श्रद्धांजलि: नीलकांत – पूरा जीवन साहित्य के लिए किया समर्पित !


प्रयागराज। प्रयागराज के वयोबृद्ध साहित्यकार ने शनिवार की अल-सुबह चार बजे दिल्ली में अंतिम सांस ली, तब पत्नी साथ में ही थीं। अंतिम समय में इलाज के लिए दिल्ली गए हुए थे। आपके के दो बेटे हैं जो मुंबई में अपना कामकाज करते हैं। 22 मार्च 1942 को जौनपुर के बराई गांव में नीलकांत का पूरा जीवन प्रयागराज में ही बीता। आपकी एक दर्जन से अधिक किताबें प्रकाशित हुई हैं। जिनमें एक बीघा ज़मीन (उपन्यास), बंधुआ राम दास (उपन्यास), बाढ़ पुराण (उपन्यास), महापात्र (कहानी संग्रह), अजगर बूढ़ा और बढ़ई (कहानी संग्रह), हे राम (कहानी संग्रह) और मत खनना (कहानी संग्रह) आदि प्रमुख हैं।
सन् 1982 में आपने ‘हिन्दी कलम’ नाम से पत्रिका का संपादन शुरू किया था, जिसके चार अंक तक छपे थे। कोलकाता से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘लहक’ ने मार्च: 2016 में आप पर एक विशेषांक प्रकाशित किया था, यह अंक काफी चर्चा में रहा। साहित्य भंडार समेत कई संस्थाओं ने आपको सम्मानित किया है। नीलकांत की प्रांरभिक शिक्षा गांव की ही पाठशाला में हुई। कक्षा पांच पास करने के बाद रतनुपुर स्थित चंदवक, जौनपुर के इंटर कॉलेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। प्रयागराज में जीआईसी से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और परास्नातक किया। परास्नातक इन्होंने दर्शनशास्त्र विषय से किया। बचपन से ही पढ़ने और लिखने का शौक़ रहा है। स्वतंत्र लेखन करते हुए इन्होंने कथा और उपन्यास लेखन में एक अलग ही पहचान बनाई।
लेखन के साथ ही विभिन्न साहित्यिक आयोजनो में अपनी सहभागिता से कार्यक्रम को नया आयाम देने का काम करते थे। ख़ासकर इनकी कहानियों में देश और समाज का वास्तविक चित्रण बहुत ही मार्मिक ढंग से किया गया है, जिन्हें पढ़ने के बाद वर्तमान समाज की असलियत का सहज ही अंदाज़ा हो जाता है, कभी-कभी पाठक यह सोचने पर मजबूर होता था कि समाज में ऐसे लोग क्यों और कैसे पनप रहे हैं। इनकी कहानियों में गांव की यथास्थिति का वर्णन और भी रोचक ढंग से की गई हैं। इन कहानियों से कहीं-कहीं तो प्रेमचंद और टालस्यटॉय के बिंब और प्रतीक उभरकर सामने आ जाते हैं। इन्होंने अपना पूरा जीवन साहित्य लेखन को समर्पित कर दिया है।
इनके पिता स्व. तालुकेदार सिंह किसान थे। आय का्र प्रमुख साधन कृषि ही था। मां स्व. मोहर देवी साधारण गृहणी थीं। आप के चार भाई और एक बहन थी। बड़े भाई स्व. मार्कंडेय जी जाने-माने साहित्यकार थे।
प्रदेश में सपा शासन के दौरान स्टेट विश्वविद्यालय की स्थापना इलाहाबाद में की गई। इस दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस विश्वविद्यालय के लिए झूंसी में 76 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध कराई है। उसी विश्वविद्यालय में आपने कुछ दिनों तक अध्यापन का काम किया था।