उत्तराखंड

एलिवेटेड रोड के नाम पर की जा रही कागजी प्रक्रिया का जमकर विरोध

आज दून समग्र विकास अभियान और बस्ती बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधियों लोक निर्माण विभाग के कार्यालय पर पहुंच कर एलिवेटेड रोड के नाम पर कागज इक्ट्ठे करने की प्रक्रिया को गौर कानूनी ठहराते हुए जमकर विरोध किया। जिलाधिकारी के नाम ज्ञापन को सौंपवाते हुए उन्होंने कहा कि जब भू अधिग्रहण कानून 2013 के कानूनी प्रावधानों में स्पष्ट है कि दोनों प्रभावित लोगों की सूची एवं सरकार की प्रस्तावित पुनर्वास नीति सामाजिक असर मूल्यांकन (SIA) के समय ही सार्वजनिक करना था और इनपर जनता से वार्ता करनी चाहिए थी, अभी बिना कोई भी जानकारी देते हुए लोगों से कागजों को मांगा जा रहा है। हर बस्ती में पिछले एक साल में कम से कम तीन से चार बार सर्वे हो चुका है और कागजों को वहीं मांगा गया था, अभी फिर बिना कोई जानकारी देते हुए कागज मांगने से प्रशासन की मंशा पर जनता के बीच में सवाल उठने लगे हैं। ऐसा तो नहीं है कि इस प्रक्रिया द्वारा प्रशासन मनमानी से पुनर्वास एवं मुआवज़ा योजना में कुछ लोगों को शामिल करेगा और बाकी लोगों को वंचित कर देंगे? अगर प्रशासन की नियत जनहित है, तो कानूनी प्रक्रिया के विपरीत कार्यवाही करने की कोशिश क्यों की जा रही है?

प्रतिनिधिमंडल अधिशासी अभियंता राजेश कुमार से भेंट कर उनको ज्ञापन  सौंपवाया और लोगों की चिंताओं एवं क़ानूनी प्रावधानों को ले कर वार्ता की। अधिशासी अभियंता ने आश्वासन दिया कि उचित स्तर पर इन बातों को  पहुंचवाई जाएगी और इनपर विचार किया जायेगा।  
प्रतिनिधिमंडल में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ SN सचान, बस्ती बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष एवं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के शहरी सचिव अनंत आकाश, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, राजेंद्र शाह, राजेश्वरी, भूपेंद्र इत्यादि के साथ ब्रह्मपुरी, कांठ बांग्ला, राजीव नगर, गब्बर बस्ती एवं अन्य क्षेत्रों के लोग शामिल रहे।  
ज्ञापन सलग्न।  
निवेदक दून समग्र विकास अभियान     

ज्ञापन

सेवा में,

जिलाधिकारी

देहरादून

द्वारा: कार्यालय अधिशासी अभियंता, प्रा0खा0, लोक निर्माण विभाग

महोदय,

10 दिसंबर को आपके कार्यालय की और से जारी किया गया विज्ञापन और साथ साथ में रिस्पना बिंदाल नदियों किनारे बसे लोगों से फ़ोन द्वारा कागज़ मांगने के सन्दर्भ में हम आपके संज्ञान में कुछ गंभीर बातों को लाना चाहेंगे:

1. यह विज्ञापन और यह कार्यवाही किस कानून के तहत की जा रही है, उसपर अभी कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं है।

2. भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 और उसके अंतर्गत बनी नियमावली के अनुसार सामाजिक असर मूल्यांकन (SIA) के दौरान प्रभावित लोगों की सूची तय की जाना चाहिए थी और सार्वजनिक होनी थी। आज तक  इसके बारे में कोई भी सूचना सार्वजनिक नहीं है और यह सूची SIA रिपोर्ट में भी नहीं है।

3.  आज तक पुनर्वास को ले कर सरकार की और से कोई भी नीति तय नहीं है। सामाजिक मूल्यांकन  यह नीति तय कर, जनता से वार्ता किया जाना चाहिए।  उपरोक्त  अधिनियम और उसके अंतर्गत बनी  नियमावली के अनुसार यह भी SIA और उसके अंतर्गत जन सुनवाई की प्रक्रिया का एक भाग होना चाहिए था।  

4 . अभी बिना कोई जानकारी देते हुए, बिना कोई नीति तय करते हुए, प्रशासन लोगों से कागज़ मांग रहा है।   इससे यह आशंका पैदा हो रही है कि इस प्रक्रिया द्वारा प्रशासन मनमानी से पुनर्वास एवं मुआवज़ा योजना में कुछ लोगों को शामिल करेगा और बाकी लोगों को वंचित कर देंगे।  

5. इसके अलावा आज तक इस परियोजना का कोई भी नक्शा  सार्वजनिक नहीं है। मीडिया द्वारा प्राप्त हुई खबरों के अनुसार  परियोजना का प्रस्तावित डिज़ाइन पर केंद्र सरकार की और से आपत्ति भी उठायी गयी है।  इस परियोजना से पर्यावरण,  नदियों, प्राकृतिक आपदाओं की सम्भावना, और प्रभावित जनता से क्या असर पड़ेगा, इसपर कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं है।  

महोदय, भू अदिग्रहण और SIA की प्रक्रिया के हर कदम पर प्रशासन ने कानून एवं नियमावली के विपरीत कार्यवाही की है।  इससे जनता के बीच में प्रशासन की मंशा पर आशंका फ़ैल रही है।  ऐसे लगता है कि जनहित में नहीं, चंद लोगों के  हित में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाई जा रही है।  

अतः हम आपसे निवेदन करना चाहेंगे कि कानून के अनुसार इस प्रक्रिया को रद्द किया जाये और प्रशासन  कानून के अनिवार्यताओं एवं  पारदर्शिता के साथ कार्यवाही करे।  इस विनाशकारी, जन विरोधी प्रस्तावित परियोजना को रद्द भी किया जाये।

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