उत्तराखंडसामाजिक

भारत पर अमेरिकी टैरिफ और ऊर्जा सुरक्षा

देवेंद्र कुमार बुडाकोटी

ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत से निर्यातित वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाना, रूस से भारत के कच्चे तेल आयात के जवाब में, एक संकीर्ण और असंगत नीति को दर्शाता है। भारत की आलोचना की जा रही है जबकि चीन, जापान, तुर्की और यूरोपीय संघ के कई देश रूस से कहीं अधिक तेल आयात कर रहे हैं। यह चयनात्मक रवैया इस टैरिफ को अनुचित और राजनीतिक रूप से प्रेरित बनाता है।

इसका असर भारत की अर्थव्यवस्था पर खासकर वस्त्र, रत्न और कीमती धातुओं जैसे क्षेत्रों में देखा जा सकता है। भले ही रोजगार और महंगाई पर इसका पूरा असर अभी स्पष्ट नहीं हुआ है, लेकिन भारत सरकार ने अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने की दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। भारत का विशाल घरेलू बाजार, मजबूत कूटनीतिक संबंध और बढ़ती आर्थिक-सेना शक्ति ऐसे दबावों को सफल नहीं होने देगी।

भारत और रूस के बीच व्यापार अमेरिकी डॉलर की बजाय रुपये में होता है, जो वैश्विक व्यापार में “डॉलर मुक्त” व्यवस्था की ओर एक कदम है। भारत मध्य पूर्व देशों के साथ भी रुपये में तेल व्यापार के विकल्प तलाश रहा है। यदि यह चलन बढ़ा, तो यह “पेट्रो-डॉलर” प्रणाली को चुनौती देगा और अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व को कम कर सकता है। BRICS देशों के बीच रुपये आधारित व्यापार की भारत की पहल भी इसी दिशा में है। अमेरिका की चिंता भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से अधिक, डॉलर की वैश्विक पकड़ कमजोर होने को लेकर है।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा लंबे समय से तेल आयात पर निर्भरता से जुड़ी है। भारत अपनी 82% से अधिक कच्चे तेल की जरूरतें आयात से पूरी करता है, जिससे विदेशी मुद्रा पर दबाव और बाहरी झटकों की आशंका बढ़ जाती है। अधिकांश तेल परिवहन क्षेत्र—दोपहिया, कार, ट्रक, बस, विमानन ईंधन और कृषि व थर्मल पावर में डीजल—में खपत होता है।

इसे कम करने के लिए भारत ने इलेक्ट्रिक वाहन (EV) को बढ़ावा देना शुरू किया है, विशेषकर दोपहिया, यात्री वाहन और बसों में। साथ ही, वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं में भी निवेश किया जा रहा है। हिमालय क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं की योजना है, पर भूकंपीय जोखिम, भूस्खलन और मानसून के दौरान पर्यावरणीय चुनौतियां गंभीर हैं। इनके लिए पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का गहन मूल्यांकन जरूरी है।

भारत दुनिया में बिजली का एक बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। थर्मल पावर (मुख्यतः कोयला) अभी भी 45.4% बिजली उत्पादन में योगदान देता है, जबकि जलविद्युत का हिस्सा लगभग 10.2% है, जिसे अब सौर और पवन ऊर्जा ने पीछे छोड़ दिया है। 2025 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों की क्षमता 217 GW पार करने का अनुमान है, जो ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव है। राष्ट्रीय बायोएनेर्जी मिशन, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और रूफटॉप सोलर जैसे कार्यक्रम इस दिशा में अहम हैं।

वर्तमान में, भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता का लगभग 49% गैर-जीवाश्म स्रोतों (जिसमें परमाणु ऊर्जा भी शामिल है) से आता है। ग्रीन हाइड्रोजन के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं भी तेजी से बढ़ाई जा रही हैं ताकि दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

अमेरिकी टैरिफ भारत के लिए तात्कालिक आर्थिक चुनौती जरूर हैं, लेकिन भारत अपने व्यापार और ऊर्जा नीतियों में बड़े स्तर पर बदलाव कर रहा है। ये प्रयास न केवल राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हैं, बल्कि एक संतुलित और बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की दिशा में भी योगदान देते हैं।

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