उत्तराखंडसामाजिक

डा अतुल शर्मा के दूनबाल नुक्कड़ नाटक के चालीस साल हुए पूरे।

अब ये नन्हे रंगकर्मी पैतालीस साल के हो गये है । जो भी नुक्कड़ नाटकों मे है । यह फोटो ग्रीष्मोत्सव मसूरी ।

किसी भी नुक्कड़ पर नाटक खेलना कोई आसान काम नही है । फिर भी यह मुश्किल कार्य बहुत से लोग करते है । पर यह कुछ अलग सी बात है कि नुक्कड़ नाटक बच्चो के द्वारा खेलना जरुर अलग बात है ।
एक विधिवत् सस्था बना कर बाल नुक्कड़ नाटक बना कर दस से तेरह साल के बच्चो को रंग कर्मी बना कर उतना बेहद कठिन काम है ।
यह हमने कर दिखाया ।मैने चालीस साल पहले दून बाल नुक्कड़ दल बनाया था ।
पांच सौ जगह यह नुक्कड़ नाटक किये । उत्तराखंड और बाहर भी । केन्द्र रहा देहरादून ।
इसके विशिष्ट अनुभव रहे ।
साप्ताहिक हिन्दुस्तान और ट्रिब्यून आदि के साथ स्थानीय समाचार पत्रो ने बहुत समाचर दिये ।
मसूरी शरदोत्सव मे यह दल हर साल आमन्तित करता रहा ।
सफेद कुर्ता पाजामा और लाल रिबन कमर पर । यह ड्रेस थी । कथा और संवाद बच्चो के साथ कार्यशाला मे तैयार होते थे ।
नाटक बच्चो की समस्याओ के पर होते । खेल भी होते । रंग भी और गीत भी ।
वे हर जगह आक्रमण का केन्द रहे।
अब वे बच्चे भी तीस चालीस बरस के हो गये होगे पर जब मिलते है तो उन्हे मिले आत्मविश्वास की याद करते है ।

नाटक थे खबरो का खजाना/ गिरगिट/गड्ढा/आदि ।
पर एक अनूठा नुक्कड़ था_ एक थी पूनम ।
एक बार देहरादून मे छोटी बच्चीयो का अपहरण हो रहा था । बच्चो मे दहशत थी । तब बच्चो का भय दूर करने के लिये मौहल्लो मे यह नुक्कड़ नाटक खेला दूनबाल नुक्कड़ नाटक दल ने ।
उन बच्चो के साथ भी टीम बनी जो कभी स्कूल नही गये । उन्हे पढाया भी गया ।
नुक्कड़ नाटक होते रहे है । बाल नाटक भी पर रैगुलर बाल नुक्कड़ नाटक शायद यहां पहली बार हुआ ।

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