उत्तराखंडराजनीति

लोगों को बेघर करने की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाय

300 से अधिक महिलाओं ने दिया ज्ञापन, किसी को ना किया जाये बेघरबार

देहरादून। पिछले कुछ सप्ताहों से उत्तराखंड राज्य में लगातार आवाज़ उठ रही है कि सरकार अपने वादों को तोड़ कर लोगों को बेघर करने की प्रक्रिया में लग गयी है। आज़ भी राज्य के कुछ प्रमुख विपक्षी नेताओं एवं जन संगठनों की और से एक सृष्टि मंडल ने इस मुद्दा पर मुख्यमंत्री आवास में 325 से ज्यादा महिलाओं की और से मुख्यमंत्री के नाम पर ज्ञापन सौंपा। मुख्यमंत्री के निजी सचिव श्री MC जोशी ने ज्ञापनों को लिया।

इन ज्ञापनों द्वारा इन परिवारों ने कहा कि किसी भी परिवार को बेघर करना बच्चों, बुज़ुर्गों और महिलाओं के लिए घातक हो सकता है। सरकार चुनाव से पहले घर बनाने का और तीन साल तक मलिन बस्तियों की रक्षा दे कर नियमितीकरण कराने का भी वादा किया था। उन वादों का क्या हुआ?

सृष्टि मंडल में शामिल हुए वरिष्ठ लोगों ने लोहारी गांव में परिवारों को बेघर करने के साथ साथ में मलिन बस्तियों में घरों को तोड़ने का ज़िक्र करते हुए इन परिवारों की मांगों को पूरा समर्थन किया। साथ साथ में शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का बयान को भी ज़िक्र की जिसमें उन्होंने कहा है कि चम्पावत उप चुनाव के बाद प्रदेश में बहुत क्षेत्रों में तोड़फोड़ शुरू कर दी जाएग।अपने ज्ञापन में उन्होंने कहा कि विकास परियोजनाओं के नाम पर या अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों को बेघर करना गैर ज़रूरत और जन विरोधी कदम है। किसी भी जगह से लोगों को विस्थापित करने से पहले उनके लिए वैकल्पिक जगह एवं पुनर्वास की व्यवस्था तय करना सरकार की ज़िम्मेदारी है।

सृष्टि मंडल में उत्तराखंड महिला मंच के कमला पंत, समाजवादी पार्टी के राज्य अध्यक्ष डा SN सचान, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, सुनीता देवी, अशोक कुमार, राजेंद्र साह, पप्पू, संजय, बिमला देवी आधी शामिल रहे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हिरा सिंह बिष्ट और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव समर भंडारी ने मांगों को समर्थन दिया।

महिलाओं का ज्ञापन और सृष्टि मंडल का ज्ञापन सलग्न।

*सृष्टि मंडल की और से ज्ञापन*

सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तराखंड सरकार

विषय: राज्य में लोगों को बेघर न करने की प्रक्रिया हेतु

महोदय,

आज हम 265 से ज्यादा गरीब महिलाओं और उनके परिवार की और से आपको यह ज्ञापन सौंप रहे हैं। ज्ञापन के जरिये इन परिवारों का कहना है कि किसी भी परिवार को बेघर करना बच्चों, बुज़ुर्गों और महिलाओं के लिए घातक हो सकता है ।

ज्ञापन द्वारा ये परिवार सरकार से यह भी जानना चाह रहे हैं कि सरकार के वादों पर कारवाई क्यों नहीं हो रही है?

हम इन परिवारों की मांगों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं। 29 अप्रैल और 18 मई को इन बातों को हम लोगों ने पहले भी उठाया था।

9 अप्रैल को जौनसार बांवर क्षेत्र के लोहारी गांव में रहने वाले परिवारों को 48 घंटे का समय दे कर बाँध परियोजना के लिए उ बेदखल कर दिया गया। इसके साथ साथ पिछले कुछ सप्ताहों से खबरें आ रही है कि रुद्रपुर, मसूरी, देहरादून के दो क्षेत्र (शास्त्रीनगर खाला एवं धर्मपुर डांडा), और अन्य क्षेत्रों में भी अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीब परिवारों को बेघर कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त, The Print न्यूज़ पोर्टल में 9 मई को शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के बयान के अनुसार, सरकार सिर्फ चम्पावत उप चुनाव के इंतज़ार में है। चुनाव होते ही बहुत क्षेत्रों में अतिक्रमण हटाने को तोड़फोड़ शुरू कर दी जाएगी।

