देहरादून । जनकवि गिरीश तिवारी “गिर्दा” की पुन्यथिति है। राज्य के हर जन संघर्ष और आंदोलन में गिर्दा शामिल रहे। दशकों तक वे पहाड़ों की दुःख और दर्द की आवाज़ रहे। गिर्दा विकास के नाम पर जो पहाड़ों की लूट और उत्तराखंड के लोगों पर हो रही शोषण के खिलाफ ज़िन्दगी भर लड़ते रहे। इसलिए आज देहरादून, पौड़ी, श्रीनगर, चमियाला, अगस्त्यमुनि, अल्मोड़ा, नैनीताल, उत्तरकाशी और राज्य के अन्य जगहों में उनकी याद में कार्यक्रम को आयोजित किए गए।देहरादून में “हमारी विरासत” के नाम पर गिर्दा की याद में शहीद स्मारक पर लोग इकट्ठे हुए। सांस्कृतिक संगठनों एवं जन संगठनों के प्रतिनिधि के साथ शहर के वरिष्ठ बुद्धिजीवी, लेखक और कवि कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि आजकी सरकार जिस ढंग से बड़े कॉर्पोरेट के हित में नीतियों को बना रही है, और जिस ढंग से पहाड़ों को बेच रही है, ऐसे नीतियों और कदमों को गिर्दा ने हमेशा विरोध किया। गिर्दा के गीतों को गा कर लोगों ने याद किया कि उन्होंने कैसे हर आंदोलन को प्रेरित करते थे।
देहरादून में जन संवाद समिति के सतीश धौलखंडी; उत्तराखंड महिला मंच के कमला पंत, निर्मला बिष्ट, चन्द्रकला, पद्मा घोष और अन्य साथी; वरिष्ठ कवी राजेश सकलानी;बार काउंसिल की पूर्व राज्य अध्यक्ष राजिया बैग; चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, राजेंद्र शाह, और मुकेश उनियाल; उत्तराखंड क्रांति दल के वरिष्ठ नेता लताफत जी; भारत ज्ञान विज्ञान समिति के कमलेश खंतवाल; क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के भोपाल; वरिष्ठ लेखक राकेश अग्रवाल; राज्य आंदोलनकारी जबर सिंह पावेल; और अन्य साथी कार्यक्रम में शामिल रहे।
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