उत्तरकाशी। न पे सफरी तंबाकू त्वेन जुकड़ी फुकोंणा फेम लोक गयाक किशन सिंह पंवार नहीं रहे। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे, पंवार ने गढ़वाल की लोक परंपराओं के साथ ही समाज के दुख दर्दों के गीत भी लिखे। डूबती टिहरी पर उनकी गायी टिहरी चालिसा खासी चर्चा में रही।
प्रतापनगर के नाग गांव में जन्में पंवार ने अपने शिक्षक जीवन का प्रारंभ राजकीय इंटर कॉलेज लंबगांव से किया, उन्होंने गीतों के साथ ही पहाड़ी गेहनों और पहाड़ी काष्ठ कलाओं पर भी काम किया, वह पहाड़ के प्रतिनिधि गायाकों में शुमार थे। अपने जीवन काल में अप्पू महोत्सव दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी गायकी के जलवे से उत्तराखंडियों को सम्मोहित करते रहे। पंवार ने त्रिहरी संस्था की ओर से नई टिहरी में आयोजित त्रिहरी महोत्सव में भी अपने गीतों के माध्यम से जनता को कई संदेश दिये।
जिन्होंने अनेकों अनेकों प्रकार के गीत गाए और इसी श्रृंखला में उनका एक बहुत ही चर्चित गीत न पे सफरी तमाखू जिस गीत के माध्यम से उन्होंने एक संदेश दिया मैं समझता हूं कि वह संदेश यह रहा होगा क्योंकि उन्होंने उसमें सफरी का जिक्र किया है की बीड़ी सिगरेट दारू यह सब मत अपनाऔ क्योंकि जीवन भी एक सफर है इसलिए शायद सफरी का जिक्र हुआ है तो इसलिए सफरी तू इन व्यसनों से बच इन व्यसनों से जीवन सफर खराब हो सकता है वह एक अच्छे शिक्षक भी थे इसलिए वह ऐसे संदेश देते थे इसलिए आज मेरे हिसाब से उनको एक सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि जो उन्होंने गीतों के रूप में गीतों के माध्यम से संदेश दिए हैं आज की पीढ़ी को हम सब लोगों को कहीं ना कहीं उस संदेश को धारण करने की जरूरत है जिससे कि हमारा जो जीवन रूपी सफर है यह आनंदित हो सकता है तो ऐसे महान लोक कलाकार को लोकगायक हरिभजन पंवार ने अपनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा मैं शत-शत नमन करता हूं और विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उनकी आत्मा को शांति मिले और वह हमेशा हमेशा हमारे हम सबके हृदय में उनकी याद उनकी गीत हमेशा अमर रहेंगे शत शत नमन