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डा. मधु थपलियाल: पिता से सीखा संघर्ष, मां से शिक्षा की अलख

देहरादून। पिता कमलाराम नौटियाल से संघर्षों की विरासत और माताश्री कमला नौटियाल से शिक्षा की अलख जगाने के गुर ने डा. मधु थपलियाल को बेहतर शिक्षिका और समाजसेविका के रूपमेंस्थापित किया। वह छात्र/छात्राओं के लिए रॉल मॉडल है। स्वयं डा. थपलियाल को ये प्रेरणा उनके शिक्षकों से मिली। स्कूल के दिनों में हिंदी की शिक्षिका ने उन्हें कविता लिखना सीखाया। कविता थी जिन मुश्किल में मुस्कराना हो मना उन मुश्किलों में मुस्कराना धर्म है।

एक न्यूज पोर्टल को दिए अपने इंटरव्यू में डा. मधु थपलियाल कहती हैं कि शिक्षक समाज सेवी ही होता है। समाज को समझने वाला ही अच्छा शिक्षक हो सकता है। हां, जरूरतमंदों की आवाज उठाने में संतुष्टि मिलती है। ये आवाज क्लास में हो या फिर कॉलेज में। शिक्षक आवाज उठाएगा तो छात्र देखकर सीखेंगे और अच्छे समाज का निर्माण होगा। वह कहती हैं कि समर्पण और काम के प्रति ईमानदारी ही शिक्षक में ही नहीं देश के हर नागरिक को ऐसा ही होना चाहिए। ताकि हर अपने काम के प्रति न्याय कर सकें। एक शिक्षक पर इसकी जिम्मेदारी ज्यादा है।

अपने छात्र जीवन के बारे में वह कहती हें कि मै किसी के साथ अन्याय होते नहीं देख सकती। जितना संभव हो सकता है दूसरे के लिए भी आवाज उठाती हूं। वह कहती हैं कि मेरे जीवन में स्कूल, कॉलेज, शोध और अभी कई शिक्षकों का अहम योगदान है। इसकी शुरूआत करूं तो जीजीआईसी उत्तरकाशी में हिंदी की शिक्षिका श्रीमती कुसुम उनियाल, श्रीमती सरोज किमोठी, प्रो. एसएन बहुगुणा का अहम रोल रहा है। इसके साथ ही जेपी भट्ट, डा. जीएस रजवार, यूकॉस्ट के महानिदेशक डा. राजेंद्र डोभाल, डा. के एल मालगुड़ी मेरे आदर्श शिक्षक रहे। इनके सानिध्य में लगातार सीखना को मिल रहा है।

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