उत्तराखंड

अतिक्रमण हटाओ अभियान से हल्कान है पहाड़

यूं तो प्रदेश भर में इन दिनों अतिक्रमण हटाओ अभियान जोरो पर है,किंतु पहाड़ी जिलों के परंपरागत ग्रामीण बाजारों में अतिक्रमण हटाओ अभियान जोर शोर से चल रहा है, ऐसा लग रहा है, जैसा कि यह अभियान भाजपा वालो का “हर घर, हर दुकान उजाड़ो अभियान हो”,इस अभियान में जहां आमजनता/मतदाता हल्कान है, वहीं भाजपाई नेता कार्यकर्त्ता जनता से मुंह छुपाकर भागे फिर रहे है, भाजपा, RSS, विश्व हिंदू परिषद, वालो की हिम्मत नही हो पा रही कि वह अपनी डबल इंजन की सरकार से ही पूछ ले कि यह क्यो हो रहा है? क्यों लोगो को उजाडा जा रहा है? वैसे भी इन पहाड़ वासियों ने अभी भारी बारिश में आपदा का दंश झेला है, और अब ऊपर से यह अतिक्रमण वाली सरकारी आपदा से भी जूझना पड़ रहा है।
🔴 क्या है अतिक्रमण अभियान की सच्चाई
दिल्ली निवासी एक व्यक्ति प्रभात गांधी द्वारा मा.उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल को एक पत्र लिखा गया कि “नैनीताल के खुटानी मोड़ से पदमपुरी तक”अतिक्रमण के कारण राजमार्ग की स्थिती खराब है”इस पर माननीय उच्च न्यायालय ने स्वत: सज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका (wppil no 117 of 2023) के तहत सुनवाई करते हुए मा.मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ द्वारा दिनांक 26जुलाई 2023 को यह आदेश पारित किया गया कि
(संलग्न आदेश की प्रति)
पैरा संख्या 05
“We would not like to jump to any conclusion but the possibility of tha officers on tha ground belonging to the aforesaid deparments being in hand in gloves with such encroachers cannot be ruled out”
साथ ही सभी DM और DFO को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश है। यद्यपि कोई ऐसा राज्य नही है ,जो अतिक्रमण से न जूझा हो इसीलिए समय समय अनेकों लैंडमार्क आदेश माननीय सुप्रीम कोर्ट के है,जिनमें अनेकों मार्गदर्शी सिद्धांतो का समावेश है,
जैसे:
◾ओल्गा टेलिस बनाम बांबे नगर निगम व अन्य 1985,
◾जुबली हिल्स लेबर वेलफेयर एसोसिएशन बनाम हैदराबाद नगर निगम 2003
◾अभय राज सिंह बनाम महापालिका इलाहबाद
◾सौदान सिंह बनाम नई दिल्ली नगर पालिका 1989
◾हल्द्वानी(बनभूलपुरा) केस जिसमे उच्च न्यायालय के आदेश पर मा. सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन दिया था।


मा.न्यायालयो के उपरोक्त सभी आदेशो का आदर/सम्मान है किंतु वर्तमान में डबल इंजन सरकार अपने ही लोगों विशेष कर पहाड़ी जिलों के छोटे ग्रामीण बाजारों को उखाड़/तोड़ने पर आमादा हो गई, सरकार के बुलडोजर कहर बन कर बरस रहे है। जबकि सरकार के पास उपरोक्त आदेशों के आलोक में मा. सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का न्यायिक रास्ता बाकी था? या अध्यादेश लाया जा सकता था?
अब जनता सवाल पूछ रही है?
1: जब मा. उच्च न्यायालय में उक्त पिटिशन पर सुनवाई हो रही थीं तब सरकारी वकीलों की फौज क्या कर रही थी, क्यो नही माननीय न्यायालय में धरातलीय रिपोर्ट प्रस्तुत की गई?
क्यों नही मा. न्यायालय में चिन्हीकरण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का समय मांगा गया।
2 : जिन राज मार्गो पर ग्रामीणों ने अपनी ही भूमि पर निर्माण किया है, उन्हे किस कानूनी प्राविधान में तोड़ा गया है ? क्या उन्हे प्रतिकर दिया गया या दिया जाएगा?
(जैसा कि चंबा धनोल्टी मार्ग पर)

3: जब सरकार शराब की दुकानों को बचाने के लिए अध्यादेश ला सकती है, तो अपने इन ग्रामीण बाजारों के व्यापारियों/मतदाताओं को बचाने के लिए क्यो नही? पहले इन पर GST की मार अब अतिक्रमण की मांग।

4: बड़े शहरो में बड़े रसूगदारो ने जो अवैध कब्जे किए हुए है उन्हे क्यों नही अतिक्रमण आभियान में तोड़ा जा रहा है, केवल गरीब और पहाड़ के परम्परागत लोगो पर ही यह कार्यवाही क्यो ?(देहरादून सहित अन्य शहरो के बड़े होटल, धार्मिक स्थल, और नेताओ के नाते रिश्तेदारो के अतिक्रमण)

5: बड़े शहरो में जो धार्मिक स्थल मुख्य राजमार्गो पर अवैध निर्मित है,और जिनसे हमेशा दुर्घटना संभावित है, उन्हे क्यो नही हटाया गया?

6: क्या माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में किसी की दुकान/भवन आदि को तोड़ने के एवज में उचित प्रतिकर देने से मना नही किया है? तो क्या सरकार ने ध्वस्तीकरण से पूर्व कोई फौरी राहत की घोषणा की है।

7:क्या राज्य सरकार मा. उच्च न्यायालय के आदेश को मा. सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी? या नही?

8: अतिक्रमण अभियान वाले क्षेत्रों से भाजपा के सांसद विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, सदस्य जिला पंचायत, प्रमुख सभासद, पंच प्रधान और उनके झंडाबरदार नदारद क्यो है ?

9: विगत पांच वर्ष पूर्व भी भाजपा की ही सरकारप्रदेश /देश में थी और तब भी इन्हीं दिनों ठीक निकाय चुनावों से पहले अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया गया था, जबकि तब न्यायालय का कोई आदेश भी नही था, एक आदेश मा. उच्च न्यायालय ने दिया था कि”तालाबों पर जिसने अतिक्रमण किया है उसे हटाया जाए,(संलग्न आदेश की प्रति)
लेकिन तब भी पहाड़ो में इसी तरह से लोगों को परेशान किया गया था, जबकि पहाड में कोई ऐसा तालाब नही था।
कांग्रेस के साथियों ने जब इसका प्रतिकार किया तो मुझ सहित मेरे सहयोगी कांग्रेस के साथियों पर मुकदमे दर्ज किए गए, जिसे हमने मा. उच्च न्यायालय में चुनौती दी और सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया था , तब मा उच्च न्यायालय ने हम पर जबरन किए मुकदमे खत्म कर दिए थे।
अब पुनः निकाय चुनाव सामने है ,और अतिक्रमण हटाओ अभियान भी जारी है, जनता तय करे कि क्या बेरोजगारी, महंगाई, खत्म हो गई? क्या पहाड़ की सड़कों की दशा सुधरी है? जंगली जानवरों के आतंक से राहत मिली है? आपने जिन्हें सांसद, विधायक, चुना वे इस संकट में आपके बीच खड़े है?
आपकों कोई राहत दी गई?
हर तरफ परेशानी ही परेशानी जनता को इस डबल इंजन की सरकार से मिली है।

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