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कला दर्पण के नाटक ‘बर्फ’ का मंचन

सन् 1987 से रंगकर्म की विधिवत् शुरुआत करके दिल्ली तक का सफ़र तय कर देहरादून में बर्फ़ नाटक के शनदार प्रदर्शन कर दून घाटी के रंग इतिहास में एक और यादगार प्रस्तुति जोड़ दी।उत्तरकाशी के नाट्य इतिहास में तो कला दर्पण ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है साथ ही में भा. रंग महोत्सव में भी अपनी प्रस्तुति दी। कला दर्पण के संस्थापक डॉ सुवर्ण रावत ने इससे पूर्व वातायन, गढ़वाल सभा और दून घाटी की अन्य नाट्य संस्थाओं के साथ कई नाटक किये जिसमें कला दर्पण और उसके कलाकारों ने भी भाग लिया। शनिवार की शाम देहरादून के नगर निगम के प्रेक्षागृह में सौरभ शुक्ला के लिखे मूल नाटक 'बर्फ़' के गढवाली रुपांतरण का शानदार मंचन किया गया । नाटक शुरू होने से पहले सुप्रसिद्ध नृत्यांगना श्रीवर्णा रावत द्वारा गंगा स्तुति की शानदार प्रस्तुति दी गई । "बर्फ़" नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन डॉ. सुवर्ण रावत ने और नाटक का गढ़वाली रूपान्तरण फ़िल्म व रंगकर्म से जुड़े बद्रीश छाबड़ा 'पहाड़ी सरदार' ने किया है। नाटक मात्र तीन ही पात्रों के मध्य घूमता रहा। मंच पर गाँव की भोलीभाली गृहणी उषा के किरदार में अभिनेत्री सुषमा बड़थ्वाल व टैक्सी चालक जगदीश की भूमिका वरिष्ठ रंगकर्मी दिनेश बौड़ाई तथा डॉक्टर सिद्धांत का किरदार सुवर्ण रावत ने निभाया है। डॉ. रावत, लैंसडौन-कोटद्वार में एक चिकित्सा सम्मेलन 'मेडिकल कॉन्फ्रेंस' में भाग लेने आता है. जो जगदीश के साथ उसके दुर्गम गांव 'नागतल्ला' पहुंचते हैं। गांव आकर पर डॉक्टर को पता चलता है कि जगदीश का बेटा 'संजू' बीमार है। प्राकृतिक आपदाओं व आदमखोर गुलदार के डर से गांव गांव वीरान पड़ा है। सिर्फ जगदीश और उसका ही परिवार यहाँ रहता है. नाटक में ज़ब कहानी आगे बढ़ती है तो डॉ. रावत को अहसास होता है कि जगदीश की पत्नी उषा, मनोविकार से जकड़ी है, और वह एक बेजान गुड्डे को ही अपना बच्चा समझती है। मनोविज्ञान जैसे जटिल विषय पर आधारित नाटक अपने चुटीले संवादों से दर्शकों को जहाँ एक और हँसने को मजबूर करता है वहीं दार्शनिकता सोचने को भी मजबूर करती है। टाउन हॉल में नाटक शुरू होने से ठीक पहले विधुत व्यवस्था के गड़बड़ाने के बाबजूद पूरी टीम ने जिस हिम्मत से प्रस्तुति की वो काबिले तारीफ़ थी । नाटक में बीच में उषा द्वारा एक दो संवाद बंगाणि का प्रयोग अच्छा लगा किंतु फिर धारा प्रवाह गढ़वाली बोलना थोड़ा अखरा , जगदीश के किरदार को दिनेश बौडाई ने बखूबी निभाया लेकिन उनकी कमजोर आवाज़ की वजह से कई संवाद स्पष्ट नहीं सुनाई दिये। दृश्य परिवर्तन में भी थोड़ी देरी खली। इन छोटी कमियों को छोड़ कर कुल मिला कर नाटक अपनी छाप छोड़ने में सफ़ल रहा। नाटक की मंच परिकल्पना व ध्वनि प्रभाव श्रीवर्णा रावत, अभिनव गोयल, प्रकाश परिकल्पना टी. के. अग्रवाल, सहायक प्रकाश व्यवस्था,हितेश थपलियाल की थी । वेषभूषा नाटक के अनुरूप थी , जिसकी परिकल्पना जयश्री रावत ने की,मंच निर्माण व सामग्री वीरेन्द्र असवाल ,सहायक मंच व्यवस्था अमित सेमवाल व वैभव तिवारी की थी. जबकि रुप सज्जा ऐश्वर्या रावत,पोस्टर, ब्रोशर सुजय रावत का था. फ़ोटोग्राफी दीना रमोला ने की. मेडिकल सलाहकार के तौर पर डॉ. पवन व मोनिका रावत का योगदान रहा . इस नाटक का सफल मंच संचालन पंडित उदयशंकर भट्ट ने किया.

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