क्या संस्कृत देवभाषा है?
संस्कृत भाषा, भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण भाषा है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न धर्मों और दर्शनों की मूल भाषा भी है। इसका उद्गम संस्कृत के शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ होता है “सुसंस्कृत” या “शुद्ध”। यह भाषा प्राचीनतम भाषाओं में से एक है और इसे लिखित रूप में भी सजीव रखा जाता है। संस्कृत भाषा को मन्यता है कि यह देवताओं की भाषा है और इसे वेदों की भाषा माना जाता है।
संस्कृत भाषा में बहुत सारे इतिहासकार, कवि, माध्यमिकों, दार्शनिकों और शास्त्रीयों द्वारा उपन्यास, काव्य, व्याकरण, नाटक, और शास्त्रों की रचनाएँ की गई हैं। इसके माध्यम से, भारतीय सभ्यता का विकास और विस्तार संस्कृत भाषा के माध्यम से हुआ है। इससे यह सुबह-सवेरे की दिशा-निर्देश, विज्ञान, गणित, आयुर्वेद, योग, वास्तुशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास, धर्म और दर्शन जैसे कई विषयों की समझ में आने वाली भूमिका रही है।
इसके अलावा, संस्कृत भाषा में की गई साहित्यिक और शास्त्रीय रचनाएं विश्वभर में मान्यता प्राप्त हैं। संस्कृत शास्त्रों, कविताओं, नाटकों, और ग्रंथों का अद्यतन संस्कृत की प्राचीनता और शक्तिशाली भूमिका को बचाए रखने का कार्य करता है। यह भाषा आध्यात्मिक और शारीरिक विद्यालयों, के माध्यम से भी पढ़ाई जाती है और संस्कृत काला, संस्कृत संगणक विज्ञान और संस्कृत वार्ता पत्र- के माध्यम से प्रसार भी करती है।
हालांकि, आजकल संस्कृत भाषा की प्रचार-प्रसार कम हो चुका है और अधिकांश लोग इसे उपयोगिता की दृष्टि से नहीं देखते हैं। संस्कृत भाषा न केवल एक देवभाषा है, बल्कि एक विचार, विज्ञान, और संस्कृति का बचावकारी भी है। इसलिए, हमें संस्कृत भाषा के प्रति आदर रखना चाहिए और इसे बचाए रखना चाहिए। संस्कृत भाषा के माध्यम से हमारी भारतीय संस्कृति का मानववादी और शिक्षावादी ग्रंथित धरोहर हमारे सामग्री नगरी का निर्माण हो सकता है।
सुविधाजनक भाषा की तरह हमें संस्कृत की बात करने, समझने और सीखने की आवश्यकता है। संस्कृत के सरल व्याकरण प्रकार और मानवीय चरित्र इसे अद्यात्मिक और प्रासंगिक भाषा बनाते हैं। भारतीयों को अपनी उत्पत्ति, इतिहास और संस्कृति की मूल जड़ों तक पहुँचने के लिए इसे सीखने और समझने का प्रयास करना चाहिए।
संक्षेप में कहें तो, संस्कृत भाषा हिन्दी के लिए मूल और महत्वपूर्ण भाषा है, जिसे हमेशा से ही मान्यता प्राप्त होती रही है। इसकी महत्ता भारतीय सभ्यता, धर्म और संस्कृति के आधार के रूप में प्राप्त की जानी चाहिए।
पहली बार संस्कृत निदेशालय हरिद्वार जाने पर …शीशपाल गुसाईं