पौड़ी गढ़वाल के ग्रामीण परिवेश में रह रहे, सुनील दत्त कोठारी ने ऐसा काम कर दिया कि आज विश्व भर की नजर उन पर टिकी गई है, कोठारी ने सर्वप्रथम यहां की स्थानीय वनस्पतियां (पौधों) की गहन जानकारी वंश परंपरागत वैद्य विद्या का आधार लेकर जाना एवं समझा तथा स्थानीय ग्रामीणों की भूमिका एवं सहयोग लेकर कई प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं, लगभग वर्ष 2016 से कोठारी द्वारा ग्रामीण परिवेश में रह रहे लोगों को प्रशिक्षण कार्यक्रम की मुहिम की शुरुआत की, इसके लिए आपने कोठारी पर्वतीय विकास समिति की संस्था का भी गठन किया था। इसके अंतर्गत उत्तराखंड हिमालय में पाई जाने वाली प्राकृतिक एवं उपजीत की जाने वाली आयुर्वेदिक गुणों से युक्त औषधीय पौधों महत्वता को बढ़ाने के लिए प्राण भी कार्यक्रम में उनकी वनस्पतियों की पहचान, संरक्षण, प्रचार प्रसार तथा ग्रामीण लोगों की भूमिका को लेकर उत्पादन का कार्य शुरू किया। इसके अंतर्गत आपने अनेक पर स्वयं सहायता समूह की महिलाओं एवं किसान समूह को प्रशिक्षण के माध्यम से आजीविका मिशन के तहत जोड़ा यह प्रयास इतना अनूठा एवं सफल रहा कि धीरे-धीरे आपने योजनाबद्ध तरीके का पालन करते हुए, उत्तराखंड के कई सीमांत गांव में जाकर इस कार्यक्रम के द्वारा यहां की स्थानीय वनस्पतियों को पहचान दिलाने के लिए अनेक प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं। दूरस्थ गांव में जागरूकता एवं ज्ञान का संचालन ना होने के कारण वंश परंपरा गतिविधियां कहीं ना कहीं लोभ होती जा रही थी, इसी का बीड़ा एवं जिम्मेदारी समझते भी आपने स्वयं की व्यवस्था पर अनेक प्रकार के कार्यक्रम चलाएं, कोठारी बताते हैं कि धन अभाव होने के कारण कहीं बार यातायात एवं खानपान की व्यवस्था में अवरोध होने के बावजूद भी आपने यह कार्यक्रम पूर्ण संयोजन कर्म एवं बलपूर्वक चलाएं, ऐसे ही अपने दुखड़े को जब आप ने सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर किया तो, मुंबई की संस्था होटल परचेज मैनेजर फोरम (एचपीएमएफ मुंबई) के फाउंडर एवं सचिव नितिन शंकर नागराले जी ने कोठारी जी को फोन करके आश्वस्त किया की इस कार्यक्रम को वह आर्थिक रूप से सफल बनाएंगे, इसी संदर्भ में आप एक लंबा सफर तय करके मुंबई से चेलुसैन द्वारीखाल पौड़ी गढ़वाल तक पहुंच गई, लगातार तीन दिन एचपीएमएफ के सदस्यों ने नियोजन पूर्वक कार्य रणनीति एवं दिक्कतों के बारे में विचार विमर्श किया, आगे के कार्यक्रम का रूपांतरण एवं प्रारूप कोठारी को दिया, धीरे-धीरे इस कार्य को बल मिलता गया लोगों का समुच्चय एवं वर्ग आपके द्वारा पढ़ाए जाने वाले विश्व को समझने एवं व्यवहारिक रूप से करने लगा, अत्यधिक प्रसार एवं मुंबई के संस्थाओं के द्वारा सहयोग किए जाने पर यह पूरे उत्तराखंड में स्वयं सुनील दत्त कोठारी के द्वारा चलाया गया, इनके प्रशिक्षण के कार्यक्रम के अंतर्गत स्थानीय वनस्पतियों की पहचान के लिए एक दिवसीय का वन परिभ्रमण कार्यक्रम भी मुख्य भूमिका एवं वनस्पतियों के व्यवहारिक रूप से जानकारी प्रदान करता है। मुंबई की एक अन्य संस्था टी कॉफी एसोसिएशन के चेयरमैन प्रमोद बोकाडे में उत्पादित होने वाले हर्बल टी एवं अन्य वनस्पतिक उत्पादन के उत्पादन की गुणवत्ता एवं शोध कार्य में कोठारी का सहयोग दिया।
आज वर्ल्ड रिकॉर्ड लंदन के द्वारा लगभग 22,000 लोगों को प्रशिक्षण कार्यक्रम के द्वारा आजीविका मिशन से जोड़ा गया जो अपने आप में अनूठा एवं अविश्वसनीय सा प्रतीत होता है।
इस संबंध में नितिन नागराले जी बताते हैं कि, यह सुनील का हौसला ही था जो इस तरह का रिकॉर्ड बना पाए हम लोग तो दूर बैठे हुए उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति का आकलन एवं सहयोग ,चाहे वह आर्थिक एवं मानसिक हो ही कर सकते हैं, यह उत्तराखंड कोठारी की जन्मभूमि है अतः उन्हीं को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
आज इस तरह की व्यक्तियों की उत्तराखंड में अत्यंत आवश्यकता है जो वंश परंपरागत विधियों को आधार लेकर अपनी संस्कृति को बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय लोगों के रोजगार के लिए भी कार्यशील हैं।