उत्तराखंड

राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह के तहत जंतु विज्ञान के छात्र-छात्राओं का फारेस्ट इको-सिस्टम में भ्रमण–वास्तविक ज्ञान से बचेगी दुनिया: प्रो० मधु थपलियाल

राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह के अंतर्गत जंतु विज्ञान विभाग के तत्वावधान में रा० स्ना० महा० उत्तरकाशी के छात्र छात्राओं तथा विभिन्न विभागों के प्राध्यापकों सहित वरुणाव्रत पर्वत स्थित श्याम स्मृति वन में वन्य जीवों एवं प्राकृतिक वन संपदा के महत्व को समझाने के लिए एक शैक्षणिक भ्रमण कराया गया।

इस मौके पर श्याम स्मृति वन के संस्थापक श्री प्रताप सिंह पोखरियाल ने वरुणाव्रत पर्वत की तलहटी पर उनके द्वारा बनाया गये मिश्रति वन की जानकारी दी गयी। उन्होंने बताया कि वहाँ पर उन्होंने तीन सौ प्रकार के वृक्षों की प्रजातियाँ लगाई हैं। इसके अतिरिक्त इस वन में बहुत सारे औषधीय पौधे भी हैं।

सर्व विदित है कि आज कल देश में राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह का 69वां संस्करण चल रहा है। इसका यह उद्देश्य है कि देश के प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की जानकारी हो कि क्यों हमें अपने आस पास के वन्य जीवों एवं प्राकृतिक संपदाओं को बचा कर रखना है और उनका हमारे जीवन में क्या महत्व है। चूँकि दुनिया की जैव विविधता का बड़ा हिस्सा खतरे में है, जिसमें 25% स्तनधारी, 6 में से 1 पक्षी प्रजाति और 40% उभयचर शामिल हैं इसलिये राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह मनाने का महत्व और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

इस वर्ष की थीम ‘वन्यजीव संरक्षण के लिए साझेदारी’ रखी गई है। यह विषय बातचीत, संरक्षण प्रयासों और जन जागरूकता अभियानों का मार्गदर्शन करता है, वन्यजीवों के संरक्षण और सुरक्षा के उद्देश्य से सहयोगात्मक कार्यों की दिशा में प्रयासों को निर्देशित करना है I वन्यजीव सप्ताह का इतिहास 1952 से मिलता है जब भारतीय वन्यजीव बोर्ड की स्थापना की गई थी, जिसमें भारत के वन्यजीव संरक्षण लक्ष्यों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित एक सप्ताह का विचार आया था। शुरुआत में 1955 में वन्यजीव दिवस के रूप में चिह्नित किया गया, यह 1957 में वन्यजीव सप्ताह के रूप में विकसित हुआ, ताकि इस पहल को व्यापक परिप्रेक्ष्य और संरक्षण प्रयासों के लिए अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया जा सके I

भ्रमण के दौरान प्रो० मधु थपलियाल, विभागाध्यक्ष, जंतु विज्ञान विभाग, ने अपने संबोधन में छात्र छात्राओं को बताया कि सिर्फ किताबी ज्ञान देने से आज के समाज की नयी पीढी को व्यवहारिक ज्ञान नहीं हो पा रहा है क्योंकि आज सभी जल वायु परिवर्तन और पर्यावरण को बचाने की समस्याओं से जूझ रहे हैं, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि आज की पीढी को वास्तविक ज्ञान अवश्य दिलाया जाय I उन्होंने कहा कि यह भ्रमण बहुत ही महत्वपूर्ण है और श्री प्रताप पोखरियाल के प्रयासों से जो ४५ हेक्टेयर में जो वन तैयार किया गया है, वह छात्र-छात्राओं को भी प्रेरणा देता है और सभी छात्र-छात्रायें भी किसी न किसी प्रकार से अपने पर्यावरण में अपने आस पास ऐसे छोटे-छोटे वन विकसित कर सकते हैं I इससे जीव जंतुओं को आश्रय मिलाता है और उनका आवास सुरक्षित रहता है. इस अवसर पर रसायन विभाग के डा० महीधर प्रसाद तिवारी, डा० कैलाश, वाणिज्य विभाग के प्रभारी डा० दिवाकर बौद्ध, डा० अंजना रावत, द्वारा छात्र-छात्राओं को संबोधित किया गया I इस अवसर पर डा० दिवाकर बौद्ध के द्वारा प्रकृति पर स्वरचित गीत का वाचन भी किया गया I
शैक्षणिक भ्रमण के अंत में सभी छात्र-छात्राओं ने भी अपने अनुभव साझा किये और उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए निश्चित रूप से बहुत ही महत्त्वपूर्ण और जानकारी देने वाला वन भ्रमण रहा जिसमे हमने वास्तविक रूप से जाना कि जंगल का पारिस्थितिक तंत्र किस तरीके से कार्य करता है और कैसा होता है I छात्र-छात्राओं ने बताया कि इस भ्रमण के दौरान उन्होंने वास्तविक ज्ञान हासिल किया है जिसके लिये उन्होंने विभागाध्यक्ष प्रो० मधु थपलियाल तथा श्याम स्मृति वन के संस्थापक श्री प्रताप सिंह पोखरियाल जी को धन्यवाद भी दिया I
शैक्षणिक भ्रमण में कु० अमीषा, रेखा, सुशील, सचिन, प्रीती, पूजा, मनीषा, नेहा, पुलमा, राजवीर, राकेश नौटियाल, निकिता, अंजना भट्ट तथा बी० ए० एवं एम० ए० ३ के छात्र-छात्राएँ शामिल रहे I

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