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एक ही तो दिल है, और कितनी बार जितोगे

देहरादून । एक ही तो दिल है, और कितनी बार जितोगे’। यह बात अक्सर भारतीय सेना के लिए कही जाती है। युद्ध का मैदान हो या फिर देश-विदेश में शांति स्थापित करने की बात, आपदा के समय राहत कार्यों, घायलों के इलाज के साथ-साथ मानसिक रूप से लोगों को मजबूत बनाने का काम हो या फिर हर व्यक्ति को देशप्रेम से ओत-प्रोत करना। भारतीय सेना इन सबमें खरी उतरती है। इसी तरह से इन दिनों उत्तराखंड की मेजर बिटिया अपने सेवा भाव और स्नेह से तुर्किये में घायलों का इलाज करने के साथ ही उन्हें सदमे से उबरने में सहयोग कर रही हैं। भारतीय सेना के सोशल मीडिया पेज में उनकी एक तस्वीर दिख रही है, जिसमें एक महिला उनको गले लगा कर स्नेह व्यक्त कर रही हैं।


भारतीय सेना की डॉक्टर मेजर बीना तिवारी तुर्किये में ‘ऑपरेशन दोस्त’ को बखूबी अंजाम दे रही हैं। उनकी फोटो और तमाम समाचार चैनलों में उनकी और भारतीय सेना की तस्वीरों को देख कर करोड़ों लोग उत्तराखंड की इस बेटी को आशीर्वाद दे रहे हैं। मेजर बीना तिवारी उत्तराखंड देहरादून के प्रेमनगर क्षेत्र की रहने वाली हैं। अपने परिवार की वे तीसरी पीढ़ी हैं जो सेना में अपनी सेवाएं दे रही हैं। परिवार के इस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ा रहीं डॉक्टर मेजर बीना तिवारी आगरा की फर्स्ट 60 पैराफील्ड रेजीमेंट से हैं। उनके पति मेजर राजेश धनकर भी एएमसी में डॉक्टर हैं और वर्तमान आसाम के डिब्रूगढ़ में तैनात हैं। मेजर बीना भी पहले डिब्रूगढ़ में ही पोस्टेड थीं। फिर आगरा में उनकी पोस्टिंग हो गयी थी।

मेजर बीना तिवारी के पिता सूबेदार मेजर मोहन चंद्र तिवारी (चम्पावट लोहाघाट के सुई खेंस कांडे गांव के मूल निवासी) अपनी बेटी के सेवा भाव से खुद को बेहद गौरवांवित महसूस कर रहे हैं। इस बारे में बात करते हुए वे कहते हैं कि यह उनका सौभाग्य है कि बीना उनकी बेटी और आज भारतीय सेना का नाम रोशन कर रही है। उन्होंने बताया कि मेरे पिता खिलानंद तिवारी आर्मी में आर्डिनेंस से सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे। मैं खुद 16 कुमाउं रेजीमेंट से सूबेदार मेजर के पद से रिटायर हुआ हूं और अब मेरी बेटी बीना सेना में जा कर देश की सेवा कर रही है। बीना के एक बड़े भाई मुंबई में ही नौकरी कर रहे हैं। मेजर तिवारी के ससुर भी सेना के एएमसी से रिटायर हुए हैं। मां जानकी तिवारी भी बेटी के सेवा भाव से बेहद खुश हैं।

उन्होंने बताया कि बेटी के सेना में जाने पर उन्हें बेहद गर्व होता है। और अब तक वह तुर्की में जा कर लोगों की सेवा कर रही है तो इससे उन्हें खुशी हो रही है कि वह अपनी ड्यूटी बखूबी पूरी कर रही है। उन्होंने बताया कि बीना की डिब्रूगढ़ से 19 जनवरी को ही आगरा में पोस्टिंग हुई थी और फिर ऑपरेशन दोस्त मिशन के तहत भारतीय सेना के दल के साथ वे सात फरवरी को आगरा से तुर्किये गयीं हैं।

जब उनसे पूछा गया कि बेटी दूसरे देश में एक ऐसे समय में गयी है जहां हर तरफ विनाश दिखाई दे रहा है तो क्या मन में बेटी के लिए किसी तरह की चिंता नहीं है तो उन्होंने कहा कि हम सेना से हैं और वो भी कुमाऊं रेजिमेंट से, जिसे पहले परमवीर चक्र (मेजर सोमनाथ शर्मा) से नवाजा गया था। चिंता या डर जैसी कोई बात नहीं है। हमें खुशी है कि हमें इतना बड़ा मौका मिला है दूसरे देश में सेवा करने का और बेटी अपना कर्तव्य पूरा कर रही है।

उन्होंने कहा कि पूरे देश का आभार है कि उनकी बेटी आज पूरे देश की बेटी है और सभी लोगों का उसको आशीर्वाद मिल रहा है। उन्होंने बताया कि बेटी के बारे में पूछने के लिए तमाम जानकारों के फोन आ रहे हैं और सभी उसे आशीर्वाद दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि बीना की पढ़ाई देहरादून के आर्मी पब्लिक स्कूल क्लेमनटाउन से की है। उन्होंने दिल्ली के आर्मी इंस्टिट्यूट ऑफर मेडिकल साइंस से एमबीबीएस किया है।

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