
अउत्तरकाशी। जिले के हर्षिल, धराली, रैथल,जरमोला, पुरोला जैसे कुछ क्षेत्र सेब उत्पादन के लिए मशहूर हैं। बावजूद इसके राज्य सरकार की ओर से उत्पादकों के लिए यथोचित व्यवस्था नहीं होने से मंडियों तक वहां का सेब सीधे नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसे में
ज्यादातर उत्पादक अपना सेब हिमाचल के कारोबारियों को सस्ते दरों पर बेचने के लिए मजबूर हैं। हिमाचल के कारोबारी इन सेबों को हिमाचल की ब्रांडिंग लगाकर देश और दुनिया में बेचकर खासा मुनाफा कमा रहे हैं।
आप गंगोत्री की यात्रा पर जा रहे हों तो भटवाड़ी के बाद खासतौर पर सुक्खी टॉप के बाद झाला, धराली और हर्षिल के बीच जहां-तहां सड़कों के किनारे आपको सेब से लद रहे ट्रक दिख जाएंगे। पूछने परबताया गया कि यह सेब हिमाचल भेजे जा रहे हैं। इसकी वजह यह बताई गई कि उत्तराखंड के सेबों की ब्रांडिंग नहीं होने से उनका उचित दाम नह ींमिल पा रहा है। साथ ही यहां सेब का कोई समर्थन मूल्य भी तय नहीं किया गया है। सेब की ग्रेडिंग के लिए भी हर जगह व्यवस्था नहीं है। ऐसे में उनको मंडियों में मंडी में बेचना आसान नहीं है। ऐसे में उन्हें लगता है किसेब हिमाचल भेजे जाएं।
हिमाचल के कई कारोबारी हर्षिल के सेब को हिमाचल के ब्रांड से देश-दुनिया में बेच रहे हैं। हिमाचल के एक कारोबारी संदीप सिंह ने बताया कि दुनिया भर में हिमाचल के सेबकी बड़ी मांग है। हिमाचल इतनी मांग को पूरा नहीं कर पाता। ऐसे में वह उत्तरकाशी जिले के सेब उत्पादकों पर निर्भर हैं। वह उत्तरकाशी जिले के काश्तकारों को पेटियां उपलब्ध कराकरसेब खरीदते हैं। वह बताते हैं कि इससे इनके सेब को हिमाचल के नाम पर दामभी ठीक-ठाक मिल जाता है।
वहीं उत्तरकाशी के सेबउत्पादक दिनेश भट्ट इसके लिए सरकार की नीतियों को दोषी ठहराते हैं। कहते हैं कि सरकार की ओर से उत्तराखंड के सेब को देश-दुनिया में ब्रांडिंग की गंभीरता से कोशिश नहीं की गई। ऐसे में काश्तकारों को अपने सेब येनकेन प्रकारेण बाजार में पहुंचाने के लिए हिमाचल के काश्तकारों परनिर्भर रहना पड़ता है। वह कहते हैं कि उत्तरकाशी जिले के सेब कश्मीर और हिमाचल के मुकाबले में कहीं कम नहीं है। सरकार कोल्ड स्टोरेज के साथ ही उचितब्रांडिंग करे तो उत्तरकाशी के बागवानों को सीधा लाभ पहुंचे। वहकहते हैं कि ऐसा नहीं हुआतोलोग धीरे-धीरे इसेघाटे कासौदासमझकर सेब उत्पादन से मुंह मोड़ने लगेंगे।