उत्तरप्रदेशसामाजिक

पिता पुत्र ने रिपाेर्ट को माना तथ्यों से परे

चैनल की टीम ने न उनसे पूछताछ की न गहराई में गए

लखनऊ। एक न्यूज चैनल की आनलाइन टीम ने कल गूगल पर उमा लखनपाल के प्रकरण को लेकर जो एकतरफा रिपोर्ट बनाकर डाली है उसके कई तथ्य सत्य से परे, झूठे, ग़लत और भ्रामक हैं क्योंकि वे उमा के पति व पुत्र से मिले ही नहीं।
मसलन, रिपोर्ट में एक जगह कहा गया है-
उमा ने अपनी मर्जी से की थी शादी
उमा की मौत के बाद चैनल की टीम उनके घर पहुंची तो घर में इनके बड़े भाई भानू तिवारी से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि मूल रूप से हम लोग बस्ती जिले के निवासी हैं। खुर्शेदबाग कालोनी में मेरे पिता ने बैंक से लोन लेकर ये मकान बनवाया था। जिसे सन 1974 में मेरी के नाम रजिस्टर्ड वसीयतनामा कर दिया। जिसमें मेरा और मेरे छोटे भाई का नाम है।
इसके बाद 1978 में पिता और मां की मृत्यु हो गई। फिर भाई और बहन की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई। 1991 में बहन उमा ने पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी मर्जी से मुरादाबाद के लखनलाल से शादी कर ली। लेकिन 1994 में ये लोग मुरादाबाद छोड़कर लखनऊ आकर किराए के मकान में रहने लगे। इसके कुछ दिनों बाद से यहां हम लोगों के साथ रहने लगे।
लखनपाल दपंति का कहना है कि जबकि असलियत यह है कि उमा और श्री लखनपाल की शादी परंपरागत तरीके से खुर्शेदबाग कालोनी में संपन्न हुई थी। वह कोई प्रेम विवाह कतई नहीं था। यह रिश्ता खुद उमा के बड़े भाई भानू तिवारी और श्री लखनपाल की बड़ी बहन द्वारा संपन्न कराया गया था। पहले उमा ने इस रिश्ते को मानने से साफ इनकार कर दिया था। जिसके दो वाजिब कारण थे। पहला- श्री लखनपाल का एक प्राइवेट संस्थान में कार्यरत होना और दूसरा- श्री लखनपाल का अपना कोई घर मकान और संपत्ति आदि का न होना था जो मुरादाबाद में किराए के मकान में रहते थे और अमर उजाला अखबार के संपादकीय विभाग में काम करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार थे। इससे उमा को अपना भविष्य सुरक्षित नहीं लग रहा था। वह किराए के मकान में रहने की आदी नही थी। लेकिन परिजनों के दबाव में  सभी रिश्तेदारों ने मिलकर उमा की शादी संपन्न कराई । यही कारण था कि उमा की शादी काफी विलंब से उसकी उम्र के सत्ताइसवें साल में संपन्न हुई थी।
 1974 में उमा के पिता ने जो पंजीकृत वसीयत की थी उसमें उन्होंने अपनी समूची चल व अचल संपत्ति का मालिक, काबिज, वारिस अपनी पत्नी श्रीमती रेश्मा देवी को बनाया था लेकिन दुर्भाग्य से पत्नी की मृत्यु 1975 में ही हो गई। इसके बाद पिता ने कोई दूसरी वसीयत इसलिए नहीं की कि उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 14- ए व बी के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी माधयम से अपनी चल या अचल संपत्ति यदि किसी स्त्री के नाम लिख देता है तो वह तत्काल प्रभाव से उस स्त्री का स्त्रीधन हो जाता है जिसे उससे वापस नहीं लिया जा सकता है। इसलिए आज की तारीख में इस संपत्ति की स्वामिनी उमा की माता हैं नाकि पिता।
आपको बता दें कि उमा लखनपाल ने अपने लापता छोटे भाई राघव का पता लगाने के लिए हाईकोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी जिसपर पारित आदेश के बाद ही पुलिस को मजबूर होकर भानू तिवारी के खिलाफ आईपीसी 364 ( हत्या के इरादे से अपहरण ) का मुकदमा अपराध संख्या 143/12 कायम करना पड़ा था।

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