इस सन्दर्भ में इन गरीब परिवारों के साथ हम फिर आपके सामने कुछ बुनियादी विचारणीय बिंदुओं को रखना चाह रहे हैं:

– राज्य में विकास परियोजनाओं के नाम पर या अतिक्रमण हटाने के नाम पर , वहां रह रहे गरीब लोगों को , बिना उनके लिए वैकल्पिक आवासीय व्यवस्था के , बेघर करना एक गैर ज़रूरी और जन विरोधी कदम है। किसी भी जगह से लोगों को विस्थापित करने से पहले उनके लिए वैकल्पिक जगह एवं पुनर्वास की व्यवस्था तय करना सरकार की ज़िम्मेदारी है।

– गरीब परिवारों के लिए आपकी सरकार ने चुनाव से पहले तीन घोषणाएं की थी –

1- तीन साल तक मलिन बस्तियों को उजाड़ने पर विधेयक द्वारा रोक;
2- प्रधान मंत्री आवास योजना के अंतर्गत सारे मज़दूर परिवारों के लिए आवास उपलब्धम कराना;
3- गरीब परिवारों के घरों के नियमितीकरण या पुनर्वास के लिए स्थायी व्यवस्था बनाना।

हमारी आपसे मांग है कि लोगों को बेघर करने के बजाय इन वादों को सरकार पूरा करे।

– विकास परियोजनाओं से विस्थापित होने वाले कुछ परिवारों के लिए जनवरी 2017 में तत्कालीन सरकार ने ज़मीन के बदले ज़मीन देने की नीति बनायीं थी। 2021 में इस नीति को वापस लिया गया। ऐसी नीति राज्य में बहुत ज़रूरी है। इसे लागू किया जाए ।

– वन अधिकार कानून के तहत किसी भी वन जमीन पर परियोजना लगाने से पहले वहां के स्थानीय ग्राम सभाओं से अनुमति लेना अनिवार्य है। इस प्रावधान पर अमल उत्तराखंड राज्य में कहीं नहीं दिख रहा है। राज्य सरकार इस प्राविधान को तुरंत अमल में लाए।

अतः इन सैकड़ों परिवारों के साथ हमारा भी पूरा विश्वास है कि सरकार अपने वादों के अनुसार किसी भी परिवार को बेघर करने पर तुरंत रोक लगा देगी।

निवेदक,

*गरीब महिलाओं का ज्ञापन*

सेवा में

माननीय मुख्यमंत्री

उत्तराखंड सरकार

महोदय,

हम गरीब और मज़दूर वर्ग के परिवार से हैं। क्योंकि किसी भी नियमित कॉलोनी में कमरा लेने की हमारी क्षमता नहीं है, हम लोग मलिन बस्तियों में रहते हैं। हमारी और से राज्य सरकार से कुछ आग्रह हैं:

– आप जानते हैं कि किसी भी परिवार को बेघर करने से बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए घातक स्थिति बन सकती है। इसलिए जून 2018 और मार्च 2021 में हज़ारों लोगों ने आवाज़ उठाई कि सरकार एक कानून ला दें कि अतिक्रमण हटाने के नाम पर किसी भी परिवार को बेघर नहीं किया जायेगा। हमारा निवेदन है कि इस मुद्दे पर सरकार अपनी राय स्पष्ट करे ।

– सरकार लगातार घोषित करती आ रही है कि बस्तियों की नियमितीकरण होगी और बस्ती में रहने वाले लोगों को पट्टा मिलेगा। लेकिन यह प्रक्रिया कहीं पर भी नहीं दिखाई दे रही है। सरकार मज़दूरों के लिए हॉस्टल और गरीब परिवारों के लिए आवास का व्यवस्था करें, इसपर भी सालों से मांग उठ रही है, लेकिन इसपर भी ज्यादा कदम नहीं दिखाई दे रहे हैं । इसपर भी सरकार अपनी राय स्पष्ट करे।

– जुलाई 2021 में सरकार ने घोषित किया था कि अध्यादेश द्वारा तीन साल तक बस्तियों को उजाड़ने की प्रक्रिया पर रोक लगायी गयी है। लेकिन अख़बार में आ रही खबरें के अनुसार राज्य में कुछ इलाकों में मलिन बस्तियों में घरों को उजाड़े जा रही है। उस अध्यादेश की स्थिति क्या है, इसपर भी सरकार अपनी राय स्पष्ट करे।

अतः हमारी पूरी विश्वास है कि सरकार ऐसे कानून और नीति बनाएगी जिससे किसी भी परिवार या व्यक्ति को बेघर करने पर रोक लग जाएगी।

निवेदक

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button