
   रामचन्द्र  नौटियाल
उत्तरकाशी। राष्ट्रीय  दीपावली के ठीक एक माह बाद जो दीपावली आती है उसका नाम है *मंगसीर बग्वाल*
  इसे उत्तराखण्ड  के गढवाल क्षेत्र में सम्पूर्ण  जनपद उत्तरकाशी रवाईं जौनपुर देहरादून जौनसार  क्षेत्र टिहरी के थाती कठूड बुढा केदार आदि क्षेत्रों मे मनाया जाता है।
      हिमाचल के पहाडी क्षेत्रों मे भी *मंगसीर बगवाल* को णनाया जाता है।
रवाईं क्षेत्र के *बनाल* व अन्य  हिस्सों में जिसमें उत्तरकाशी  जिले के धनारी फट्टी भण्डारस्यूं के गेंवला गांव इस बग्वाल  को *द्यूलांग* के रूप में   को मनाया जाता है।
       *मंगसीर बग्वाल* तीन दिन का कार्यक्रम होता है। पहले दिन *छोटी बग्वाल* दूसरे दिन *बडी बग्वाल*
और *तीसरे दिन* *बदराज*  का त्यौहार होता है। जिसे *व्रततोड* भी कहा जाता है।
 इसमें पहाड़ी क्षेत्रों मे एक विशेष प्रकार  की घास होती है। जिसे उत्तरकाशी क्षेत् में *बाबैं* कहा जाता है । यह बहुत मजबूत घास होती है ।
 इसका लगभग गांव की लंबाई के हिसाब से मोटा व मजबूत रस्सा बनाया जाता है जिसमे ग्रामीण दो हिस्सों मे बंटकर इसे खींचते हैं। ग्रामीणो का  उत्साह इसे खींचते ही बनता है।   इस रस्सी को स्थानीय  भाषा में *व्रत* कहते हैं ।
इस रस्सी को तोडने की प्रक्रिया को  *व्रततोड* कहते हैं।
इस व्रत की बाकायदा पंडित द्वारा पहले पूजा की जाती है।
    कई लोग इस मान्यता को *समुद्रमन्थन* की पौराणिक गाथा से भी जोडते हैं।
   गांव घरों मे लोग  सफाई  करते हैं और स्वांला(पुरी), पकोडी और पापडी बनाते बैं और चीड के पेड से निकाले गये  *छिलकों* को गोलाई मे कठ्ठा करके  विशेष प्रकार की बेल(लगला) मालू या भीमल की पतली छडी के  साथ बांधा जाता है।
*इसे स्थानीय भाषा में बग्वाल्ठा*कहते हैं* फिर साथ में लय धुन के साथ कहते है और अपने सिर के ऊपर बग्वाल्ठे को घुमाते हैं और कहते हैं- *भैलो रे बग्वालि भैलो कति पक्वाडा खैलो*
मान्यता है  कि जो व्यक्ति अपने सिर के *बग्वाल्ठे* को घुमाते है उसके सारे कष्ट दूर होते हैं।
राष्टीय दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाये जाने के पीछे मान्यता है कि
एक तो माधो सिंह के तिब्बत  विजय के उपलक्ष  मे *मंगसीर बग्वाल* मनायी जाती है।
दूसरी मान्यता है कि प्रभु श्रीराम  के रावण पर विजय श्री प्राप्त करने और अपने स्वदेश अयोध्या लौटने की सूचना ठीक एक माह बाद मिली । जिससे *राष्ट्रीय  दीपावली के ठीक एक महीने बाद यह *बग्वाल*  मनायी जाती है।
  तीसरी मान्यता यह है कि काश्तकारों को स्थानीय लोगों को खेती बाडी का काम पूरी तरह निपट जाता है ठंड का सीजन आ जाता है । जिसे *ह्यूंद* कहा जाता है। इसलिए  इस *बग्वाल*के उत्सव* को मनाया जाता है।
 कारण चाहे जो भी हो हमे अपनी इस पौराणिक  व सांस्कृतिक  विरासत  को संभाले रखना है।
इसके लिए  *अनघा माऊंटेन* संस्था व उत्तरकासी के युवा व जागरुक जन इस पौराणिक  व सांस्कृतिक विरासत  को कायम रखने के कुछ वर्षों से प्रतिवर्ष  जनपद मुख्यालय उत्तरकाशी में *मंगसीर बग्वाल* का आयोजन करते आ रहे हैं ।
     इस वर्ष  यह पर्व  22नवम्बर 2022 से 24नवम्बर 2022 तक है ।
			
		 
				




