उत्तराखंड

भारतीय सांस्कृतिक एवम् आध्यात्मिक मूल्यों के संवर्द्धन में त्योहारों का महत्व अनमोल

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र- आईकेएस सेंटर की ओर से सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक एकता और आध्यात्मिक अभ्यास के संरक्षण में भारतीय त्योहारों की भूमिका पर 8वां राष्ट्रीय ऑनलाइन कॉन्क्लेव

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र- आईकेएस सेंटर की ओर से सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक एकता और आध्यात्मिक अभ्यास के संरक्षण में भारतीय त्योहारों की भूमिका पर आयोजित 8वें राष्ट्रीय ऑनलाइन कॉन्क्लेव में टीएमयू के वीसी प्रो. वीके जैन ने बतौर मुख्य अतिथि यूनिवर्सिटी की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए संगोष्ठी को भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की दिशा में सार्थक प्रयास बताया। यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई, मनोआ, होनोलुलु के डॉ. धर्म पीएस भावुक ने भारतीय त्योहारों के व्यक्तिगत और आध्यात्मिक आयामों पर अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, भारतीय उत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन-मूल्यों, आत्मिक साधना और सामाजिक एकता को सशक्त बनाने का माध्यम हैं। उन्होंने नवरात्रि की परंपराओं को कला, संगीत और संस्कृति से गहरे संबंध को रेखांकित किया। डॉ. भावुक ने कहा, भारतीय संस्कृति में स्त्री शक्ति का उच्च स्थान है। ज़ेंसेई के संस्थापक और एक्जिक्यूटिव कोच श्री हरिप्रसाद वर्मा ने भारतीय त्योहारों के सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर अपने विचार साझा करते ओणम की कथा को वामन अवतार से जोड़ते हुए उसके गहरे सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक अर्थ को रेखांकित किया और बताया कि ये त्योहार पूर्वजों के ज्ञान एवम् परंपराओं को आधुनिक संदर्भ में समझने का मार्ग प्रदान करते हैं। उन्होंने विशु के अनुष्ठानों, नरकासुर की कथा और हनुमान पूजा की प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला। श्री वर्मा ने पूर्वजों के ज्ञान और अनुष्ठानों के सार्थक अर्थ को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने मिथक के महत्व को भी स्पष्ट करते हुए कहा, मिथक सामूहिक सपनों का स्वरूप है और सपना व्यक्तिगत मिथक का।

आईकेएस रिसर्च, ब्रहात एजुकेशन ट्रस्ट, हैदराबाद के डायरेक्टर डॉ. श्रीनिवास जम्मलमदाका ने भारतीय त्योहारों के वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक पहलुओं पर गहन व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारतीय त्योहार मौसमी और प्राकृतिक परिवर्तनों से गहराई से जुड़े हैं। डॉ. जम्मलमदाका ने नवरात्रि जैसे पर्वों को उपवास और अनुष्ठानों के माध्यम से शारीरिक एवम् मानसिक संतुलन बनाए रखने का पारंपरिक उपाय बताया। उन्होंने विनायक चतुर्थी में अर्पित 21 जड़ी-बूटियों, जलदान परंपरा और प्रास्तापना जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से पारिस्थितिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों के जुड़ाव पर प्रकाश डाला। ब्रहात, हैदराबाद, की असिस्टेंट मैनेजर तान्या फ्रांज़ ने कहा, भारत के उत्सव सभ्यता, संस्कृति और जीवन-दर्शन की निरंतरता हैं, जिनमें पवित्र और सांसारिक दोनों पहलू विद्यमान हैं। तान्या ने बताया कि भारतीय सभ्यता ज्ञान-केंद्रित और संस्कृति मूल्य-केंद्रित है, जबकि समाज कर्तव्य-प्रधान है। ऋतु और ऋता- ब्रह्मांडीय क्रम के संबंध को स्पष्ट किया और बताया कि छह ऋतुएं समय और प्रकृति के संतुलन की व्यवस्था करती हैं। तान्या ने संस्कृत भाषा की शुद्धता, चंद्रमा की गति पर आधारित कैलेंडर और तीन गुणों- सत्त्व, रजस, तमस के संतुलन की भूमिका पर भी जोर दिया। समापन राष्ट्रीय गान के साथ हुआ। संचालन टीएमयू भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र की समन्वयक डॉ. अलका अग्रवाल और फैकल्टी डॉ. माधव शर्मा ने सयुंक्त रूप से किया।
One attachment
• Scanned by Gmail

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button