उत्तराखंडराजनीति

20 वर्ष की उम्र में हुई थी 13 माह व 13 दिन की सजा

नत्था सिंह कश्यपने अंग्रेजी हुकूमत और टिहरी रियासत के खिलाफ आवाज उठाई थी

उत्तरकाशी । देश की आजादी के पीछे अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों का अहम योगदान रहा है।देश की आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर हमें इन सेनानियों का स्वतः ही स्मरण हो आता है। इन्हीं में एक थे स्वतंत्रता सेनानी स्व.नत्था सिंह कश्यप,जिन्होंने दोहरी गुलामी एक तरफ अंग्रेजी हुकूमत और दूसरी तरफ टिहरी राजा की रियासत के खिलाफ आवाज उठाई थी।जसका परिणाम यह हुआ कि 20 वर्ष की उम्र में उन्हें टिहरी जेल में 13 माह व 13 दिन के कठोर कारावास की सजा काटनी पड़ी थी।

स्वतंत्रता सेनानी स्व.नत्था सिंह कश्यप का जन्म 3 मई 1921ग्राम रोणियां,प्रतापनगर टिहरी में हुआ था।उनकी कर्मभूमि टिहरी गढ़वाल के साथ उत्तरकाशी जनपद रही।उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के साथ टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।जेल से छूटने के बाद लाहौर में उच्च शिक्षा ग्रहण की।अपने खर्चे पर वीर पुस्तकालय खोला और कई पुस्तकें भी लिखी।टिहरी रियासत का जब भारत संघ में विलय हुआ तो तीन वर्ष तक प्रजामंडल की सरकार बनी। नत्था सिंह सरकार संचालन समिति के सदस्य भी रहे।बाद में रियासत का उत्तर प्रदेश में विलय हो गया।अंतरिम सरकार में वे सेम मुखेम से एम.एल.ए.भी चुने गये।गरीब जनता की सुविधा के लिए उनके प्रयासों से सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों का खुलना संभव हो सका।आयुर्वेद का अच्छा ज्ञान होने के कारण उन्होंने लंबगांव एवं चिन्यालीसौड़ क्षेत्र में निशुल्क उपचार की व्यवस्था उपलब्ध करवाई

।उन्होंने अपने ग्राम रोणियां की निजी भूमि पर शहीद श्रीदेव सुमन के नाम पर जूनियर हाईस्कूल खोला,बाद में इसकी रजिस्ट्री शिक्षा विभाग के नाम कर दी गई।टिहरी जनपद में राजकीय इंटर कालेज इन्हीं के नाम पर है। साधारण जीवन व्यतीत करने वाले नत्था सिंह कश्यप ने सदैव खादी वस्त्रों को ही अपनाया। सादगी और सेवा की इस प्रतिमूर्ति का 24 सितंबर 2015 में 92 वर्ष की आयु में निधन नागणी चिन्यालीसौड़ में हो गया।उनकी पुण्य तिथि पर उत्तरकाशी और टिहरी की जनता उनका भावपूर्ण स्मरण एवं नमन कर रही है।

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