उत्तराखंड में पंचायत चुनाव में 2 से अधिक बच्चों वाले लोग भागीदारी नहीं कर पाएंगे सरकार अपने इस फैसले को बदलने का मन बना रही है ऐसी विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली है।
मेरा पंचायत राज मंत्री माननीय सतपाल महाराज से अनुरोध है कि पंचायतों को प्रयोगशाला बनाने के बजाय एक समग्र अध्ययन कराने के बाद केवल दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को कट ऑफ डेट निर्धारित करते हुए पंचायत चुनाव में भागीदारी करने का मौका देने के बजाय पंचायतों में परिसीमन और आरक्षण की पद्धति का भी परीक्षण कर लिया जाए।
पंचायतें हर 5 साल में परिसीमन आरक्षण के रोटेट होने के कारण कमजोर हो रही है। पुराने और अनुभवी प्रतिनिधियों को दोबारा मौका न मिलने के कारण सदन में नए लोगों को अधिकारी कर्मचारी जानकारी के अभाव में गुमराह करते हैं। एक बार चुने जाने के बाद पंचायत प्रतिनिधि मात्र 5 साल को लक्ष्य करके काम करते हैं ऐसे में पंचायतों के माध्यम से विकास की जो अपेक्षाएं हैं अनुभव की कमी और 5 साल के लक्ष्य के कारण वह सही तरीके से धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं।
मेरा मानना है कि पंचायत राज एक्ट की खामियों को अध्ययन के बाद दूर करने से ही पंचायतें मजबूत होगी। विधायिका पंचायत प्रतिनिधियों को सौत के रूप में देखने के बजाय उनको अपने सहयोगी के रूप में देखें ताकि धरातल पर राज्य सरकार के और पंचायतों के विकास के काम बेहतर तरीके से उतर सकें।