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वन और जल संरक्षण से ही पर्यावरण संरक्षण संभव है

चकराता। वन और जल संरक्षण से ही पर्यावरण संरक्षण संभव है।हिमालय प्रकृति व संस्कृति के संगम का प्रतीक है।हिमालय विश्व चेतना का केंद्र भी है।पर्यावरण संरक्षण हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। “हिमालयी परितंत्र और वनाग्नि-विशेष संदर्भ उत्तराखंड” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में वन और जल संरक्षण से ही पर्यावरण संरक्षण संभव है पर्यावरण संरक्षण के हर पहलू पर बेबाकी से अपने विचार रखे।जी.बी.पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय इन्वायरमेंट कोसी कटारमल अल्मोड़ा एवं हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर.सी. सुंदरियाल ने पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन द्वारा उत्तराखंड में वनाग्नि से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान की विस्तृत जानकारी दी। मैती आंदोलन के प्रणेता पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा कि देवदार के जंगलों के बीच खड़े चीड़ के पेड़ जंगल की आग में इजाफा करते हैं। स्पर्श गंगा के गढ़वाल संयोजक प्रोफेसर प्रभाकर बोनी ने पर्यावरणीय शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने पर जोर दिया।मोहन चंद जोशी ने वनाग्नि से निपटने के लिए जनसहयोग को अनिवार्य बताया। स्पर्श गंगा के कुमाऊं संयोजक प्रोफेसर एस.डी.तिवारी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के बिना तो मानव जीवन ही संकट में पड़ जायेगा। स्पर्श गंगा अभियान के राष्ट्रीय समन्वयक प्रोफेसर अतुल जोशी ने राष्ट्रीय वेबिनार का संचालन करते हुए कहा कि उत्तराखंड की ज्वलंत समस्या वनाग्नि की रोकथाम के लिए मिले सुझावों को संपादित कर पुस्तक का रूप दिया जायेगा। वेबिनार में चकराता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर के.एल. तलवाड़ और रामनगर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर एम.सी.पांडे सहित अनेक शोधार्थियों एवं पर्यावरण प्रेमियों ने प्रतिभाग किया।

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