देहरादून। रुकेगा पलायन और बंजर भूमि होगी गुलजार. गाजणा प्रोडक्ट हो सकता है अभिनव प्रयोग
कहते हैं कि चाह को राह होती है. हौसले अगर बुलंद हो और सच्चे मन से अगर किसी काम को एकयता से किया जाये तो आसमान भी छू लेता है इंसान ऐसा ही कर दिखाया इस शोध टीम ने। यो तो हल्दी हम रोज ही लगभग हर खाने के साथ खाते हैं और हल्दी के औषधीय गुणों से सभी भली भांति परिचित है. किन्तु अथक तीन साल की मेहनत एक सही मार्गदर्शन एक संस्थान के निदेशक का साथ, एक टीम का प्रयास और बहुत सारी परिस्थितियों ने ये संभव बनाया कि उत्तराखंड राज्य को एक बेहतर और अच्छी गुणों वाली हल्दी दी जा सके। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुधीर नौटियाल, निदेशक, एम एस एम ई० डायरेक्टरेट ऑफ़ इंडस्ट्रीज, उत्तराखंड सरकार ने इस कार्य की सराहना की व बताया कि भारत में प्रत्येक घर में मसालों का इस्तेमाल होता है किंतु यह उत्पाद जो कि उच्च हिमालई क्षेत्रों में उगाया गया है व स्टार्टप के रुप में आज लॉच किया जा रहा है, यह भविष्य की पीढ़ी के लिए एक अहम कार्य व प्रोत्साहित करने वाला है, इससे जुड़कर कई लोगों को रोजगार दिया जा सकेगा व आर्थिकी मजबूत होगी. इससे गांवों में हो रहा पलायन भी रुकेगा जो कि उत्तराखंड के गांवों के लिए एक बहुत बडी समस्या बना हुआ है।
प्रो संजय जसोला, कुलपति, ग्राफिक एरा डीम्ड वि० वि० ने बधाई देते हुऐ अपने उद्बोधन में कहा कि विगत कई वर्षों से विश्वविद्यालय शोध कार्यों में जुटा है व इस तरह का प्रयास बहुत ही प्रोत्साहित करने वाला है, इससे शोध जगत में भी क्रांति आऐगी। प्रो० पंकज गौतम, विभागाध्यक्ष, लाइफ साइंसेज ने विभाग में हो रही शोध के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि २०१६ से शुरू हुए इस नये विभाग ने बहुत कम समय में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना स्थान बना लिया है।
प्रो० आशीष थपलियाल, द टमरिक प्रोजेक्ट परियोजना के निदेशक ने बताया कि उनकी टीस अगले चार सालों में १५० टन क्षमता तक का प्रोडक्शन करने की योजना बना रही है. इसके लिये वो खुद भी रखेतों में काम करते हैं और इस लक्ष्य को प्राप्त करने में जैव प्रौद्योगिकी तकनीक के माध्यम से धरातल में उतरा जायेगा और इस पूरी परियोजना का केंद्र बिंदु है उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मेहनत करने वाले किसान उन्होंने बताया कि वो २००८ में अमेरिका से लौटने के पहले से ही गांव से जुड़े हैं और पहाड़ों में किसान को जंगली जानवरों से फसल को बहुत नुकसान होता देख रहे हैं इसलिए भी हल्दी की खेती पर जोर है क्योंकि इसको बन्दर और गुणी नुकसान नहीं करता और जंगली जानवर भी इसको ज्यादा पसंद नहीं करते तथा इसको बाजार में कई रूप में अच्छी कीमत पर बेचा जा सकता है, खेत में रहने पर भी ये २ या तीन साल तक आराम से बिना ज्यादा मेहनत के उग जाती है. उन्होंने जोर देकर कहा की कोई भी प्रयास बिना सरकार की मदद से अधुरा होता है वर्तमान में जरूरत है उत्तराखंड सरकार की इस विषय पर एक सकारात्मक पहल की।
