उत्तराखंड

आजीविका के लिए उच्च संभावनाओं वाला उभरता क्षेत्र: मत्स्य पालन – डॉ. मुरुगानंदम

देहरादून, 27 दिसंबर 2025:
डॉ. एम. मुरुगानंदम, प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी (पीएमई एवं केएम इकाई), आईसीएआर–भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (ICAR–IISWC), देहरादून ने उत्तराखंड एवं भारत में तीव्र गति से परिवर्तित होते मत्स्य पालन क्षेत्र और इसकी अपार संभावनाओं पर एक विशेष व्याख्यान दिया। उन्होंने 26 से 29 दिसंबर 2025 तक देहरादून में जिला सहकारी विभाग, उत्तराखंड सरकार द्वारा आयोजित सहकारी व्यापार मेला (मेला) में किसानों, स्वयं सहायता समूहों (SHGs), किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) तथा आगंतुकों को संबोधित किया।

प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर प्रकाश डालते हुए डॉ. मुरुगानंदम ने बताया कि उत्तराखंड एवं देश के अन्य भागों में नदियों, नालों, झरनों, वर्षा एवं वर्षा-अपवाह के रूप में प्रचुर जल संसाधन उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि देहरादून में औसतन लगभग 1,650 मिमी वार्षिक वर्षा होती है, जबकि भारत की औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1,110 मिमी है, जो वैश्विक औसत से कुछ अधिक (1100 मिमी) है। यह स्थिति भारत को जल-समृद्ध देशों की श्रेणी में रखती है तथा जल आधारित उत्पादन प्रणालियों, विशेष रूप से मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि, के लिए व्यापक अवसर प्रदान करती है।

उन्होंने बताया कि उच्च मूल्य एवं कम मात्रा वाली गतिविधियाँ, जैसे ट्राउट पालन, जैव-फ्लॉक प्रणाली में मत्स्य पालन, पारंपरिक फार्म तालाब तथा जल-संचयन संरचनाएँ, तेजी से अपनाई जा रही हैं। इन प्रणालियों से उत्पादन एवं किसानों की आय में निरंतर वृद्धि दर्ज की जा रही है—चाहे वह उत्तराखंड हो या राष्ट्रीय स्तर।

डॉ. मुरुगानंदम ने जानकारी दी कि भारत में वर्तमान में लगभग 19.5 मिलियन टन मछली का वार्षिक उत्पादन हो रहा है, जबकि उत्तराखंड में कुछ वर्ष पूर्व लगभग 7,000 टन रहा उत्पादन हाल के वर्षों में बढ़कर लगभग 70,000 टन तक पहुँच गया है, जिसका प्रमुख कारण ट्राउट उत्पादन में वृद्धि एवं मत्स्य पालन के लिए उपलब्ध सहयोगी प्रणालियाँ हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रगति के बावजूद राज्य में वर्तमान उत्पादन, उपभोग एवं आजीविका की मांग की तुलना में अभी भी काफी कम है तथा उपलब्ध विशाल संभावनाओं के अनुरूप नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संभावना और वास्तविक उत्पादन के बीच का यह अंतर उद्यमिता, रोजगार और आजीविका सृजन के लिए बड़े अवसर प्रदान करता है, जिसके लिए सभी हितधारकों का समन्वित एवं केंद्रित प्रयास आवश्यक है।

उन्होंने किसानों एवं प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे उत्तराखंड में मत्स्य पालन के विकास हेतु उपलब्ध विभिन्न सरकारी योजनाओं, प्रावधानों एवं संस्थागत सहायता तंत्रों के प्रति सतर्क और जागरूक रहें, ताकि स्थानीय किसानों एवं समुदायों को अधिकतम लाभ मिल सके। कृषि एवं पशुपालन क्षेत्रों का उदाहरण देते हुए—जहाँ प्रारंभिक हस्तक्षेपों के कारण अपेक्षाकृत बेहतर विकास हुआ है—उन्होंने बताया कि मत्स्य पालन क्षेत्र में अभी भी अनेक अप्रयुक्त अवसर मौजूद हैं। इनमें मत्स्य बीज उत्पादन, चारा निर्माण, मछली उत्पादन, परिवहन, कटाई, मूल्य संवर्धन, विपणन एवं वित्तपोषण, विशेष रूप से सहकारिताओं, SHGs एवं उद्यमिता के माध्यम से, प्रमुख हैं।

अपने संबोधन के दौरान डॉ. मुरुगानंदम ने नदियों एवं जलीय जैव विविधता के संरक्षण पर भी बल दिया और सतत मत्स्य संसाधनों एवं पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने हेतु जिम्मेदार मत्स्यन प्रथाओं की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने विशेष रूप से स्थानीय एवं मूल्यवान मछलियों—जैसे महसीर (Tor putitora), स्नो ट्राउट (Schizothorax spp.) एवं स्पाइनी ईल (Mastacembelus armatus)—के संरक्षण का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में नदी तटीय क्षेत्रों में निवास करने वाली लगभग 40 प्रतिशत आबादी आंशिक या पूर्ण रूप से मत्स्य पालन पर भोजन एवं आजीविका के लिए निर्भर है, जिससे संरक्षण प्रयासों का महत्व और बढ़ जाता है।

कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने साझा की गई जानकारियों की सराहना की और उपलब्ध तकनीकी एवं संस्थागत सहायता के साथ मत्स्य पालन गतिविधियाँ अपनाने में गहरी रुचि व्यक्त की।

इस अवसर पर पशुपालन, डेयरी, मत्स्य, स्वास्थ्य विभाग एवं एपीडा (APEDA) के विशेषज्ञों ने किसानों एवं उद्यमियों के लिए उपलब्ध विभिन्न योजनाओं एवं अवसरों की जानकारी प्रस्तुत की।

यह सहकारी व्यापार मेला संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 तथा उत्तराखंड राज्य गठन के रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में राज्य सरकार के सहकारी विभाग द्वारा आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य स्थानीय उत्पादों, सहकारी संस्थाओं एवं स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करना था। राज्य भर से स्थानीय सहकारी समितियों, संस्थानों, SHGs, FPOs एवं किसानों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया। कार्यक्रम की चर्चाओं का समन्वय सुश्री पंकज लता, सहकारी विभाग, उत्तराखंड द्वारा किया गया।

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