श्री कल्पद्रुम महामंडल विधान में भक्तिभाव के साथ अर्घ्य समर्पित

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के रिद्धि-सिद्धि भवन में श्री मज्जिनेन्द्र कल्पद्रुम महामंडल विधान विधि-विधान में जैन संतों ने बताई मोक्ष मार्ग के प्रथम सीढ़ी की आंतरिक प्रक्रिया
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के रिद्धि-सिद्धि भवन में आयोजित श्री मज्जिनेन्द्र कल्पद्रुम महामंडल विधान का पांचवां दिन जैन दर्शन के हृदय- सम्यक दर्शन की प्राप्ति पर गहन चिंतन-मनन के लिए समर्पित रहा। प्रज्ञाश्रवण उपाध्याय श्री 108 प्रज्ञानंद मुनि महाराज, मुनि श्री सभ्यानंद जी मुनिराज, कर्मयोगी क्षुल्लकरत्न गिरनार पीठाधीश श्री 105 समर्पण सागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री 105 दिव्यानंद जी महाराज, क्षुल्लक श्री 105 प्रबुद्धानंद जी महाराज सरीखे जैन संतों के पावन सान्निध्य और उनके ओजस्वी, दार्शनिक उपदेशों ने श्रद्धालुओं को मोक्ष मार्ग के प्रथम सीढ़ी की आंतरिक प्रक्रिया से अवगत कराया। कल्पद्रुम महामंडल विधान का शुभारंभ शांतिनाथ भगवान के अभिषेक से हुआ। मंगल शांतिधारा करने का परम सौभाग्य महायज्ञ नायक के रूप में टीएमयू के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, सम्राट भरत चक्रवर्ती की भूमिका में ग्रुप वाइस चेयरमैन श्री मनीष जैन, एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन आदि को मिला। उल्लेखनीय है, श्री कल्पद्रुम महामण्डल विधान में सुभद्रा चक्रवती- श्रीमती ऋचा जैन, श्री ऋषि जैन सौधर्म इन्द्र, श्रीमती निधि जैन- शचि इंद्राणी, वीसी प्रो. वीके जैन- महामंडलेश्वर, श्री मनोज जैन- बाहुबली, प्रो. विपिन जैन-कुबेर की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। इस सुअवसर पर श्रीमती वीना जैन, श्रीमती जाह्नवी जैन आदि की भी उल्लेखनीय मौजूदगी रही। विधान में श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव के साथ अर्घ्य समर्पित किए। श्री कल्पद्रुम महामंडल विधान में सम्राट भरत चक्रवर्ती- ग्रुप वाइस चेयरमैन श्री मनीष जैन ने समोशरण में विराजमान उपाध्याय महाराज से पूछे, हे गुरूवर, सम्यक दर्शन कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
उपाध्याय श्री 108 प्रज्ञानंद जी महामुनिराज ने कर्म सिद्धांत के अनुसार सम्यक दर्शन की प्राप्ति की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया। श्री 108 प्रज्ञानंद ने कहा, सम्यक दर्शन का अर्थ है- सच्चे तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान और आत्म-स्वरूप पर अटूट विश्वास। यह कोई बाहरी उपलब्धि नहीं, बल्कि आत्मा की मूल शुद्ध अवस्था है, जो मोहनीय कर्म के आवरण से ढकी हुई है। सम्यक दर्शन तब प्रकट होता है, जब आत्मा पर छाया हुआ अनंतानुबंधी कषाय- क्रोध, मान, माया, लोभ और दर्शन मोहनीय कर्म या तो शांत हो जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं। क्षुल्लक श्री ने कहा कि कल्पद्रुम विधान जैसी शुभ क्रियाएं इसी विशुद्धि को बढ़ाती हैं, जो सम्यक दर्शन की प्राप्ति का अनिवार्य आधार है। विधान में विराजमान समस्त मुनि संघ और आर्यिका रत्न ज्ञानमति माताजी के निमित्त भी विशेष अर्घ्य समर्पित किए गए। इसके बाद सभी श्रद्धालुओं ने श्रद्धा और समर्पण के भाव से प्रभु के चरणों में अर्घ्य समर्पित किया। रिद्धि-सिद्धि भवन में गूंजते भक्तिमय संगीत और मंत्रों के बीच श्रावक-श्राविकाएं भक्ति की पराकाष्ठा में झूम उठे। श्री कल्पद्रुम महामंडल विधान में प्रो. रवि जैन, डॉ. कल्पना जैन, श्रीमती नीलिमा जैन, डॉ. अर्चना जैन की भी उल्लेखनीय उपस्थिति रही।