इस प्रोडक्ट को गाँव में उगा कर बाजार तक लाने में प्रो० मधु थपलियाल, रा० मह० वि० उत्तरकाशी की प्रमुख भूमिका है जो कि बहुत ही कम उम्र में, पूर्व में जिला पंचायत सदस्य रही है क्योंकि उन्होंने गाँव में जा कर गाँव के आम जन के लिए ये प्रयास किया है. हाल ही में उनका स्थानान्तरण उत्तरकाशी में किया गया वो दुर्गम में पहले भी १२ साल कार्य कर चुकी हैं और शायद सरकार को भी ऐसे लोगों की जरूरत है जो शोध को गाँव तक पहुंचाने में सक्षम हो, उनके उच्च शिक्षा एवं आम जनता द्वारा चयनित प्रतिनिधि होने के अनुभवों की वजेह से यह परियोजन अपना साकार रूप ले रही है।
इस शोध टीम के द्वारा उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों से अधिक कुर्कुमिन युक्त हल्दी को एक स्टार्ट अप (आई० आई० टी० रूडकी के टाइड के माध्यम से एम० एस० एम० ई० डायरेक्टरेट ऑफ़ इंडस्ट्रीज, उत्तराखंड सरकार द्वारा स्टार्ट अप का दर्जा प्राप्त) के माध्यम से बाजार में लाई गई है. इस टीम का मार्गदर्शन यूकास्ट के पूर्व डी० जी० डा० राजेंद्र डोभाल ने किया है तथा इस शोध कार्य को आगे बढाने के लिये प्रो० डा० कमल धन्शाला, संस्थापक ग्राफिक एरा ग्रुप एवं प्रो० डा० संजय जसोला, कुलपति ग्राफिक एरा डीम्ड वि० वि० देहरादून का योगदान है. हाल ही में, १५ अगस्त २०२२ को प्रो० डा० कमल धन्शाला ने अपने उद्बोधन में किसानो के लिए काम करने की पहल की थी. शोध टीम के मेम्बेर्स हैं डा० उपेन्द्र शर्मा, आई० एच० डी० टी० (सी० एस० आई० आर०) पालमपुर, हिमाचल प्रदेश, प्रो० मनु पन्त बडोनी, डा० प्रभाकर सेमवाल, ग्राफिक एरा डीम्ड वि० वि० तथा प्रो० मधु थपलियाल, रा० महा० वि० उत्तरकाशी, इस परियोजन में श्री सचिन पंवार एवं श्री दीपक राणा ने प्रोजेक्ट स्टाफ की अहम् भूमिका निभायी है। इस प्रोडक्ट का नाम गाजणा पट्टी के नाम पर गाजणा रखा गया है क्योंकि उस स्थान पर एक फ़ील्ड स्टेशन जिसका नाम टेक्नोलॉजी रिसोर्स सेंटर (टी० आर०सी०) है- को स्टार्ट अप द्वारा प्रो० डा० कमल धन्शाला, संस्थापक ग्राफिक एरा ग्रुप आर्थिक सहायता एवं यूकास्ट की मदद से स्थापित किया गया है. टी०आर०सी० का उद्देश्य भारत सरकार की आत्मनिर्भर भारत वोकल फॉर लोकल और स्टार्ट उप उत्तराखंड पहल को साकार करना है जहाँ लैब में हो रही शोध एवं टेक्नोलॉजी को गाँव तक ले जाया जा सके। इस टीम के यूकोस्ट के कार्डिनेटर डा० डी० पी० उनियाल, जॉइंट डायरेक्टर, डा० आशुतोष मिश्रा तथा डा० अपर्णा सरीन हैं. इस शोध में डा० विनय नौटियाल रा० महा० वि० गोपेश्वर, प्रो० सुपती मझाव- नार्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी शिल्लॉग- श्री लीजो थॉमस आई० आई० एस० आर० कोजिकोदाई केरल का भी सहयोग रहा है. कार्यक्रम में प्रो० भास्कर पन्त, डीन रिसर्च, प्रो० विकास त्रिपाठी, प्रो० निशांत राय, प्रो० नविन कुमार, विभाग के सभी शोधार्थियों, समस्त प्राध्यापक वर्ग तथा १०० से अधिक छात्रों ने प्रतिभाग किया।