजित किये बैठक में अल्मोड़ा में हो रही “भू माफिया भगाओ, उत्तराखंड बचाओ” जुलुस को समर्थन करते हुए प्रदेश के जन संगठनों ने आरोप लगाया कि भू माफिया और बड़ी कॉर्पोरेट की लूट को सरकारों की और से संरक्षण मिलते हुए दिखाई दे रहे हैं। लेकिन कदम उठाने के बजाय इन मुद्दों को सांप्रदायिक रंग देने का जो प्रयास चल रही है, इस बात को उन्होंने निंदा किया। चुनाव से पहले राज्य में सशक्त भू कानून की बात करने वाली सरकार अभी इस सवाल पर खामोश हैं। वन अधिकार कानून के तहत अपने वनों पर एक भी गांव को अधिकार पत्र नहीं मिला है। हर साल पर्यावरण एवं वन अधिकार के नियमों को नज़र अंदाज़ करने की वजह से आपदों में सैकड़ों लोगों की जान जा रही है। लेकिन जनता की हक़ों को सुनिश्चित करने के बजाय इन मुद्दों को धर्म के आधार पर दिखाने की कोशिश की जा रही है। निष्पक्ष कार्रवाई करने के बजाय एक वर्ग विशेष पर आरोप लगाया जा रहा है, जो निंदनीय है।
प्रतिभागियों ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन ईमेल द्वारा भेज कर इन मांगों को भी उठाया: – पहाड़ों में भूमि बंदोबस्त व चकबंदी हो; सशक्त भू कानून बनाया जाये; वनाधिकार कानून के तहत हर गांव को अधिकार पत्र दिया जाये; वन पंचायतों को अधिकार संपन्न बनाया जाये; अतिक्रमण पर प्रशासनिक कार्रवाई को निष्पक्षता के आधार पर किया जाए, किसी भी समुदाय या तबका को निशाना न बनाया जाये; परियोजनाओं के लिए कानून के अनुसार स्थानीय गांवों से अनुमति लिया जाये; संविधान की धारा 371 के अंतर्गत संरक्षण उत्तराखंड को भी दिया जाये; उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसलों के अनुसार नफरत की राजनीती एवं भीड़ की हिंसा पर रोक लगाने के लिए हर जिला में खास पुलिस व्यवस्था बनाया जाये।
कार्यक्रम में उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के कुलदीप मढ़वाल, नरेश नौडियाल, युद्धवीर त्यागी; उत्तराखंड महिला मंच के निर्मला बिष्ट एवं चन्द्रकला; उत्तराखंड इंसानियत मंच से डॉ रवि चोपड़ा; आल इंडिया किसान सभा के राज्य महामंत्री गंगाधर नौटियाल; चेतना आंदोलन के विनोद बडोनी, शंकर गोपाल एवं राजेंद्र शाह; आदि शामिल रहे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी समर्थन किया।